मेरे विचार में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोयान द्वारा प्रसिद्ध हागिया सोफ़िया को मसजिद में बदलने का फ़ैसला एक प्रतिक्रियावादी क़दम है, और इसकी निंदा की जानी चाहिए।
एर्दोयान ने यह नौटंकी इसलिए की क्योंकि तुर्की की अर्थव्यवस्था तेज़ी से डूब रही है। बेरोज़गारी एक रिकॉर्ड ऊँचाई पर है और तुर्क बड़ी संख्या में तुर्की छोड़कर दूसरे देशों में रोज़गार की तलाश के लिए पलायन कर रहे हैं। नतीजतन, एर्दोयान की लोकप्रियता तेज़ी से कम हो रही है।
1920 के दशक के प्रारंभ तक तुर्की एक ग़रीब, पिछड़ा, सामंती देश था, जो एक सुल्तान के शासन का नतीजा था जिसने इसे अपने फ़ायदे के लिए पिछड़ा बना रखा। इसे 'द सिक मैन ऑफ़ यूरोप' कहा जाता था, और यूरोपीय शक्तियों द्वारा इसे अक्सर बेइज़्ज़त किया जाता था।
मुस्तफा कमाल जो एक सैन्य अधिकारी थे, ने महसूस किया कि उनके देश की यह दयनीय स्थिति इसके पिछड़ेपन का कारण थी, और उन्होंने देश की बागडोर अपने हाथ में लेने के बाद इसे आधुनिक बनाने का फ़ैसला किया। 1920 के दशक में उन्होंने शरिया क़ानून, बुर्का और मदरसों को ख़त्म कर दिया और तुर्की को एक आधुनिक धर्मनिरपेक्ष देश बनाया।
उन्होंने जिन सुधारों की शुरुआत की उनमें हागिया सोफ़िया का धर्मनिरपेक्ष होना और 1935 में इसे एक संग्रहालय बनाना था। यह अद्भुत इमारत बाईजेंटाइन साम्राज्य में एक चर्च हुआ करती थी जिसे 537 ईस्वी में सम्राट जस्टिनीयान द्वारा बनाया गया था। इसे 1457 में ऑटोमन सुल्तान मेहमद द्वितीय द्वारा कांस्टेंटिनोपल (आज का इस्तांबुल) जीतने के बाद एक मसजिद में बदल दिया गया था।
अब राष्ट्रपति एर्दोयान घड़ी के कांटे घुमाकर वापस पहले की तरह एक धर्मनिरपेक्ष देश को इसलामिक देश में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। हागिया सोफ़िया को एक मसजिद में बदलने का उनका नवीनतम निर्णय, सस्ती लोकप्रियता पाने और अपनी असफल छवि को सुधारने की एक कोशिश है। यह क़दम वास्तव में जनता का ध्यान आर्थिक संकट से भटकाने के लिए है जिससे तुर्की गुज़र रहा है, और जिसका एर्दोयान को पता नहीं कि इसका हल कैसे किया जाए।
अंततः मैं कहना चाहता हूँ कि आज जिन चीज़ों की आवश्यकता है वे मसजिद, चर्च या मंदिर नहीं, बल्कि अच्छे स्कूल, वैज्ञानिक संस्थान, इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, अस्पताल आदि हैं जो देश को आगे ले जाएँगे, न कि हागिया सोफ़िया को मसजिद बनाने के क़दम जो एक राजनीतिक स्टंट से अलग कुछ नहीं है।
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