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‘बोतलबंद पानी पीने से शरीर में हर साल जा रहे प्लास्टिक के 90,000 टुकड़े’

प्लास्टिक के कचरे से होने वाला प्रदूषण हमारे जीवन को प्रत्येक स्तर पर प्रभावित कर रहा है और अब यह एक वैश्विक समस्या बन चुका है। यह पीने के पानी और भोजन तक भी पहुँच गया है। यह हमारे महासागरों और तटीय क्षेत्रों को भी नष्ट कर रहा है। पूरा विश्व प्लास्टिक के प्रदूषण से ग्रस्त है। विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 500 अरब प्लास्टिक की थैलियाँ इस्तेमाल की जाती हैं। महासागरों में प्रतिवर्ष 80 लाख टन प्लास्टिक का कचरा पहुँचता है। पिछले एक दशक के दौरान जितना प्लास्टिक का उत्पादन किया गया, वह पिछली पूरी शताब्दी के उत्पादन से भी अधिक था। प्लास्टिक की कुल खपत में से आधे से अधिक का इस्तेमाल केवल एक बार किया जाता है। 
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस बार स्वतंत्रता दिवस पर लाल क़िले से दिए भाषण में देश को सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मुक्त बनाने का आह्वान किया था। उन्होंने लोगों से कहा था कि वे जूट या कपड़े के थैले का उपयोग करें। प्रधानमंत्री ने कहा था कि 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती के दिन से यह अभियान शुरू होना चाहिए। सिंगल यूज़ प्लास्टिक वह होता है, जिसे सिर्फ़ एक ही बार इस्तेमाल में लाया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ में भी लोगों से सिंगल यूज़ प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल करने का अनुरोध किया था। उन्होंने तब भी अपील की थी कि 2 अक्टूबर से पूरे देश में प्लास्टिक के ख़िलाफ़ एक नए जन-आंदोलन की नींव रखी जाए।
भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार देश में प्रतिवर्ष लगभग 26000 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। वर्ष 2017 में आये ओखी चक्रवात के बाद ओडिशा के सागर तटों पर लगभग 80 टन प्लास्टिक का कचरा एकत्रित हो गया था। प्लास्टिक के बहुत छोटे टुकड़े जिन्हें सूक्ष्म-प्लास्टिक (नैनो-प्लास्टिक) कहा जाता है, एक गंभीर समस्या बनकर उभरे हैं और यह पीने के पानी और खाद्य पदार्थों का हिस्सा बनते जा रहे हैं।
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सभी जगह है प्लास्टिक का कचरा

ऑस्ट्रेलिया से 2100 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित कोकोस आइलैंड पर लगभग 300 लोग रहते हैं। दुनिया से लगभग कटा हुआ यह द्वीप विश्व के उन चुनिन्दा क्षेत्रों में से है जहाँ अब तक समझा जाता था कि पर्यावरण विनाश या फिर प्रदूषण का असर नहीं पड़ा है। पर, हाल ही में वैज्ञानिकों ने इस द्वीप पर लगभग 238 टन कचरा खोज निकाला है जो हिन्द महासागर की लहरों के साथ इसके किनारे पर जमा हो गया है। इस कचरे में लगभग 42 करोड़ प्लास्टिक के टुकड़े भी हैं। 

कुछ महीने पहले अमेरिका के विक्टर वेस्कोवो ने प्रशांत महासागर की सबसे गहरी जगह, मारिआना ट्रेंच में 10927 मीटर की गहराई तक पहुँच कर एक नया विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया। माउंट एवेरेस्ट की ऊंचाई कुल 8848 मीटर है, यानी विक्टर वेस्कोवो जिस गहराई तक गए वह माउंट एवेरेस्ट की कुल ऊंचाई से भी अधिक है। इस रिकॉर्ड-तोड़ गहराई में भी उन्हें प्लास्टिक से ढका कचरा मिला। 

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार प्रत्येक सेकेंड में लगभग 2 बस के बराबर प्लास्टिक महासागरों में पहुँच रहा है और प्रत्येक वर्ष लगभग 80 लाख टन प्लास्टिक महासागरों में जा रहा है और इसे रोकने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किये जा रहे हैं।

अधिकतर प्लास्टिक विकासशील देशों से ही पर्यावरण में पहुँच रहा है। विकसित देश अपना प्लास्टिक कचरा एकत्रित कर वैध या फिर अवैध तरीक़े से विकासशील देशों तक पहुँचा देते हैं जहाँ इनका निपटान किया जाता है या फिर इनका पुनःचक्रण किया जाता है। 

गंगा नदी में प्लास्टिक का कचरा

एक अध्ययन के अनुसार विश्व में 20 नदियाँ ऐसी हैं जिनके माध्यम से महासागरों में बड़ी मात्रा में प्लास्टिक जाता है। इसमें पहले स्थान पर चीन की यांग्तज़े नदी है, जिससे प्रतिवर्ष 333000 टन प्लास्टिक महासागरों तक पहुँचता है। दूसरे स्थान पर भारत की गंगा नदी है जिससे 115000 टन प्लास्टिक प्रतिवर्ष जाता है। तीसरे स्थान पर चीन की क्सी नदी, चौथे पर चीन की हुंग्पू नदी और पाँचवे स्थान पर नाइजीरिया और कैमरून में बहने वाली क्रॉस नदी है। 

इन 20 नदियों में से चीन में 6, इंडोनेशिया में 4, नाइजीरिया में 3 नदियाँ हैं। इसके अतिरिक्त भारत, ब्राज़ील, फिलीपींस, म्यांमार, थाईलैंड, कोलंबिया और ताइवान में एक-एक नदी है। स्पष्ट है कि महासागरों तक प्लास्टिक पहुँचाने वाली अधिकतर नदियाँ एशिया में स्थित हैं।

महासागरों में जो कचरा सीधे जा रहा है, उसके अतिरिक्त जो प्लास्टिक के भण्डार मिल रहे हैं, वह नदियों की ही देन हैं। नदियों और नदियों में मिलने वाले नालों के किनारे ही प्लास्टिक समेत कचरा फेंका जाता है। अधिकतर विकासशील देशों में यही स्थिति है और यह प्लास्टिक सीधे या फिर हवा के साथ नदियों तक पहुँचता है। 

नदियों में पानी की बोतलें, पॉलिथीन के थैले और प्लास्टिक की प्लेटें सीधी फेंकी जाती हैं। यह सब पानी के साथ बहकर महासागरों में जा रहा है। हम नदियों को गन्दा कर रहे हैं और नदियाँ अंत में महासागरों को प्रदूषित कर रही हैं।

खाने और सांस के साथ प्लास्टिक

प्लास्टिक का कचरा महासागर के जीवों से लेकर गायों के पेट तक पहुँच रहा है। इन सबकी ख़ूब चर्चा भी की जाती है लेकिन एक नया अनुसंधान यह बताता है कि एक औसत मनुष्य प्रतिवर्ष भोजन के साथ और सांस के साथ प्रतिवर्ष लगभग सवा लाख प्लास्टिक के टुकड़ों को अपने शरीर के अन्दर पहुँचा रहा है। यह अनुसंधान एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी नामक जर्नल के हाल में प्रकाशित अंक में आया है। 

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इस शोधपत्र के मुख्य लेखक यूनिवर्सिटी ऑफ़ विक्टोरिया के वैज्ञानिक डॉ किएरन कॉक्स हैं। इस दल ने खाद्य पदार्थों में मौजूद प्लास्टिक से संबंधित प्रकाशित अनेक शोधपत्रों के अध्ययन, वायु में मौजूद प्लास्टिक की सांद्रता और मनुष्य के प्रतिदिन के औसत खाद्य पदार्थ के आधार पर यह बताया कि उम्र और लिंग के आधार पर औसत मनुष्य प्रतिवर्ष 74000 से 121000 के बीच प्लास्टिक के टुकड़ों को ग्रहण करता है। 

प्रतिदिन एक सामान्य मनुष्य प्लास्टिक के 142 टुकड़े खाद्य पदार्थों के साथ और 170 टुकड़े सांस के साथ अपने शरीर के भीतर डालता है। शोधपत्र के अनुसार यदि कोई केवल बोतलबंद पानी ही पीता है, तब उसके शरीर में प्रतिवर्ष 90000 प्लास्टिक के अतिरिक्त टुकड़े जाते हैं।

समस्या बेहद गंभीर है

टीयरफण्ड नामक एक गैर-सरकारी संस्था के अनुसार विकासशील देशों में प्रतिवर्ष 1 करोड़ से अधिक लोग केवल कचरे के बेतरतीब तरीक़े से बिखरे होने के कारण मर जाते हैं। कचरे में प्लास्टिक मौजूद होने के कारण हालात और बिगड़ गए हैं। प्लास्टिक में मौजूद हानिकारक अवयव धीरे-धीरे रिस कर भू-जल तक पहुँचने लगे हैं। 

प्लास्टिक और कचरा हवा और पानी के साथ नदियों और झीलों को भी प्रभावित कर रहा है। मछलियों और दूसरे खाने योग्य जलीय जन्तुओं में प्लास्टिक और दूसरे प्रदूषणकारी पदार्थों की मात्रा बढ़ती जा रही है। कचरे से पानी के प्रदूषित होने के कारण अतिसार का कहर बढ़ता जा रहा है और यह दुनिया में असामयिक मृत्यु का सबसे बड़ा कारण भी है। 

दुनिया में लगभग 2 अरब आबादी ऐसी है, जिनके कचरे का प्रबंधन कोई नहीं करता और यह आबादी लगभग 10 करोड़ टन कचरा प्रतिवर्ष उत्पन्न करती है। यह पूरा कचरा आबादी के बीचोंबीच पड़ा रहता है और इसे सड़क किनारे, खाली ज़मीन पर, नदियों के किनारे और नालों में देखा जा सकता है। 

प्लास्टिक के नुक़सान यहीं तक सीमित नहीं हैं। अब नए अनुसंधान इसे तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन से भी जोड़ने लगे हैं। सेंटर फ़ॉर इंटरनेशनल एनवायर्नमेंटल लॉ नामक संस्था द्वारा कराये गए एक अध्ययन के अनुसार केवल एक बार इस्तेमाल किया जा सकने वाला प्लास्टिक जलवायु परिवर्तन में बड़ी भूमिका निभा रहा है।

अनुमान है कि वर्ष 2050 तक दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन में से 13 प्रतिशत से अधिक का योगदान प्लास्टिक के उत्पादन, उपयोग और अपशिष्ट का होगा, जो लगभग 615 कोयले से चलने वाले ताप-बिजली घरों के जितना होगा। इस संस्था के अनुसार प्लास्टिक के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की तो ख़ूब चर्चा की जाती है पर इसकी तापमान वृद्धि में योगदान को नजरअंदाज कर दिया जाता है। 

इतना तो स्पष्ट है कि कचरे का वैज्ञानिक और पर्यावरण अनुकूल प्रबंधन समय की आवश्यकता है, पर इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हालत यह है कि निर्जन द्वीपों पर भी कचरे का अम्बार लगा है। 

इतना तो स्पष्ट है कि कचरे का वैज्ञानिक और पर्यावरण अनुकूल प्रबंधन समय की आवश्यकता है, पर इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हालत यह है कि निर्जन द्वीपों पर भी कचरे का अम्बार लगा है। 

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महेंद्र पाण्डेय

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