loader

नेहरू ने इंदिरा को शांति निकेतन में क्यों पढ़ाया?

बने रहो गिरोहियों, बनी रहे तुम्हारी मूर्खता, तुम्हारा कुप्रचार। तुमने माजी में पड़े बेहतरीन वाकयात को फिर जगा दिया, जिस पर नालायक  कांग्रेसियों ने ख़ुद राख डाल दिया था। लेकिन तुमने नई पीढ़ी को कुरेद कर उठा दिया। अपने कुत्सित प्रचार से। तुम्हारे निशाने पर रहे बापू, पंडित नेहरू,  इंदिरा गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी। दो अभी सामने हैं -राहुल और प्रियंका। इन्हें आज की युवा पीढ़ी देख रही है, बतिया रही है लेकिन जो माजी में जाकर भी चमक रहे हैं, नई पीढ़ी उन्हें अब खोज कर पढ़ रही है। तुम्हारा प्रचार है - नेहरू के कपड़े विदेश से धुल कर आते थे, तुम्हारा प्रचार है नेहरू का सिगरेट हवाई जहाज से आता था। चलो माजी में टहलो।

पंडित नेहरू की एक संतान है। इंदु। इंदु के पिता जवाहर लाल नेहरू जेल में हैं, मा क्षय रोग से पीड़ित, अस्पताल में हैं। स्विट्जरलैंड में इलाज चल रहा है। सुभाषचन्द्र बोस कमला नेहरू की देखभाल कर रहे हैं। इतिहास का यह हिस्सा पत्थर को भी नम कर सकता है इंसान की क्या बिसात। उसी सुभाषचन्द्र बोस और उसी नेहरू को तुम आमने सामने खड़ा करते हो?

ताज़ा ख़बरें

पंडित नेहरू इंदु का दाखिला कराते हैं शांति निकेतन में।  

एक पिता अपनी पुत्री को कैसी शिक्षा दिलाना चाहता है, गुरुवर रवींद्रनाथ टैगोर को लिखे एक खत को पढ़ कर समझा जा सकता है, जिसके मजमून में है - हम अपनी बेटी को स्विट्जरलैंड भेजना चाहते थे, लेकिन हालात ऐसे नही हैं कि उसे विदेश भेज सकूं। अपना ही ख़र्च किसी तरह चल रहा है। (पिता मोतीलाल नेहरू और उनके पुत्र जवाहरलाल नेहरू के बीच एक करार हुआ है - नेहरू अब अपना ख़र्च स्वयं निकालें। गवाही में बापू हैं। खादी के सूत बेच कर, लेख लिख कर, जो कुछ मिल रहा था, उसी पर नेहरू आश्रित थे) पंडित नेहरू आगे लिखते हैं- हम अपनी बेटी को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाना चाहते। इसलिए उसे शांति निकेतन भेज रहे हैं। नेहरू ने लिखा है- हम तो यह भी चाहते हैं कि वह एक साल तक पढ़ाई के साथ-साथ किसी कारखाने में मज़दूर की तरह काम करके श्रम की महत्ता जानें। ख़त का अगला हिस्सा है हमारी बेटी के साथ सामान्य व्यवहार किया जाए और उसे अन्य छात्रों की तरह ही रखा जाए। अलग से कोई व्यवस्था न हो। 

इंदु यानी इंदिरा गांधी शांति निकेतन की छात्रा हो गयीं। इनके अध्यापकों के नाम सुन लें- गुरुवर स्वयं, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, नंदलाल बोस, ऋत्विकघटक, बलराज साहनी आदि। शांति निकेतन में पहली गतिविधि उठी एक सामान्य सवाल पर। दुनिया के बेहतरीन कलाकार माने जाने वाले श्री नंदलाल बोस इन बच्चों को चित्रकला पढ़ाते, सिखाते थे।
इस कक्ष में जूता चप्पल पहन कर आना सख़्त मना था। एक नए अंग्रेज़ प्रोफेसर आये थे, बार-बार मना करने पर भी वे नहीं मानते। दूसरे दिन प्रोफेसर की कक्षा बिल्कुल खाली। एक भी छात्र नहीं।
यह शिकायत गुरुवर के पास गई। उन्होंने इसकी तफसीस में असल घटना की जानकारी पाया तो प्रोफेसर साहब को मना कर दिया पढ़ाने से। प्रोफेसर हट गए। कक्षा बहिष्कार के दो सूत्रधार थे- पंडित नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी और दूसरे ख़ान अब्दुल गफ्फार खान के पुत्र वली खान।  
jawaharlal nehru death anniversary - Satya Hindi

दूसरी घटना ज़रूरी है गिरोही इसे समझें- 6 फरवरी 1935 । बंगाल के नए गवर्नर आये जॉन एंडरसन। परंपरा के अनुसार एंडरसन को शांति निकेतन आना था और देश में आज़ादी की ललक बढ़ चुकी थी। शांति निकेतन उससे अछूता नहीं था, बल्की एक तरह केंद्र बन चुका था। गवर्नर के आने की सूचना से जिला प्रशासन चौकन्ना था। शांति निकेतन में कुछ उपद्रव न हो, इसके लिए ज़िला प्रशासनिक अधिकारी लोग गुरुदेव से मिलने गए। कलेक्टर और पुलिस कप्तान ने प्रस्ताव रखा कि गवर्नर के आने पर अशांति की संभावना है, इसलिए कुछ लोगों को हिरासत में लेने की बात उठी। इतना सुनते ही गुरुवर रविन्द्रनाथ टैगोर ग़ुस्से से लाल हो गए और अपने सहायक से कहा- गवर्नर के यहाँ तार भेज कर मना कर दो यहाँ न आएँ। और गुरुवर उठ कर अपने कमरे में चले गए। कलेक्टर और कप्तान की हालत बुरी। किसी तरह गुरुवर तैयार हुए और उन्होंने कहा जिस दिन गवर्नर आएंगे यहाँ न कोई छात्र रहेगा और न ही अध्यापक, उस दिन सब पिकनिक पर रहेंगे। 

विचार से ख़ास
यही हुआ। गवर्नर आये। सन्नाटे में इधर उधर घूम कर देखा। अचानक उनकी निगाह महिला छात्रावास के एक कमरे की तरफ़ गयी। वे उस कमरे में गए। एक टेबल पर सलीके से लगी किताबों को देखने लगे। पहली किताब थी जार्ज बर्नार्ड शॉ की लिखित 'ऐन इंटेलिजेंट वीमेन्स गाइड टू सोशलिज्म'। उस टेबल पर तमाम किताबें समाजवाद से जुड़ी हुई थीं। एंडरसन चौंका और पूछा ये किस ' रेड लेडी' की किताबें हैं। बताया गया यह जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा प्रियदर्शिनी की किताबें हैं। एंडरसन मुस्कुराया और आगे बढ़ गया। उसे जब शांति निकेतन के सन्नाटे की वजह मालूम हुई तो बहुत ग़ुस्सा हुआ और दूसरे दिन कलेक्टर और कप्तान ज़िला बदल हो गए।
(जनादेश से साभार)
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
चंचल

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें