loader

सचिन पायलट का विद्रोह तो वास्तव में राहुल के ख़िलाफ़ है!

कई लोग सवाल कर रहे हैं कि ऐसे समय जबकि कांग्रेस पार्टी चारों तरफ़ से घोर संकट में है, क्या सचिन पायलट इस तरह से विद्रोह करके उसे और कमज़ोर नहीं कर रहे हैं? इसका जवाब निश्चित ही एक बड़ी ‘हाँ’ में ही होना चाहिए पर साथ में यह जोड़ते हुए कि इस नए धक्के के बाद अगर पार्टी नेतृत्व जाग जाता है तो उसे एक बड़ी उपलब्धि माना जाना चाहिए।
श्रवण गर्ग

राहुल गाँधी केवल सवाल पूछते हैं! प्रधानमंत्री से, बीजेपी से; पर अपनी ही पार्टी के लोगों के द्वारा खड़े किए जाने वाले प्रश्नों के जवाब नहीं देते। राहुल न तो कांग्रेस के अब अध्यक्ष हैं और न ही संसद में कांग्रेस दल के नेता। वह इसके बावजूद भी सवाल पूछते रहते हैं और प्रधानमंत्री से उत्तर की माँग भी करते रहते हैं। कई बार तो वह पार्टी में ही अपने स्वयं के द्वारा खड़े किए जाने वाले सवालों के जवाब भी नहीं देते और उन्हें अधर में ही लटकता हुआ छोड़ देते हैं। मसलन, लोकसभा चुनावों में पार्टी के सफ़ाये के लिए उन्होंने नाम लेकर जिन प्रमुख नेताओं के पुत्र-मोह को दोष दिया था उनमें एक राजस्थान के और दूसरे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी थे। क्या हुआ उसके बाद? अशोक गहलोत भी बने रहे और कमलनाथ भी। जो पहले चले गए वह ज्योतिरादित्य सिंधिया थे और अब जो लगभग जा ही चुके हैं वह सचिन पायलट हैं

ताज़ा ख़बरें

इसे अतिरंजित प्रचार माना जा सकता है कि सचिन की समस्या केवल गहलोत को ही लेकर है। उनकी समस्या शायद राहुल गाँधी को लेकर ज़्यादा बड़ी है। राहुल का कम्फ़र्ट लेवल या तो अपनी टीम के उन युवा साथियों के साथ है जिनकी कि कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ नहीं हैं या फिर उन सीनियर नेताओं से है जो कहीं और नहीं जा सकते। क्या ऐसे भी किसी ड्रामे की कल्पना की जा सकती थी जिसमें सचिन की छह महीने से चल रही कथित ‘साज़िश’ से नाराज़ होकर गहलोत घोषणा करते कि वह अपने समर्थकों के साथ पार्टी छोड़ रहे हैं? वैसी स्थिति में क्या बीजेपी गहलोत को अपने साथ लेने को तैयार हो जाती?

हक़ीक़त यह है कि जिन विधायकों का इस समय गहलोत को समर्थन प्राप्त है उनमें अधिकांश कांग्रेस पार्टी के साथ हैं और जो छोड़ कर जा रहे हैं वे सचिन के विधायक हैं। यही स्थिति मध्य प्रदेश में भी थी। जो छोड़कर बीजेपी में गए उनकी गिनती आज भी सिंधिया खेमे के लोगों के रूप में होती है, ख़ालिस बीजेपी कार्यकर्ताओं की तरह नहीं।

सवाल यह भी है कि कांग्रेस पार्टी को अगर ऐसे ही चलना है तो फिर राहुल गाँधी किसकी ताक़त के बल पर नरेंद्र मोदी सरकार को चुनौती देना चाह रहे हैं? वह अगर बीजेपी पर देश में प्रजातंत्र को ख़त्म करने का आरोप लगाते हैं तो उन्हें इस बात का दोष भी अपने सिर पर ढोना पड़ेगा कि अब जिन गिने-चुने राज्यों में कांग्रेस की जो सरकारें बची हैं वह उन्हें भी हाथों से फिसलने दे रहे हैं। 

कांग्रेस में नए लोग आ नहीं रहे हैं और जो जा रहे हैं उनके लिए शोक की कोई बैठकें नहीं आयोजित हो रही हैं। असंतुष्ट नेताओं में सचिन और सिंधिया के साथ-साथ मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, प्रियंका चतुर्वेदी और संजय झा की भी गिनती की जा सकती है।

गोवा तब कैसे हाथ से निकल गया उसकी चर्चा न करें तो भी देखते ही देखते मध्य प्रदेश चला गया, अब राजस्थान संकट में है। महाराष्ट्र को फ़िलहाल कोरोना बचाए हुए है। छत्तीसगढ़ सरकार को गिराने का काम ज़ोरों पर है। संकट राजस्थान का हो या मध्य प्रदेश का, यह सब बाहर से पारदर्शी दिखने वाली पर अंदर से पूरी तरह साउंड-प्रूफ़ उस दीवार की उपज है जो गाँधी परिवार और असंतुष्ट युवा नेताओं के बीच तैनात है। इस राजनीतिक भूकम्प-रोधी दीवार को भेदकर पार्टी का कोई बड़ा से बड़ा संकट और ऊँची से ऊँची आवाज़ भी पार नहीं कर पाती है।

is sachin pilot revolt against rahul gandhi rather than ashok gehlot - Satya Hindi

पिछले साल लोकसभा के चुनाव परिणाम आने के बाद कश्मीर में पीडीपी की नेता महबूबा मुफ़्ती ने ट्वीट करते हुए ‘शुभकामना’ संदेश तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा था पर ‘कामना’ संदेश कांग्रेस के लिए था कि उसके पास भी एक ‘अमित शाह’ होना चाहिए। सवाल यह है कि गाँधी परिवार या कांग्रेस में किसी अमित शाह को बर्दाश्त करने की गुंजाइश अभी बची है क्या? और राहुल गाँधी इसलिए मोदी नहीं बन सकते हैं कि वह अपने अतीत और परिवार को लेकर सार्वजनिक रूप से उस तरह से गर्व करने में संकोच कर जाते हैं जिसे वर्तमान प्रधानमंत्री न सिर्फ़ सहजता से कर लेते हैं बल्कि उसे अपनी विजय का हथियार भी बना लेते हैं।

विचार से ख़ास

अर्नब गोस्वामी द्वारा पिछले लोकसभा चुनावों के समय अपने चैनल के लिए लिया गया वह चर्चित इंटरव्यू याद किया जा सकता है जिसमें राहुल गाँधी ने कहा था : ‘मैंने अपना परिवार नहीं चुना। मैंने नहीं कहा कि मुझे इसी परिवार में पैदा होना है। अब दो ही विकल्प हैं: या तो मैं सब कुछ छोड़कर हट जाऊँ या फिर कुछ बदलने की कोशिश करूँ।’ राहुल गाँधी दोनों विकल्पों में से किसी एक पर भी काम नहीं कर पाए।

कई लोग सवाल कर रहे हैं कि ऐसे समय जबकि कांग्रेस पार्टी चारों तरफ़ से घोर संकट में है, क्या सचिन पायलट इस तरह से विद्रोह करके उसे और कमज़ोर नहीं कर रहे हैं? इसका जवाब निश्चित ही एक बड़ी ‘हाँ’ में ही होना चाहिए पर साथ में यह जोड़ते हुए कि इस नए धक्के के बाद अगर पार्टी नेतृत्व जाग जाता है तो उसे एक बड़ी उपलब्धि माना जाना चाहिए। हो सकता है इसके कारण वह भविष्य में हो सकने वाले दूसरे बहुत सारे नुक़सान से बच जाए। किसे पता सचिन यह विद्रोह वास्तव में कांग्रेस पार्टी को बचाने के लिए ही कर रहे हों!
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
श्रवण गर्ग

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें