पांच राफ़ेल लड़ाकू विमानों के अंबाला वायु सैनिक अड्डे पर 29 जुलाई को पहुंचने के कार्यक्रम का जब से खुलासा हुआ, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इससे प्रेरणा लेकर प्रिंट मीडिया के भी एक वर्ग ने, इसका ऐसा चित्रण किया जैसे कि इसके भारत पहुंचते ही चीन इससे आतंकित हो कर भारत के सामने झुक जाएगा।
चैनलों पर तो कहा गया कि राफ़ेल से चीन और पाकिस्तान कैसे दहल गये हैं। टीवी चैनलों पर चले बहस कार्यक्रमों में भी वायुसेना के पूर्व अधिकारी इसकी खासियतों का बखान इस तरह करते दिखे जैसे कि राफ़ेल के भारतीय वायुसेना में शामिल होते ही चीन अपना आक्रामक रवैया त्याग देगा। राफ़ेल को टीवी चैनलों पर गेम चेंजर यानी युद्ध में खेल का पासा पलटने वाला बताया गया और इसकी क्षमताओं का इस तरह बखान किया कि जैसे इसके सामने चीन की सारी हवाई ताक़त ध्वस्त हो जाएगी।
चैनलों पर इस सच्चाई पर चर्चा कम ही की गई कि कैसे भारतीय वायुसेना में 42 स्क्वाड्रनों की वांछित संख्या घटकर 28 रह गई है और यदि चीन के साथ पाकिस्तान ने भी भारत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया तो भारत के लिए दोहरी मार झेलना विनाशकारी साबित होगा।
इसमें कोई शक नहीं है कि राफ़ेल एक क्षमतावान लड़ाकू विमान है और पाकिस्तान के पास इस विमान का कोई जवाब नहीं है लेकिन चीनी वायुसेना के बारे में यह कहना अतिश्योक्ति होगी। राफ़ेल के अभी केवल पांच विमान भारत पहुंचे हैं। इनमें से तीन एक सीट वाले और दो डबल सीट वाले ट्रेनर विमान हैं। ट्रेनर विमानों का युद्ध में सीमित इस्तेमाल किया जा सकता है।
दर्शकों को बांधने का पैंतरा
केवल इन पांच विमानों से हम चीनी सेना की कमर तोड़ देंगे, भारतीय मीडिया द्वारा इसे लेकर भ्रामक जानकारी दी जा रही है। इस तरह की रोमांचक बातें कर टीवी चैनल केवल अपने दर्शकों को अपने से बांधे रखने की कोशिश कर रहे हैं। बुधवार पूरे दिन टीवी चैनलों पर यह होड़ लगी रही कि राफ़ेल विमानों को कौन किस तरह कितना अधिक घातक बता सकता है।
पांच राफ़ेल नाकाफी?
निश्चय ही राफ़ेल विमानों पर 150 किलोमीटर दूर तक हवा से हवा में मार करने वाली मेटियोर मिसाइल तैनात होंगी। पांच सौ किलोमीटर दूर तक हवा से ज़मीन पर मार करने वाली स्काल्प मिसाइल और 70 किलोमीटर दूर तक मार करने वाली लेजर गाइडेड हैमर मिसाइल भी तैनात होंगी जिनकी बदौलत भारतीय वायुसेना दुश्मन के सैन्य ठिकानों को ध्वस्त कर सकती है लेकिन जैसे अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, उसी तरह पांच राफ़ेल विमान चीनी सेना की कमर नहीं तोड़ सकते।
तीन गुना ताकतवर है चीनी वायुसेना
राफ़ेल की क्षमता के समकक्ष माने जाने वाला सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान और मिराज-2000 लड़ाकू विमान भी भारतीय वायुसेना के पास भारी संख्या में हैं जिनकी बदौलत दुश्मन के दांत खट्टे किए जा सकते हैं लेकिन दुश्मन की वायुसेना क्या इन भारतीय विमानों की मार ही झेलती रह जाएगी या वह भी भारतीय सैन्य हमलों का उसी तरह जवाब देगी। हमें नहीं भूलना चाहिये कि चीन की वायुसेना भी कम ताकतवर नहीं है। भारत की वायुसेना की ताकत की तुलना में चीन के पास तीन गुना अधिक हवाई ताकत है।
हम पिछले साल फरवरी में पाकिस्तान के बालाकोट पर भारतीय वायुसेना द्वारा मिराज-2000 से की गई सर्जिकल स्ट्राइक को नहीं भूलें। एक दिन बाद ही पाकिस्तानी वायुसेना ने अपने एफ़-16 विमानों के साथ चीनी जे-17 विमानों को जम्मू-कश्मीर के भारतीय इलाके में हमला करने के लिए भेजा था और हमारी वायुसेना मुंह ताकती रह गई थी।
अपना ही हेलिकॉप्टर मार गिराया
पाकिस्तानी वायुसेना के एफ़-16 लड़ाकू विमान आराम से भारतीय आसमान में घुसे और मिसाइलें दाग कर चले गए। भारत की ओर से यह ज़रूर कहा गया कि पाकिस्तान के एक एफ़-16 विमान को मार गिराया गया लेकिन इसकी कोई पुष्ट जानकारी या सबूत भारत की ओर से नहीं दिये गए। इसके साथ ही एक भारतीय पायलट को पाकिस्तान ने बंधक बना लिया जिसे अमेरिकी दबाव में ही पाकिस्तान को छोड़ना पड़ा। आनन-फानन में भारतीय सेना ने अपने ही एक हेलिकॉप्टर को मार गिराया जिसमें आठ वायुसैनिक बेवजह मारे गए।
यह मिसाल इतना समझने के लिए काफी है कि हमारी हवाई रक्षा व्यवस्था भी सोती हुई पकड़ी गई जबकि हमें अहसास था कि बालाकोट पर हवाई हमले के बाद पाकिस्तानी वायुसेना भी जवाबी हमले की कार्रवाई करेगी।
चीनी सीमा पर चौकसी ज़रूरी
इसी तरह यदि हम चीन के साथ चल रहे सैन्य टकराव की रणनीति देखें तो हमें नहीं भूलना चाहिये कि भारत और चीन के बीच चार हजार किलोमीटर की जो वास्तविक नियंत्रण रेखा है, उस पूरे इलाके पर चीनी हवाई घुसपैठ या अतिक्रमण को रोकने के लिए हमें चप्पे-चप्पे पर अपने हवाई रक्षा तंत्र को सक्रिय करना होगा।
यदि भारतीय लड़ाकू विमान किसी एक इलाके में हमला करने में कामयाब हो गए तो चीनी वायुसेना अपनी भारी वैमानिकी संख्या का फायदा उठाकर वास्तविक नियंत्रण रेखा के आरक्षित इलाकों पर हमला बोल सकती है। चीन को आतंकित करने के लिए सैकड़ों की संख्या में राफ़ेल के साथ अन्य विमानों को पूरी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात करने की ज़रूरत होगी। लेकिन भारत के पास आगामी 2022 तक अधिकतम केवल 36 राफ़ेल लड़ाकू विमान ही हो सकते हैं।
पांच राफ़ेल लड़ाकू विमान केवल एक ही मोर्चे पर तैनात हो सकते हैं, हालांकि इनका साथ सुखोई-30, मिराज-2000 आदि भी देंगे लेकिन उन्हें जवाब देने के लिए चीनी सेना भी सैकड़ों लड़ाकू विमान तैनात कर सकती है। जैसे राफ़ेल से हम चीन के भीतर किसी सैन्य ठिकाने को तबाह कर सकते हैं वैसी ही कार्रवाई चीनी लड़ाकू विमान भी भारतीय इलाके में करने में सक्षम होंगे। इसके अलावा चीन के पास भारत से कहीं अधिक विनाशकारी मिसाइल ताकत है।
हम राफ़ेल की क्षमता को कम कर नहीं आंक रहे हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि केवल पांच विमानों की बदौलत हम चीन को नहीं डरा सकते।
जो राफ़ेल विमान भारत आए हैं उन्हें ऑपरेशनल हालत के लिए तैयार करने में कम से कम एक महीना लगेगा। चूंकि लद्दाख का इलाका पर्वतीय है और वहां 16 से 20 हजार फीट ऊंची चोटियां हैं, इसलिए वहां के भूगोल के अनुरूप राफ़ेल विमान और इसे उड़ाने वाले पायलट को ज़रूरी अनुभव हासिल करना होगा।
भारतीय वायुसेना का गेम-चेंजर राफ़ेल विमान कोई बड़ा करतब ज़रूर दिखा सकता है लेकिन इसकी काट चीन के पास नहीं है, यह सोचना अपने को भुलावे में रखना होगा।
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