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सचिन वाजे व्यक्ति नहीं, सिस्टम है, जो सबको कुचलता है!

सचिन वाजे के बॉस... क्राइम ब्रांच मुंबई के इंस्पेक्टर असलम मोमिन से मिलकर, मैं ज्यूँ ही थाने के बाहर निकला कि वाजे टकरा गए। सादे कपड़ों में दुबले पतले सचिन को क़रीब से देखकर यक़ीन नहीं हुआ कि ये आदमी, दाऊद इब्राहिम के तीन दर्ज़न शूटरों को मौत के घाट उतार सकता है। वाजे, तब पुलिस हिरासत में मौत के एक मामले में सस्पेंड थे। 

अंडरवर्ल्ड और ख़ासकर डी कम्पनी के बारे में वाजे से कई बार मेरी बात हुई। उनके पास क्रिकेट बेटिंग, ड्रग्स और सोने की तस्करी में शामिल सिंडिकेट के बारे में अथाह सामग्री थी। जब कभी उनका मन होता तो वह जानकारी शेयर करते थे वर्ना अक्सर सवालों पर गोलमोल जवाब देकर बात टाल जाते थे। 

कुछ बरस बाद, शायद 2007 में मुझे पता लगा कि वाजे ने शिवसेना का दामन थाम लिया है और उद्धव ठाकरे के आशीर्वाद से वह पार्टी के प्रवक्ता बन गए हैं। मुझे उनके नए रोल पर आश्चर्य हुआ। धीरे-धीरे वाजे से बातों का सिलसिला कम होता गया। कुछ बरसों बाद, मुझे पता लगा  कि वाजे बहुत बड़े आदमी हो गए हैं। उनका लाइफस्टाइल पूरी तरह बदल चुका है और वह सॉफ्टवेयर की कई कंपनियों के मालिक बन चुके हैं।

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बीते साल, मैं वाजे को लेकर फिर चौंका... जब मुंबई के एक बड़े क्राइम रिपोर्टर ने बताया कि वाजे, 15 -16 साल सस्पेंड रहने के बाद पुलिस की नौकरी में वापस हुए हैं और उन्हें सीएम ठाकरे के कहने पर क्राइम ब्रांच की इंटेलिजेंस यूनिट का चीफ़ नियुक्त किया गया। मैंने उनसे संपर्क करने की कोशिश की… लेकिन अपनी नई पारी में वाजे का क़द इतना बढ़ चुका था कि उन तक पहुँचना किसी पत्रकार के लिए शायद मुश्किल था।

फिर बीते नवंबर में अचानक, मुंबई के एक संपादक ने मुझे एक वीडियो वाट्सऐप किया जिसमें मैंने देखा कि टीवी एंकर अर्णब गोस्वामी को वाजे गिरफ्तार कर के ले जा रहे हैं। इस सम्पादक ने फोन पर बताया कि मामला रायगढ़ पुलिस का था लेकिन सरकार के कहने पर वाजे को ख़ासतौर पर अर्णब को गिरफ्तार करने भेजा गया था।

इस महीने 12 मार्च के आसपास, मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं थी जब एक आईपीएस अफ़सर ने बताया कि मुकेश अम्बानी के घर के नज़दीक विस्फोटक रखने में वाजे का हाथ है। अगले ही दिन केंद्रीय जाँच एजेंसी NIA ने वाजे को अम्बानी के घर के क़रीब विस्फोटक से लदी गाड़ी पार्क करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया।

मैं अभी इस साज़िश की कड़ियाँ जोड़ ही रहा था कि घाटकोपर (मुंबई) के विधायक राम क़दम ने जानकारी दी कि वाजे ने पूरी साज़िश की कड़ी, यानी अपने ही मित्र मनसुख हिरेन की हत्या करवा दी है।

इस बार मैं स्तब्ध था! पुलिस अफसर वाजे को एक निर्मम हत्यारे के भेस में, स्वीकार करना सहज न था। बहुत सी ब्रेकिंग न्यूज़ से हम भले ही चौंकते न हो, पर ये ब्रेकिंग ख़बर वाक़ई चौंका देने वाली थी। 

वर्दी की आस्तीन में छुपे भ्रष्ट व्यवस्था के नाग हैं!

किसी इंस्पेक्टर का मासिक वेतन एक लाख रुपए से भी कम हो… पर महीने भर में, यदि  वह 100 करोड़ रुपए की अवैध वसूली करने की कूवत रखता हो तो इसे आप ‘आय से अधिक आमदनी’ का कितना वीभत्स उदाहरण मानेंगे? अगर विशुद्ध अंक गणित की बात करें तो वाजे अपने वेतन से दस हज़ार गुना की अवैध कमाई का लक्ष्य लेकर चल रहे थे… जिसे पूरा करने के लिए उन्हें देश के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अम्बानी को भी टारगेट करना पड़ गया। अम्बानी को विस्फोटकों से डरा धमका कर, वाजे का मक़सद वसूली के अलावा और क्या हो सकता है? 

अगर तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह के पत्र को आधार मानें तो वाजे को हर महीने 100 करोड़ की अवैध वसूली महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख से साझा करनी थी।

sachin vaze alleged crime in mumbai as arrested in mukesh ambani bomb scare case - Satya Hindi

मुंबई का किंग कौन?

दो कमरे के सरकारी आवास के हकदार, असिस्टेंट इंस्पेक्टर वाजे इस वसूली अभियान को मुंबई के सबसे आलीशान Trident (ओबेरॉय) होटल के उस सुईट से चला रहे थे जिसका एक दिन का किराया उनकी महीने की पूरी तनख़्वाह से ज़्यादा था। उनके पास दो मर्सिडीज, एक लैंड क्रुजर और एक वॉल्वो SUV लक्ज़री गाड़ी थी। मुंबई से बाहर जाने के लिए वाजे चार्टर प्लेन का इस्तेमाल करता था। अंडरवर्ल्ड के 63 शूटर को मौत के घाट उतारने वाले वाजे से दाऊद इब्राहिम भी दबता था इसलिए मुंबई के सट्टेबाज़, ड्रग तस्कर, डांस बार मालिक और बड़े बड़े बिल्डर घबराते थे। यानी वाजे, अंडरवर्ल्ड पर बनी फ़िल्म सत्या का असली डॉन था जिसे आप अब मुंबई का नया किंग कह सकते थे। 

यूँ भी, अंडरवर्ल्ड की 63 लाशें बिछाने के बाद अगर किसी के बदन पर खाकी वर्दी हो, हाथ में भरी पिस्तौल हो और कुछ भी करने के लिए सरकार की खुली छूट हो तो फिर मुंबई का किंग बनना कौन सी बड़ी बात है? और अंडरवर्ल्ड का यह किंग, अगर क्राइम ब्रांच का सबसे रसूखदार अफ़सर भी हो, तो कहने ही क्या! सच तो यह है कि सरकार की सरपरस्ती में सचिन वाजे, ताक़त और दौलत की ऐसी स्क्रिप्ट गढ़ रहा था जिसे परदे पर सलीम जावेद भी नहीं उतार सके।

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व्यक्ति नहीं, व्यवस्था है वाजे!

मनसुख की हत्या से पहले वाजे ने अपने सहयोगी विनायक शिंदे से कहा था कि उसका दिल कह रहा है कि प्लान बिल्कुल ठीक जा रहा है और परेशान होने की कोई बात नहीं है। लेकिन अचानक पूरे घटनाक्रम में मनसुख की पहचान जैसी ही सामने आई, वाजे पैनिक कर गया। पैनिक इसलिए कि साज़िश खुलते ही सरकार के कुछ बड़े लोग बेनकाब हो सकते थे। इसलिए पैनिक में वाजे ने तय किया कि अगर मनसुख को ही ख़त्म कर दिया जाए तो समूची साज़िश की सबसे अहम कड़ी टूट जाएगी। मामला ख़ुद ब ख़ुद दफ़न हो जायेगा।

वाजे के सुपरवाइजर रहे एक सेवानिवृत अधिकारी का कहना था कि कोई भी योजना बनाते वक़्त वाजे अपनी ही करता था और अगर उसे  राय दी भी जाए तो मानता नहीं था। ‘मनसुख की हत्या करवाकर, वाजे ने सबसे बड़ी ग़लती कर दी... एक फ्रॉड के मामले में सबूत मिटाने  की कोशिश में, वाजे हत्या का मुल्ज़िम बन गया। ऐसा लगता है, सत्ता और बेहिसाब पैसे के नशे में चूर, वाजे होश खो बैठा था। ...उसका कॉमन सेंस भी ख़त्म हो चुका था’, इस अधिकारी ने कहा। 

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बहरहाल, यह कहानी यहाँ ख़त्म नहीं होती… जाँच जारी है और रोज़ नए नए खुलासे मुंबई में ठाकरे सरकार की चूलें हिला रहे हैं। सच तो यह है कि यह कहानी तब तक जारी रहेगी, जब तक वाजे समूची साज़िश कबूल नहीं करता। हो सकता है आने वाले दिनों में वाजे का कबूलनामा, ठाकरे सरकार गिराने की नौबत ले आए।

लेकिन सवाल किसी एक वाजे के जुर्म का नहीं है। असली सवाल ये है कि वाजे देश के भ्रष्ट सिस्टम की एकलौती कड़ी नहीं है। इस कहानी का सबसे कड़वा सच यही है कि... वाजे व्यक्ति नहीं, वाजे सिस्टम है। ऐसा सिस्टम...  जो हमें या आपको या हम जैसे हज़ारों में बहुतों को 

किसी न किसी मोड़ पर कुचलता जा रहा है।

(दीपक शर्मा के फ़ेसबुक वाल से) 

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दीपक शर्मा

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