डीके शिवकुमार
कांग्रेस - कनकपुरा
अभी रुझान नहीं
आख़िरकार पूर्व केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के प्रमुख नेताओं में शुमार जितिन प्रसाद ने भी कांग्रेस का दामन छोड़कर उस संघ परिवार के अनुषांगिक संगठन भाजपा का दामन थाम लिया जिससे कभी उनके पिता जितेंद्र प्रसाद लड़ते रहे हैं। भाजपा के ‘ऑपरेशन जितिन’ ने एक तरफ तो कांग्रेस और सोनिया-राहुल-प्रियंका को चोट दी है तो दूसरी तरफ पार्टी के भीतर ही बगावती मूड में चल रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस कदर असहज किया कि अगले दिन ही यानी गुरुवार की दोपहर योगी आदित्यनाथ को अचानक दिल्ली आकर गृह मंत्री अमित शाह और अगले दिन भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने को मजबूर होना पड़ा है।
अभी जितिन प्रसाद ही भाजपा में गए हैं, लेकिन अपनी आक्रामक चुनावी रणनीति के लिए मशहूर भाजपा की योजना अगर फलीभूत हो गई तो कांग्रेस के कुछ और नेता, जो अपने सियासी भविष्य और नेतृत्व की अक्षमता को लेकर परेशान हैं, भी कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा का कमल पकड़ सकते हैं। इनमें पूर्वांचल के एक पूर्व सासंद, जितिन के ही साथ सरकार और संगठन में रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री और एक पुराने राजनीतिक परिवार के वारिस के नाम भी लिए जा रहे हैं।
जितिन से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पूरे सियासी कुनबे के साथ भाजपा में शामिल होकर मध्य प्रदेश में 15 साल बाद आई उस कांग्रेस सरकार को गिरा चुके हैं जिसे बनाने में उन्होंने भी ख़ून पसीना एक किया था। एक एक करके कांग्रेस के कई प्रमुख नेता या तो दूसरे दलों में जा रहे हैं या फिर निष्क्रिय होकर घर बैठ गए हैं, लेकिन अपने दरबारियों और चापलूसों से घिरे कांग्रेस के प्रथम परिवार को अपने राजमहल से बाहर झांकने की फुर्सत नहीं है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी उम्र और सेहत के दबाव में अशक्त हो चली हैं, जबकि पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी के बीच कौन ज्यादा ट्वीट करे इसकी अघोषित प्रतियोगिता चल रही है। संगठन की सारी सत्ता और शक्तियों का केंद्रीयकरण इस कदर है कि ज़िला कमेटियों तक का फ़ैसला दिल्ली से ही होता है और उसमें ज़मीनी नेताओं की नहीं चापलूस दरबारियों और उन वेतनभोगी कर्मचारियों की सुनी जाती है जो नेतृत्व को सिर्फ़ वही तस्वीर दिखाते हैं जो वह देखना चाहता है।
अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो प्रियंका गांधी के कार्यभार संभालने और लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद अजय कुमार लल्लू को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया तो उनकी नियुक्ति को लेकर महज एक बैठक करने वाले रामकृष्ण द्विवेदी, सत्यदेव त्रिपाठी, भूधर नारायण मिश्र, डॉ. संतोष कुमार सिंह, नेकचंद पांडे जैसे करीब एक दर्जन से ज्यादा उन पुराने निष्ठावान कांग्रेसियों को पार्टी से बाहर कर दिया गया जो लगातार प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में लाने की वकालत करते नहीं थकते थे। काफी समझाने बुझाने के बाद किसी तरह बुजुर्ग रामकृष्ण द्विवेदी की पार्टी में वापसी तो हो गई लेकिन उसके कुछ ही समय बाद उनका निधन हो गया। बाक़ी नेता आज भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की वापसी का सपना संजोए पार्टी से बाहर बैठे हैं।
जो कांग्रेस छोड़कर जा चुके हैं, उनके अलावा कई ऐसे भी हैं जो मौक़े की तलाश में हैं या अभी असमंजस में हैं। सचिन पायलट हालांकि बार बार यह कहते रहे हैं कि वह भाजपा में नहीं जाएंगे, लेकिन जब वह अपनी बगावत खत्म करके वापस आए थे तब उनसे जो वादे नेतृत्व ने किए थे उनमें से एक भी अभी तक पूरा न होने की वजह से उनके और उनके समर्थकों के मन में भी क्षोभ है और यह क्षोभ कब विद्रोह में बदल जाए कोई नहीं बता सकता। मिलिंद देवड़ा, संजय निरूपम, संजय झा, संदीप दीक्षित जैसे कई नाम इस श्रेणी के हैं।
एक एक करके विकेट गिर रहे हैं लेकिन कांग्रेस नेतृत्व के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है। नेतृत्व के निकटवर्ती सूत्रों से जब इस बारे में बात की जाती है तो एक ही जवाब मिलता है कि कांग्रेस बहुत बड़ा जहाज है और इसमें लोग आते जाते रहते हैं।
साथ ही बड़े अहंकार से यह भी कहा जाता है कि आखिर नई कांग्रेस तब ही बनेगी जब पार्टी का पुराना कचरा साफ होगा। इसकी एक बानगी कांग्रेस की राज्य इकाइयों की प्रतिक्रिया में देखी जा सकती है जो जितिन प्रसाद के भाजपा में शामिल होने को लेकर आई है। मध्य प्रदेश कांग्रेस ने ट्वीट करके कहा कि कूड़ा कूड़ेदान में गया। इसी तरह छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस ने ट्वीट करके जितिन प्रसाद के कांग्रेस से भाजपा में जाने का शुक्रिया अदा किया। इन प्रतिक्रियाओं से साफ है कि पार्टी नेतृत्व अपने नेताओं के लगातार कांग्रेस छोड़ने से कोई सबक़ सीखने का इच्छुक नहीं है क्योंकि प्रदेश संगठनों की ये प्रतिक्रियाएँ बिना केंद्रीय नेतृत्व की सहमति के नहीं आ सकती हैं।
सिंधिया और जितिन जैसे युवा नेताओं ने भले ही कांग्रेस छोड़कर अपने निजी हित सुरक्षित कर लिए हों लेकिन उन्होंने कांग्रेस और उसकी विचारधारा का बहुत बड़ा नुक़सान किया है।
कांग्रेस के वो कार्यकर्ता और नेता जिन्होंने पूरी निष्ठा से पार्टी में काम किया लेकिन उन्हें कभी कुछ भी ज्यादा नहीं मिला, कहते हैं कि सिंधिया, जितिन, सचिन, मिलिंद, अशोक तंवर जैसे युवा नेताओं को उनकी उम्र और अनुभव से कहीं ज्यादा पार्टी ने संगठन और सरकार में सब कुछ दिया। फिर भी अगर वो संतुष्ठ नहीं हैं तो फिर कहीं भी संतुष्ट नहीं रह सकते। यही तर्क कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता भी देते हैं कि जो छोड़कर गए हैं उन्हें पार्टी ने सब कुछ और ज़रूरत से ज्यादा दिया। तब सवाल उठता है कि क्या पार्टी नेतृत्व ने ग़लत लोगों पर कृपा की और निष्ठावानों की जो उपेक्षा हुई ये उसकी सजा है। विश्वनाथ चतुर्वेदी जैसे तमाम दिलजले कांग्रेसी यही कहते हैं।
चतुर्वेदी इन दिनों सोशल मीडिया पर जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद पर भी अनेक आरोप लगाते हुए अपनी पोस्ट डाल रहे हैं। सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद भी चतुर्वेदी इसी तरह सोशल मीडिया पर सक्रिय रहे थे। दरअसल, विश्वनाथ चतुर्वेदी के ही मुक़दमे की वजह से दस साल तक यूपीए को समाजवादी पार्टी का बिना शर्त समर्थन मिलता रहा था, लेकिन बदले में इस वफादार कांग्रेसी को पार्टी से कुछ नहीं मिला। जबकि उन्होंने मुलायम सिंह और अमर सिंह की तरफ से कई प्रलोभन ठुकरा दिए थे।
कांग्रेस की दुर्दशा में उनका भी योगदान है। लेकिन अब उन्हें अपने हितों की चिंता है, इसलिए इस तरह की मुहिम महज अपने हितों की सुरक्षा के लिए चलाई जा रही है।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें