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गाँधी-150: गाँधी के बाद कौन, क्या इस सवाल का उत्तर हैं नरेंद्र मोदी?

लम्बे समय तक गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के दौरान और उसके बाद देश के प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी आमजन के मुद्दों को जिस तरह से छूते हैं और उसे अभियान के तौर पर लेते हैं, वैसा गाँधी के बाद किसी नेता ने नहीं किया। यही वजह है कि महात्मा गाँधी के बाद नरेंद्र मोदी आज़ाद भारत के सबसे बड़े करिश्माई, जनाधार वाले नेता के तौर पर उभर रहे हैं।
हर्षवर्धन

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नरेंद्र मोदी को फ़ादर ऑफ़ इंडिया कहकर एक नई बहस छेड़ दी है। महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता कहा जाता है, इसलिए यह बहस तीखी हो गई कि नरेंद्र मोदी, महात्मा गाँधी की जगह कैसे ले सकते हैं। दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप पश्चिमी समाज के नेता हैं, इसीलिए उन्होंने महात्मा गाँधी जैसे ही नरेंद्र मोदी को भी फ़ादर ऑफ़ इंडिया कह दिया, जबकि सच यही है कि भारत में जिस तरह से देश की परिकल्पना है, उसमें फ़ादर ऑफ़ द नेशन जैसा कुछ हो ही नहीं सकता। डोनाल्ड ट्रंप के कहे के लिहाज़ से किसी देश का अतिप्रभावशाली नेता फ़ादर ऑफ़ द नेशन हो जाता है। डोनाल्ड ट्रंप के कहे से यह बहस फिर से ज़िंदा हो गई है कि दुनिया के महानतम नेताओं में से एक महात्मा गाँधी के बाद भारत में कौन है। इस सवाल का जवाब बहुत कठिन है, लेकिन इक्कीसवीं शताब्दी में दुनिया में अपनी छाप छोड़ने वाला भारतीय राजनेता मिल गया दिखता है।

मोहनदास करमचंद गाँधी भारत के ही नहीं विश्व के महानतम नेताओं में से हैं। ऐसे नेता जिनके आसपास भी पिछले दशक से इस दशक तक कोई पहुँच नहीं सका है। गाँधीजी के व्यक्तित्व के आयाम इतने विस्तृत हैं कि गाँधी से तुलना छोड़िए, ‘गाँधी के बाद कौन’ सवाल का जवाब भी पूछना साहस का काम है, लेकिन मुझे लगता है कि बदलते समय के साथ ‘गाँधी के बाद कौन’ सवाल का जवाब ख़ुद ब ख़ुद मिल रहा है। मोहनदास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी बनने की यात्रा में गाँधीजी ने ऐसे ढेर सारे पड़ावों को पार किया, जिनमें से एक भी पड़ाव किसी के जीवन यात्रा में पार हो जाएँ तो उसे महान कहा जा सकता है। अँग्रेज़ों की ग़ुलामी, अत्याचार के दौर में बैरिस्टर गाँधी से महात्मा गाँधी की यात्रा लीक से अलग हट कर और उस पर अमल करते हुए सफलता तक पहुँचने की भी है।

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महात्मा गाँधी अंग्रेज़ों के विरोध में स्वतंत्रता आंदोलन को निरंतर चलाए रहते थे, लेकिन उस निरंतरता में बहुत सलीके से बदलाव या ठहराव भी करते रहते थे। कई बार गाँधीजी की आलोचना इसी बात को लेकर होती थी कि गाँधीजी एक आंदोलन करते उसे रोक क्यों देते थे और फिर कुछ समय के विराम के बाद नये सिरे से और कई बार तो एकदम नया ही आंदोलन शुरू कर देते थे। अँग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ाई में गाँधीजी का सबसे बड़ा हथियार अहिंसा था, लेकिन गाँधीजी अगर भारतीयों और संपूर्ण विश्व के लिए प्रेरणास्रोत बने और उनका लोगों के मानस पर ऐसी अमिट छाप पड़ गयी तो उसकी सबसे बड़ी वजह उनका जीवन के मूल से जुड़ी छोटी-छोटी आवश्यकताओं पर आग्रह था। स्वच्छता, आख़िरी आदमी के लिए कुछ करने की इच्छा, छुआछूत ख़त्म करना, महिलाओं-नौजवानों की भागीदारी, परिवारवाद को दरकिनार करना जैसे छोटे-छोटे आग्रहों ने इतना बड़ा गाँधी बना दिया। 

‘गाँधी के बाद कौन’ सवाल का जवाब खोजते हैं तो देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गाँधी, जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी से आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक का नाम आता है। अलग-अलग वजहों से ऊपर लिखे सभी नेताओं ने भारतीय जनमानस पर अमिट छाप छोड़ी और भारतीय समाज में कई बड़े बदलावों की वजह भी बने हैं, लेकिन इनमें से कोई भी क्या ‘गाँधी के बाद कौन’  सवाल का जवाब है।

जब मैं इस सवाल का जवाब खोजते हुए आज़ादी के बाद के सभी नेताओं से आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुँचता हूँ तो मुझे लगता है कि ‘गाँधी के बाद कौन’ सवाल का जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं।

इसकी एक सबसे बड़ी वजह यही है कि गाँधीजी के आग्रहों को उसी निष्ठा से देश के किसी नेता ने जनता के बीच ले जाने की कोशिश की है तो वह नरेंद्र मोदी ही हैं। 15 अगस्त 2005 को जब लाल क़िले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शौचालय की बात की थी तो देश के बड़े बुद्धिजीवी वर्ग ने उनका मज़ाक बनाया था। अब गाँधीजी के आग्रहों पर उस समय कैसी प्रतिक्रिया होती थी, इसका मुझे अनुभव नहीं है, लेकिन नरेंद्र मोदी के हर घर में शौचालय और स्वच्छ भारत अभियान की बात का कैसे मज़ाक बनाया गया, इसका तो अनुभव मुझे बहुत अच्छे से है, इसके बावजूद नरेंद्र मोदी ने आम लोगों की मुश्किलों से जुड़े अपने आग्रहों को कम करने के बजाय, उसे और मज़बूती से लागू करना शुरू कर दिया। नरेंद्र मोदी के ‘भक्त समर्थकों’ की बढ़ती संख्या भी दरअसल उसी आस्था का प्रमाण है जो दिखाता है।

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नरेंद्र मोदी क्यों?

लम्बे समय तक गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के दौरान और उसके बाद देश के प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी आमजन के मुद्दों को जिस तरह से छूते हैं और उसे अभियान के तौर पर लेते हैं, वैसा गाँधी के बाद किसी नेता ने नहीं किया। यही वजह है कि महात्मा गाँधी के बाद नरेंद्र मोदी आज़ाद भारत के सबसे बड़े करिश्माई, जनाधार वाले नेता के तौर पर उभर रहे हैं। गाँधीजी का जीवन दर्शन भारतीयों और संपूर्ण विश्व के लिए आज भी उतना ही प्रासंगिक है और उसी जीवन दर्शन को पूरी निष्ठा के साथ आगे बढ़ाने का काम नरेंद्र मोदी कर रहे हैं।

गाँधीजी के क़रीब कौन?

भारतीय जनमानस में गाँधीजी का स्थान सर्वोच्च होने की एक बहुत बड़ी वजह उनका सत्ता में न रहना भी है। भारतीय जनमानस हमेशा सत्ता, सरकार से ज़्यादा सामाजिक बदलाव वाले नेता को याद रखता है। शायद यही वजह रही होगी कि करीब डेढ़ दशक से ज़्यादा प्रधानमंत्री रहने के बावजूद जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गाँधी भारतीय जनमानस में अपनी वैसी छाप नहीं छोड़ सके। इंदिरा गाँधी पर तो आपातकाल जैसा काला धब्बा लगा, जिसके बाद ‘गाँधी के बाद कौन’ सवाल के उत्तरों वाले विकल्प में से इंदिरा गाँधी का नाम हमेशा के लिए काट दिया गया। सत्ता से दूर रहकर आपातकाल से लड़ाई लड़ने वाले जयप्रकाश नारायण का नाम भी कई बार ‘गाँधी के बाद कौन’ सवाल के जवाब में आता है, लेकिन जयप्रकाश नारायण की सबसे बड़ी आलोचना यही है कि उन्होंने आपातकाल के ख़िलाफ़ छात्रों के आंदोलन को धार दी और इंदिरा को सत्ता से बाहर कर दिया, लेकिन भारतीय समाज में कोई बड़ा परिवर्तन जयप्रकाश नारायण के हिस्से नहीं आया। इतना ज़रूर है कि उनका करिश्मा ढेर सारे नेताओं और अन्य वजहों से तैयार माना जाता है।

मोदी की आलोचक जमात भले ही दक़ियानूसी, दुराग्रही चश्मे से देखते हुए, मोदी के करिश्मे को खारिज करती रहती है, लेकिन सच यही है कि इतने लम्बे समय तक भारतीय जनमानस में इतना मज़बूती से टिका रहने वाला नेता दूसरा नहीं दिखता।

गुजराती होने के बावजूद हिन्दी भाषा को लेकर गाँधीजी और नरेंद्र मोदी का आग्रह एक जैसा ही दिखता है। भारतीय भाषाओं के प्रति निष्ठा भी उसी तरह की है, यह बात संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर तमिल कवि कणियन पुकुन्नार का ज़िक्र करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साबित भी किया है। 2 अक्टूबर से ठीक पहले 29 सितम्बर को मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ढेर सारे मुद्दों पर बात करते हुए रिपुदमन बेल्वी से देश को परिचित कराया। रिपुदमन बेल्वी प्लॉगिंग अभियान चला रहे हैं। प्लॉगिंग मतलब रनिंग के बाद उस इलाक़े के कूड़े को इकट्ठा करना।

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गाँधीजी आज होते तो क्या करते?

कई बार यह सवाल आता है कि गाँधीजी अगर आज होते तो क्या करते। मुझे लगता है कि गाँधीजी आज होते तो आधुनिक जनसंचार के माध्यमों का प्रयोग करके ऐसे ही जनजागरूकता के कार्यक्रम चलाते। मन की बात का भी ख़ूब मज़ाक उड़ाया गया, लेकिन आज मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के माध्यम से देश की प्रेरणादायक कहानियाँ और स्वच्छता, जलसंचय जैसे अभियान लोगों के मन में बस रहे हैं। आज देश को अंग्रेजों से आज़ादी मिली हुई है, लेकिन भारतीय समाज के आख़िरी आदमी को ढेर सारी मुश्किलों से आज़ादी की ज़रूरत है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वही करने की कोशिश करते दिख रहे हैं। 2 अक्टूबर से सिर्फ़ एक बार प्रयोग में आने वाले प्लास्टिक का प्रयोग पूरी तरह से बंद करना हो या फिर भविष्य की चिंताओं के लिहाज से जल मंत्रालय बनाकर जल-वायु के लिए बेहतर नीतियाँ बनाने का काम करना। 

कतार में आख़िर में खड़े व्यक्ति की मुश्किलों को दूर करने के लिहाज़ से सरकारी नीतियाँ बनाकर सीधे जनता से संवाद करने का मार्ग नरेंद्र मोदी ने अनूठे प्रयोग के तौर पर शुरू किया है और उसमें मिल रही सफलता ही है कि चुनावों में लगातार भारतीय जनता पार्टी को नरेंद्र मोदी के नाम पर जनता सत्ता सौंपती जा रही है।

जिन गाँधीजी के नाम पर कांग्रेस पार्टी आज़ादी के बाद बरसों तक सत्ता में रही और कहा जाता है कि इंदिरा के पति फ़िरोज़ को बापू ने अपना गाँधी नाम दिया और शादी के बाद इंदिरा गाँधी और फिर इंदिरा की वंशावली देश पर गाँधी नाम से ही राज करती रही, लेकिन गाँधी के आदर्शों, आग्रहों को कांग्रेस और गाँधी परिवार ने धीरे-धीरे भुला ही दिया। और उन आदर्शों, आग्रहों को नरेंद्र मोदी ने जब सर्वोच्च स्थान दिया तो कट्टर स्वयंसेवकों को यह बात अच्छी नहीं लगी। ‘गाँधी-150’ को जिस तरह नरेंद्र मोदी की सरकार मना रही है और देश में कतार में आख़िर में खड़े व्यक्ति की मुश्किलों की आज़ादी की तारीख़ के तौर पर कर रही है, यह तभी संभव है जब नरेंद्र मोदी का आग्रह जनमानस को सहजता से स्वीकार हो और ऐसा होता दिख रहा है। प्रधानमंत्री रहते नरेंद्र मोदी जिस तरह आग्रहों से कतार में खड़े आख़िरी व्यक्ति के जीवन मुश्किलों को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं, इतिहास उनको महात्मा गाँधी के बाद देश के सबसे बड़े नेता के तौर पर ही याद करेगा।

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