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तरक्की करनी है तो धर्म छोड़कर विज्ञान को अपनाएं

धर्म विश्वास और दिव्य रहस्योद्घाटन पर निर्भर है जबकि विज्ञान प्रयोग और तर्क पर निर्भर है। धर्म पूर्णतः परम होने का दावा करता है और इसे बदला नहीं जा सकता। विज्ञान में कोई बात अंतिम नहीं है और वैज्ञानिक सिद्धांत नियमित रूप से परीक्षित भी किए गए हैं और बदले भी गए हैं। अगर हमें प्रगति करनी है तो हमें धर्म छोड़कर विज्ञान को अपनाना चाहिए। 
जस्टिस मार्कंडेय काटजू

मैंने उमर फारूक के लेख ‘क्या पाकिस्तान के मुल्ला कभी आधुनिकता का विरोध करना बंद करेंगे?' पढ़ा, जो nayadaur.tv में प्रकाशित हुआ है। लेखक ने मुल्लाओं द्वारा महिलाओं के सशक्तिकरण, अल्पसंख्यक अधिकारों और आधुनिक राजनीतिक विचारों के विरोध का उल्लेख किया है। शायद फारूक ने यह बात मौलवी तारिक जमील द्वारा हाल ही में लगाए गए आरोप कि पाकिस्तान में कोविड -19 की वृद्धि के लिए महिलाओं का अभद्र पहनावा जिम्मेदार है, के सन्दर्भ में कही है।

फारूक के इस प्रश्न से यह प्रतीत होता है कि उनके अनुसार मुल्ला चाहें तो आधुनिकता का समर्थन कर सकते हैं। मेरे अनुसार यह एक भ्रम है। धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के विपरीत हैं। वे अलग-अलग हैं और यह कहना असत्य है (जैसा कि कुछ लोग कहते हैं) कि वे एक-दूसरे के पूरक हैं। 

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चूंकि मुल्ला एक धर्म विशेष का व्यक्ति है, इसलिए वह आधुनिकता का वास्तव में कभी समर्थन नहीं कर सकता क्योंकि आधुनिकता विज्ञान की उपज है। इसलिए मुल्ला लोग हमेशा प्रतिक्रियावादी रहेंगे। धर्म कहता है कि ईश्वर नामक एक अलौकिक जीव है, जो अमर, स्थायी, सर्व शक्तिशाली, दयालु, सभी के लिए अच्छा करने वाला है, आदि।

विज्ञान अलौकिक चीज़ों में विश्वास नहीं करता है। यह विश्वास नहीं करता है कि ब्रह्मांड में कुछ भी स्थायी है। सब कुछ बदल रहा है और प्रवाह में है, कुछ नियमों के अनुसार, जिसे वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा खोजा जा सकता है।

विज्ञान मानता है कि भगवान, फ़रिश्तों, परियों, राक्षसों, चुड़ैलों या आत्मा जैसी कोई अलौकिक चीज़ नहीं है और इसलिए आत्मा के पुनर्जन्म या निर्णय दिवस पर पुनरुत्थान जैसी कोई चीज नहीं है। दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है, सब कुछ बदल रहा है और कुछ नियमों के अनुसार प्रवाहिक अवस्था में है, जो नियम वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा खोजे जा सकते हैं।

विज्ञान मानता है कि केवल पदार्थ ही एकमात्र वास्तविकता है, जो कुछ नियमों के अनुसार गति में है। कुछ लोग पूछते हैं कि आखिर ये पदार्थ बनाया किसने? उत्तर है- पदार्थ का कोई निर्माता नहीं है। पदार्थ पदार्थ से आया हालाँकि ये रूप बदलता रहता है।

हर कदम पर जैसे-जैसे विज्ञान (जो सत्य पर आधारित है) आगे बढ़ता है, धर्म उसी गति से पीछे की ओर हटता चला जाता है। इस प्रकार, एक समय में लोगों ने सोचा था कि चेचक रोग एक देवी (माता) के गुस्से के कारण है, लेकिन अब हम जानते हैं कि यह एक वायरस के कारण है और टीकाकरण से इसे रोका जा सकता है। 

लोगों ने एक समय सोचा था कि वर्षा एक बारिश देवता, इंद्र के कारण होती है और इसलिए अगर सूखा पड़ता है तो हमें उस भगवान को किसी तरह से संतुष्ट करना होगा (भारत में कई लोग अभी भी ऐसा मानते हैं)। आज हम जानते हैं कि गर्म भूमि पर कम दबाव वाले क्षेत्रों के निर्माण के कारण बारिश होती है। 

एक समय में लोगों का मानना था कि आदम और हव्वा ईश्वर द्वारा बनाए गए थे। बाद में डार्विन ने साबित किया कि पुरुष वानरों से विकसित हुए।

विज्ञान का आधार प्रयोग और तर्क

धर्म विश्वास और दिव्य रहस्योद्घाटन पर निर्भर है। विज्ञान अवलोकन, प्रयोग और तर्क पर निर्भर है। धर्म पूर्णतः परम होने का दावा करता है और इसे बदला नहीं जा सकता। इस प्रकार, वेद, कुरान, बाइबिल आदि को नहीं बदला जा सकता है। विज्ञान में कोई अंतिम बात नहीं है और वैज्ञानिक सिद्धांत नियमित रूप से परीक्षित भी किए गए हैं और बदले भी गए हैं।

उदाहरण के लिए, न्यूटन ने 1666 में कहा कि प्रकाश कणों के रूप में जाता है। लेकिन 1678 में डच वैज्ञानिक ह्यूजेंस ने अपने फ्रेस्नेल सिद्धांत को प्रतिपादित किया कि प्रकाश तरंगों के रूप में यात्रा करता है। बहुत बाद में मैक्सप्लैंक ने 1900 में अपने क्वांटम सिद्धांत को प्रतिपादित किया कि प्रकाश कणों के रूप में जाता है। उसके बाद में, क्वांटम थ्योरी, जैसा कि डी ब्रोगली द्वारा प्रस्तावित किया गया था और हाइजेनबर्ग, श्रोडिंगर द्वारा प्रचार किया गया कि कणों की कल्पना तरंगों के रूप में की जा सकती है।

धर्म कहता है कि ब्रह्मांड का निर्माण एक विशेष समय में ईश्वर ने किया था, सभी जीवों के साथ। लेकिन डार्विन ने अपने विकासवाद के सिद्धांत से साबित कर दिया कि जीव विकसित हुआ है। धर्म कहता है कि ब्रह्माण्ड का निर्माता कोई न कोई तो है, जो कि ईश्वर है। बाइबल और क़ुरान सृष्टिवाद को मानते हैं जबकि विज्ञान विकास के सिद्धांत को मानता है।  

विज्ञान कहता है कि ऐसा कोई रचनाकार नहीं है। ब्रह्मांड में एकमात्र वास्तविकता पदार्थ है (या पदार्थ-ऊर्जा, क्योंकि पदार्थ और ऊर्जा एक ही पदार्थ के दो रूप हैं, जैसा कि आइंस्टीन ने साबित किया है) और पदार्थ कुछ नियमों के अनुसार गति में है, जिसे वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा खोजा जा सकता है। अगर यह पूछा जाए कि पदार्थ कहां से आया है, तो इसका उत्तर है कि पदार्थ पदार्थ से आया है।

अगर यह कहा जाए कि हर चीज के लिए एक निर्माता होना चाहिए, तो उसी तर्क के अनुसार उस निर्माता का भी कोई निर्माता होना चाहिए अर्थात एक श्रेष्ठ निर्माता और उस श्रेष्ठ निर्माता का भी एक निर्माता होना चाहिए, यानी श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठ निर्माता इत्यादि। इसे अनंत प्रतिगामी की भ्रान्ति कहा जाता है।  

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गरीबी दूर क्यों नहीं करते भगवान?

धर्म कहता है कि भगवान सर्व शक्तिशाली, दयालु और सबसे अच्छे हैं। यदि ऐसा है, तो फिर दुनिया के लाखों बच्चे भूख, ठंड आदि से पीड़ित क्यों हैं, जैसा कि महान रूसी लेखक दोस्तोवस्की ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास 'ब्रदर्स करमाज़ोव' में पूछा? भगवान, जिन्हें दयालु कहा जाता है, उन पर दया क्यों नहीं करते हैं और उन्हें भोजन, कपड़े, आश्रय आदि क्यों नहीं देते हैं?

दुनिया में इतनी गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण, बीमारी आदि क्यों है? यदि परमेश्वर शक्तिशाली और दयालु है, तो वह इनका उन्मूलन क्यों नहीं करता और सभी को एक सभ्य जीवन क्यों नहीं देता है? वह कोरोना वायरस को समाप्त क्यों नहीं करता है, जो दुनिया भर में फैल गया है और इतने सारे लोगों को मार रहा है? 

यह सच है कि कुछ वैज्ञानिक ईश्वर में विश्वास करते हैं लेकिन इससे केवल यह साबित होता है कि वैज्ञानिक और अवैज्ञानिक विचार एक ही व्यक्ति में हो सकते हैं। अवैज्ञानिक विचारों को पूरी तरह से समाप्त करने में बहुत लम्बा समय लगेगा, शायद कई पीढ़ियां भी लग जाएं।

हालाँकि यह कहना आवश्यक है कि विज्ञान में कोई बात अंतिम नहीं है और कई चीज़ों की जानकारी अभी भी हमें नहीं है जैसे कि कई प्रकार के कैंसर का इलाज़। एक समय में टीबी को एक लाइलाज बीमारी माना जाता था। बाद में, स्ट्रेप्टोमाइसिन और अन्य एंटीबायोटिक्स खोज लिए गए जिससे उसका इलाज हो सकता है। इसका मतलब जिन चीज़ों का ज्ञान आज हमें नहीं है,  उनके ज्ञान को वैज्ञानिक अनुसन्धान द्वारा भविष्य में खोजा जा सकता है।  

इसलिए विज्ञान कभी भी अंतिम होने का दावा नहीं करता, हमेशा विकसित होता रहता  है। फारूक के सवाल का जवाब नकारात्मक में है। या तो कोई व्यक्ति एक मुल्ला हो सकता है या आधुनिक वैज्ञानिक सोच का, दोनों नहीं। अगर हमें प्रगति करनी है तो हमें धर्म छोड़कर विज्ञान को अपनाना चाहिए। 

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जस्टिस मार्कंडेय काटजू

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