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हाउडी मोदी: ह्यूस्टन ताली बजा रहा, मीडिया गीत गा रहा; और क्या चाहिए!

ह्यूस्टन के कार्यक्रम में अनुच्छेद 370 के हटाने की बात पर लोगों ने खड़े होकर तालियाँ बजायीं जहाँ राष्ट्रपति ट्रंप ख़ुद मौजूद थे। प्रधानमंत्री मोदी नेता से बढ़कर एक रात स्टार, एक हीरो नज़र आते हैं जिसमें भारत के बहुत लोगों को अपना वह खिलाड़ी नज़र आता है! और हम भारतीय ताली बजाने में कब पीछे रहते हैं!
राकेश कुमार सिन्हा

टेक्सस इंडिया फ़ाउंडेशन यानी टीआईएफ़ एक नॉन-प्रॉफ़िट संगठन है जिसका काम भारत और अमेरिका के बीच लोकतांत्रिक मूल्यों और आर्थिक प्रगति पर आधारित पारस्परिक सम्मान के साथ आपसी सहयोग को बढ़ाना है। इस संगठन ने अभी ह्यूस्टन में एक ‘हाउडी मोदी’ नाम का एक बड़ा आयोजन किया। इसे आयोजित करने में 1000 स्वयंसेवकों और टेक्सस स्थित 650 साझेदार संगठनों की अहम भूमिका रही। मूलतः ये साझेदार संगठन वे हैं जिनके विज्ञापन इस कार्यक्रम में लगाए गए थे। मुख्य रूप से इसके तीन प्रायोजक थे; वॉल्मार्ट, ओप्पो और तेल्लरीयन। सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी भी बात चल रही है कि हाल के दिनों में इन तीन कम्पनियों को भारत सरकार के फ़ैसले से काफ़ी लाभ हुआ है। हमें अभी इस विवाद में नहीं जाना है। व्यापार का यह सीधा नियम है कि कम्पनियाँ वहीं पैसे लगाती हैं, जहाँ से उन्हें लाभ की उम्मीद होती है। इससे कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

प्रधानमंत्री मोदी के पिछले कार्यकाल में इस तरह के आयोजन कनाडा, ऑस्ट्रेलिया एवं ब्रिटेन में भी हो चुके थे। इस बार कार्यक्रम का स्तर बहुत बड़ा था और इसलिए भी कि उसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी भाग लिया। कई अमेरिकी सीनेटर, सांसद, गवर्नर और मेयर भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंत में दोनों ने हाथ पकड़ कर पूरे सभा स्थल में ‘विक्ट्री लैप’ जैसा कुछ किया। इसका रसास्वादन भारतीय मीडिया पुराने ओनिडा टीवी के विज्ञापन ‘ऑनर्स प्राइड- नेबर्स एन्वी’ के अंदाज़ में लेते नज़र आया। हमें यह सोच कर ज़्यादा ख़ुशी हो रही थी कि पाकिस्तान यह सब देख कर कितना दुःखी हो रहा होगा। हर भारतीय की छाती फुल कर 56 इंच से कहीं ज़्यादा हो चुकी थी। राष्ट्रपति ट्रम्प की मानें तो हमें एक नया ‘राष्ट्रपिता’ मिला। सम्पूर्ण आर्यावर्त ख़ुशी से झूम उठा।

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अब कुछ संकीर्ण हृदय के लोग यह सवाल कर रहे हैं कि इस आयोजन का प्रयोजन क्या था? सवाल तो बेशक महत्वपूर्ण है और हमें जवाब ढूँढना ही पड़ेगा। इस आयोजन के तीन लाभार्थी हो सकते हैं। पहला, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दूसरा, भारतीय जनता पार्टी और तीसरा, भारत देश।

प्रधानमंत्री मोदी के लिए इसे एक प्रचार आयोजन कह सकते हैं जिसमें बैठे-बिठाए बग़ैर किसी ख़र्चे के राष्ट्रपति ट्रंप को भारतीय आप्रवासियों की इतनी बड़ी संख्या को संबोधित करने का अवसर मिला। यह कार्यक्रम भारतीय जनता पार्टी द्वारा भारतीय मूल के विदेशों में रहने वाले आप्रवासियों के सिविल सोसायटी समूह के गणमान्य व्यक्तियों से मिलजुल कर कराया गया था और इसमें भारतीय दूतावास का उतना योगदान नहीं है जितना भारत में लोग कयास लगा रहे हैं। इसका प्रधानमंत्री मोदी को फ़ायदा हुआ। भारत की जनता ने उन्हें अमेरिका में उन लोगों के समक्ष अपना प्रभाव डालते देखा जिसे एक आम भारतीय सफल शिक्षित एवं बुद्धिजीवी समझता है। इस आयोजन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्व पटल पर भारत के समकालीन इतिहास का सबसे प्रभावशाली और ताक़तवर व्यक्ति बताने की क़वायद की एक और कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए।

बीजेपी के लिए ‘हाउडी मोदी’ सिर्फ़ जन सम्पर्क अभियान तक सीमित नहीं है। भारत के चुनाव अब काफ़ी महँगे हो चुके हैं। इस बार 2019 के लोकसभा चुनाव में अनुमानित सात बिलियन डॉलर ख़र्च हुए। सामान्यतः यह राशि कॉरपोरेट व दलों के समर्थक जनता चंदे के रूप में देती है।

ऐसा भी माना जाता है कि चंदे की राशि में भारतीय आप्रवासी भी सहयोग करते हैं जिसका हर राजनीतिक दल को फ़ायदा होता है। इस तरह के आयोजन उन चंदा देने वालों के लिए धन्यवाद समारोह भी है जिन्होंने 2019 के चुनाव में मदद की।

अब रही बात कि भारत देश को क्या फ़ायदा हुआ? इसे देखने के बहुत नज़रिए हो सकते हैं। विपक्ष इसे सरकारी धन का दुरुपयोग एवं भारत में गिरती अर्थव्यवस्था एवं बेरोज़गारी से ध्यान भटकाने का एक प्रयास कह रही है। वहीं सत्ता पक्ष इसे विदेशों में प्रधानमंत्री मोदी के कारण भारत की बढ़ रही साख के प्रमाण के रूप में दिखा रही है। अगर भारत के प्रधानमंत्री की विदेशों में इज़्ज़त हो रही है तो वह न तो किसी पार्टी विशेष के कारण और न ही आप्रवासियों के ढोल बजाने से हो रही है। वह भारत के एक सौ तीस करोड़ जनता की मेहनत और प्रतिभा का परिणाम है। भारत की जनता ने इतनी मेहनत तो कर ही ली है कि हमें एक शक्तिशाली राष्ट्र तो नहीं पर एक शक्तिशाली बाज़ार के रूप में ज़रूर देखा जा रहा है।

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बाज़ार में दिलचस्पी

विश्व जब मंदी की ओर बढ़ रहा है तो भारत उन्हें निवेश करने के लिए और अपना सामान निर्यात करने के लिए एक सुरक्षित बाज़ार लगता है। वैश्वीकरण के इस दौर में सरकारें लोकतंत्र, मानवाधिकार,  इंटरनेट और स्वतंत्र मीडिया जैसे सवालों के पचड़े में नहीं पड़ना चाहती हैं। अगर ऐसा कुछ होता तो पश्चिमी देश खाड़ी देशों के राजशाही के साथ इतने व्यापक आर्थिक संबंध नहीं रखते जहाँ लोकतंत्र नाम की चिड़िया नहीं उड़ती। उसे एक मज़बूत और शक्तिशाली नेतृत्व चाहिए, जहाँ पर उनका व्यापार एवं निवेश सुरक्षित रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विश्व को भारत एक सुदृढ़ राष्ट्र लगता है जिसमें दुनिया अपना व्यापारिक और सामरिक हित तलाश रही है। अब इधर विपक्ष कितना भी शोर मचाए, फ़र्क़ नहीं पड़ता है। भारत के बुद्धिजीवी लोगों के मना करने के बाद भी बिल गेट्स फ़ाउंडेशन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘ग्लोबल गोलकीपर’ का अवार्ड दे ही दिया।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुर-विरोधियों को भी यह स्वीकार करना पड़ेगा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद का डैमेज कंट्रोल बेहतरीन रहा। इमरान ख़ान ने भी मान ही लिया कि उन्हें कश्मीर के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन न के बराबर मिला। यह घटना विश्व पटल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक सशक्त नेता के रूप में स्थापित करती है और दुनिया चाहती भी यही है। ह्यूस्टन के कार्यक्रम में अनुच्छेद 370 के हटाने की बात पर लोगों ने खड़े होकर तालियाँ बजायीं जहाँ राष्ट्रपति ट्रंप ख़ुद मौजूद थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेता से बढ़कर एक रात स्टार, एक हीरो नज़र आते हैं जिसमें भारत के बहुत लोगों को अपना वह खिलाड़ी नज़र आता है जो सतत वर्ल्ड कप और ओलम्पिक गोल्ड मेडल लाने में लगा हुआ है और हम भारतीय ताली बजाने में कब पीछे रहते हैं! ह्यूस्टन ताली बजा रहा है, मीडिया गीत गा रहा है; और क्या चाहिए!

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