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जूलियो रीबेरो : बीजेपी ने नफ़रत का माहौल बना रखा था, दिल्ली में दंगा होना ही था

पंजाब में आतंकवाद को ख़त्म करने वाले पूर्व पुलिस प्रमुख जूलियो रीबेरो इस बात पर दुखी हैं कि देश में नफ़रत का जो माहौल बनाया जा रहा है, उससे देश की विविधता के ख़त्म होने का ख़तरा है। पेश है ‘द ट्रिब्यून’ में छपे उनके लेख का हिन्दी अनुवाद :
जूलियो रीबेरो
मैं अपने देश के लिए जितना दुखी आज हूँ, पहले कभी नहीं था। दुनिया के देशों में तेज़ी से आगे बढ़ते हुए भारत के लिए जो सम्मान था, वह हिन्दू राष्ट्र की चाह लिए हिन्दुत्ववादी ताक़तों के तेज़ी से आगे बढ़ने की वजह से धीरे धीरे कम हो रहा है। 

भारत के बाहर पहली यात्रा मुझे आज भी याद है। यह जनवरी 1980 की बात है और मैं जापान गया था। मैं रविवार की सुबह टोक्यो में एक चर्च गया था, मेरे साथ जापान सरकार के दो अतिथि भी थे। सड़क पर मेरे बगल से एक भारतीय जोड़ा गुजरा, मैंने मुस्करा कर और सिर हिला कर उनका अभिवादन किया। इस पर मेरे साथ चल रहे दोनों विदेशी बहुत प्रभावित हुए। 

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भारतीय एक दूसरे को पहचान लेते हैं

‘आप उन्हें कैसे जानते हैं?’, उन्होंने मुझसे पूछा। उन्हें यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि विदेशों में रहने वाले भारतीय एक दूसरे को देख कर पहचान लेते हैं भले ही 500 किलोमीटर दूर रहते हों, अलग-अलग भाषाएँ बोलते हों, अलग-अलग ईश्वरों को पूजते हों, भीड़ में भी वे एक दूसरे को पहचान ले कते हैं और उनमें एक किस्म का याराना हो जाता है  

हिन्दू राष्ट्र बनाने की पागलपन भरी अफरातफरी में हिन्दुत्ववादी ताक़तें एक देश के होने की और एक होने की इस भावना को नष्ट करने पर तुली हुई हैं।
जिन लोगों को मैं वर्षों से जानता हूँ और अपना दोस्त समझता हूँ, वे आज ऊपर से नीचे तक बँटे हुए हैं। यह बँटवारा मोटे तौर पर सांप्रदायिक आधार पर है, हालांकि मेरे कई दोस्त मेरे मुसलमान मित्रों के साथ दुखी हैं। लेकिन मैं इस पर परेशान हूँ कि इतनी ही तादाद में मेरे हिन्दू दोस्तों को यकायक रातोरात यह लगने लगा है कि जो ‘दूसरे’ हैं, वे 'ख़तरनाक जानवर' हैं और उन्हें दूर रखना चाहिए।
मुझे अब लगने लगा है कि यह भावना अंदर ही अंदर दबी पड़ी रही होगी। अब यह खुल कर सामने इसलिए आ रही है कि मोदी और शाह ने उन्हें उकसाया कि वे अपनी हिन्दू पहचान को प्राथमिकता दें। 

तत्कालीन संघ प्रमुख से मुलाक़ात

आरएसएस के सरसंघचालक के. एस. सुदर्शन से मुलाक़ात मुझे याद आ रही है। मैं 1994 में रोमानिया से लौटा ही था। एक आईपीएस अफ़सर मित्र मेरे लिए न्योता लेकर आए थे। 

सुदर्शन ने कहा कि उन्होंने आतंकवाद के ख़िलाफ़ मेरी लड़ाई के बारे में सुन रखा है, पर वह मुझसे जानना चाहते थे कि 84 प्रतिशत हिन्दुओं के साथ उनके अपने ही देश में दूसरे दर्जे के नागरिक की तरह व्यवहार क्यों होना चाहिए। मैं इस बात पर और इसे इस तरह खुले आम कहने पर मैं भौंचक रह गया। और मैंने वह कह भी दिया।
इस देश की विशाल जनसंख्या के 2.4 प्रतिशत ईसाई हैं और एक ईसाई के रूप में मुझे कभी नहीं लगा कि यहाँ किसी वर्ग की बेइज्जती की जाती है, एक ईसाई के रूप में मुझे ऐसी शिकायत करने की कोई वजह नहीं मिली।

बड़ी ग़लती ठीक करने की कोशिश

पर सुदर्शन इससे संतुष्ट नहीं थे। वह इस बात को लेकर पूरी तरह निश्चिंत थे कि 84 प्रतिशत हिन्दुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया गया है। मैं यह नहीं समझ पाया कि आरएसएस कैसे इस निष्कर्ष पर पहुँचा, पर आज मैं यह समझ सकता हूं कि मोदी और शाह जिस रास्ते पर चल रहे हैं, समझते हैं कि उससे बड़ी ग़लती ठीक हो जाएगी। 

एक मुसलिम राज्य के दर्जे को कम कर और सीएए के फ़ायदे से सिर्फ़ एक धर्म को बाहर निकाल कर 84 प्रतिशत आबादी में से असंतुष्ट लोगों ने ज़्यादा तरजीह पाए अल्पसंख्यकों को उनकी असली जगह दिखाने की दिशा में पहला गोला दाग दिया है। 

टुकड़े-टुकड़े गैंग

इस 84 प्रतिशत में वे लोग भी हैं, जो यह नहीं मानते कि उनके साथ भेदभाव किया गया। ‘अर्बन नक्सल’, वामपंथी ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’, छिटपुट ‘राष्ट्र द्रोही’ जो मोदी और शाह की नफ़रत की राजनीति से असहमत हैं, उनके अलावा हाथ में झाड़ू लिए इस केजरीवाल ने भी नाक में दम कर रखा है। और इसने दिल्ली में 8 फरवरी को हुए चुनाव में ज़बरदस्त जीत हासिल कर ली।  

आम आदमी पार्टी की जीत उन लोगों के मुँह पर तमाचा था हालांकि बीजेपी ने ‘गाली’ और ‘गोली’ के भरपूर इस्तेमाल का फ़ैसला किया था। ‘ संप्रदाय के आधार पर जनता को प्रभावित करने की रणनीति नाकाम रही।
एक ऐसा हिन्दू राष्ट्र जो सेना और सरकार को अपने मन से चलाने के मामले में पाकिस्तान को टक्कर दे सके, ऐसे राष्ट्र के निर्माण के लिए मोदी और शाह की सोची समझी स्पष्ट रणनीति यह है कि ज़्यादा से ज़्यादा चुनाव जीते जाएं।

दिल्ली चुनाव का महत्व

दिल्ली का चुनाव उनके लिए इस तरह प्रतिष्ठा का विषय था कि इसे किसी भी कीमत पर जीतना ज़रूरी था और इसलिए उन्होंने ‘गाली’ और ‘गोली’ का सहारा लिया, जिससे राजनीतिक वातावरण इतना दूषित हो गया कि आने वाले समय में इसके नतीजों के बारे में सोच कर मैं सिहर उठता हूँ।
बिना सोचे समझे बोलने वाले बीजेपी नेताओं ने जो नफ़रत फैलाई थी, ऐसे में दिल्ली में दंगे होना स्वाभाविक ही था।
मोदी ने संसद में कहा कि नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोधियों का समर्थन करने की विपक्ष की नीति से देश में विभाजन बढ़ रहा है, जो कभी पाटा नहीं जा सकता। मुझे इस पर अचरज हुआ, क्योंकि मैं मानता हूँ कि ‘दूसरों’ के ख़िलाफ़ जो नफ़रत फैलाया जा रहा है, उससे देश में खाई बढ़ रही है। 

एक ऐसे आदमी के लिए जो मुंबई की झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले सभी धर्मों के लोगों को मुहल्ला कमिटी आन्दोलन के ज़रिए एक मंच पर लाने की कोशिश में लगा हो, बिल्कुल उल्टी दिशा में जा रही किसी राजनीतिक दल को रोकना बेहद चुनौती भरा काम है।

हमारी आशा की एकमात्र उम्मीद यह बची है कि दोनों नेता यकायक यह सोचने लगें कि उन्होंने विध्वंस का जो आत्मघाती रास्ता चुना है, उससे देश की विविधता नष्ट हो जाएगी। जब तक उनमें यह सोच पनपती है, मैं उसी तरह रोता रहूँगा जिस तरह एलन पैटन दक्षिण अफ्रीका के लिए रोया करते थे जब वह देश ‘रंगभेद’ में डूबा हुआ था। 

('द ट्रिब्यून' से साभार)
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