राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ धार्मिक विविधता के बाद राजनीतिक विरोधियों से गले मिलने की तैयारी कर रहा है ताकि उन तक अपनी बात पहुँचाई जा सके और यह भरोसा दिलाया जा सके कि संघ किसी विरोधी विचारधारा के ख़िलाफ़ नहीं है। इस सिलसिले में एक बड़ा फ़ैसला किया गया है कि अब आरएसएस हाईकमान देश के तमाम राज्यों के ग़ैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों से मुलाक़ात शुरू करेगा। दूसरे चरण में विभिन्न राजनीतिक दलों के मुखियाओं से मिलने का सिलसिला रखा जाएगा।
वैसे, यह मुलाक़ात सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ही करेंगे, लेकिन फ़िलहाल इसे आरएसएस हाईकमान कहा गया है। इस योजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है और संभावना है कि संघ के गुरु दक्षिणा कार्यक्रम के ख़त्म होने यानी रक्षाबंधन के बाद इसकी शुरुआत हो सकती है।
राजनीतिक विरोध का मायने दुश्मनी नहीं
सूत्रों की बात मानें तो संघ हाईकमान का मानना है कि देश में ज़्यादातर ग़ैर-बीजेपी राजनीतिक दल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ख़िलाफ़ माहौल बना रहे हैं, ऐसे में ज़रूरी है कि संघ यह पहल करे कि वो किसी राजनीतिक विचारधारा का दुश्मन नहीं है। इससे मोदी विरोधी अभियान को कमज़ोर करने में भी मदद मिलेगी। इस कार्यक्रम के तहत ख़ुद सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ग़ैर-बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मुलाक़ात करेंगे और उन्हें संघ से संबंधित पुस्तकें भी भेंट करेंगे। पश्चिम बंगाल चुनावों से पहले सरसंघचालक ने टीएमसी नेता और फ़िल्म अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती के घर जाकर मुलाक़ात की थी। बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्रीय मंत्री वैसे भी समय-समय पर संघ हाईकमान से मुलाक़ात करते रहते हैं।
पहले मुख्यमंत्री, फिर पार्टी अध्यक्ष
संघ मानता है कि इस समय देश में एक नई पीढ़ी मुख्यमंत्रियों की सामने आई है जिन्हें आरएसएस के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है और वे संघ विरोधी प्रोपेगंडा से प्रभावित होते हैं, ऐसी मुलाक़ात से उनके नज़रिए में बदलाव एकदम भले ही नहीं हो, लेकिन दरवाज़े खोले जा सकते हैं।
इस समय 11 राज्यों के मुख्यमंत्रियों से पहले मुलाक़ात होगी। इनमें तेलंगाना में के चन्द्रशेखर राव, आंध्रप्रदेश में जगन रेड्डी, ओडिशा में बीजू पटनायक, तमिलनाडु में स्टालिन, केरल में पिनरायी विजयन, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, बिहार में नीतीश कुमार आदि नेता शामिल हो सकते हैं। इसके बाद बीजेपी विरोधी राजनीतिक दलों के अध्यक्षों से मिलने का दौर शुरू होगा, इसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाक़ात भी संभव है।
सरसंघचालक डॉ. भावगत पिछले कुछ समय में देश में मौजूद अलग अलग देशों के राजनियकों के साथ भी मुलाक़ात कर चुके हैं। संघ में राम माधव पहले काफ़ी समय तक विदेशों में संघ के प्रचार प्रसार का काम देखते रहे हैं।
प्रणब मुखर्जी मुख्य अतिथि रहे नागपुर में
संघ के अखिल भारतीय प्रचारक सुनील अम्बेकर ने संघ पर मेरी किताब पर बातचीत के दौरान कहा था कि संगठन में वक़्त और ज़रूरत के साथ बदलावों के अलावा संघ का ख़ास चरित्र है विरोधी विचारों को सुनना और उन्हें जगह देना। लेकिन अपने विचारों और संस्कृति पर संघ आसानी से असर नहीं होने देता। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जब 7 जून 2018 को नागपुर में संघ के समारोह में शामिल हुए थे, तब बहुत से लोगों ने सवाल खड़े किए थे लेकिन कार्यक्रम के शुरू में भगवा झंडा फहराया गया तो संघ के हज़ारों स्वयंसेवक और पदाधिकारी सफेद कमीज़, खाकी पैंट और चौड़े बेल्ट लगाए हुए बेहद सम्मान के साथ खड़े हुए और ध्वज प्रणाम किया। गणवेशधारी स्वयंसेवकों की भीड़ में धोती और अचकन पहने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भीड़ में अलग लग रहे थे।
प्रणब मुखर्जी के बाद इसके अगले साल उद्योगपति शिव नाडर को भी बुलाया गया। कुछ साल पहले इसी कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता और मैगसेसे पुरस्कार विजेता अभय बांग को भी बुलाया गया था। उस वक़्त भी महाराष्ट्र में कुछ लोगों ने यह सवाल उठाया था कि अभय बांग ने संघ का आमंत्रण क्यों स्वीकार कर लिया? अभय बांग पर समारोह में न जाने का दबाव बनाने के लिए इन लोगों ने अपनी मराठी साप्ताहिक पत्रिका ‘साधना’ में जम कर लेख छापे। इन कोशिशों का जवाब बांग ने ये कह कर दिया कि वे तो इस समारोह में केवल अपने विचार रखने जा रहे हैं, तो इसका इतना विरोध क्यों?
गोलवलकर से भागवत तक
संघ विचारक दिलीप देवधर कहते हैं कि संघ प्रमुख और संघ हाईकमान की विरोधी विचारधारा के नेताओं से मीटिंग पहले भी होती रहती थी। संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरुजी गोलवलकर और बालासाहब देवरस अक्सर विरोधी नेताओं से मुलाक़ात करते रहते थे। इसके अलावा संघ के मुख्यालय नागपुर में भी ऐसे नेताओं को तीसरे साल के प्रशिक्षण शिविर के समारोहों में बुलाया जाता रहा है। फिर डॉ. भागवत वैसे भी विरोधियों से मुलाक़ात करने में विशेष रुचि रखते हैं।
कुछ बरस पहले चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल भारत दौरे पर आया। वे आरएसएस के लोगों से मिलना चाहते थे। इसलिए दिल्ली में संघ मुख्यालय केशवकुंज में उन्हें आमंत्रित किया गया। उस प्रतिनिधिमंडल का स्वागत अब सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने किया था।
महात्मा गांधी भी वर्धा शिविर में पहुँचे
संघ के शिविर में 1934 में महात्मा गांधी भी वर्धा में उनके आश्रम के पास लगे शिविर में आए थे। अगले दिन डॉ. हेडगेवार नागपुर से वहाँ आए तो महात्मा गाँधी से मिलने गए। महात्मा गाँधी ने उनसे जानना चाहा कि संघ में छुआछूत ख़त्म करने का काम किस तरह किया जाता है? इस पर डॉ. हेडगेवार ने कहा, ‘हम छूआछूत दूर करने की बात नहीं करते, बल्कि स्वयंसेवकों को इस प्रकार विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं कि हम सभी हिन्दू हैं और एक ही परिवार के सदस्य हैं। इससे किसी भी स्वयंसेवक में इस तरह का विचार नहीं आता है कि कौन किस जाति का है।’ साल 1959 में जनरल करिअप्पा मंगलौर की संघ शाखा के कार्यक्रम में गए थे।
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