मुफ़लिस से
अब चोर बन रहा हूँ मैं
पर
इस भरे बाज़ार से
चुराऊँ क्या
यहाँ वही चीजें सजी हैं
जिन्हें लुटाकर
मैं मुफ़लिस बन चुका हूँ।
भारत के प्रधानमंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने ये लाइनें कब लिखीं, यह बता पाना तो मुश्किल है। लेकिन इन पंक्तियों में मांडा नरेश के प्रधानमंत्री बनने से लेकर उन्हें गालियाँ दिए जाने को लेकर उनका दर्द समाया हुआ है।
विश्वनाथ प्रताप सिंह भारत की ऐसी शख़्शियतों में शामिल हैं, जिन्होंने ग़ैर-बराबरी दूर करने के लिए बड़ी जंग लड़ी। 1989 के आम चुनाव के पहले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने वंचितों को अपनी ओर खींचा ही नहीं, बल्कि चुनाव घोषणा पत्र में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने का वादा भी किया। विश्वनाथ प्रताप की वंचितों के प्रति भावना ही कहेंगे कि उन्होंने सत्ता में आते ही मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करवाने पर काम शुरू कर दिया। उन्होंने दक्षिण भारत के तेज़-तर्रार आईएएस अधिकारी पीएस कृष्णन को इस काम पर लगाया, जिन्होंने बख़ूबी यह काम करके दिखाया और मंडल कमीशन लागू करने की नींव तैयार कर दी।
1989 के लोकसभा चुनाव के बाद जो सरकार बनी थी, वह पिछड़े वर्ग की एकता, उस वर्ग के उभार और उस वर्ग के समर्थन से बनी सरकार थी। कांग्रेस से अलग हुए विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में चुनाव हुआ। कांग्रेस की पराजय के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थन से विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने। इस दौर में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव व बेनी प्रसाद वर्मा, बिहार में लालू प्रसाद व नीतीश कुमार ताक़तवर रूप से सत्ता में आए थे। 7 अगस्त 1990 को विश्वनाथ प्रताप सिंह ने रिपोर्ट लागू करने की घोषणा की। 10 अगस्त 1990 को आयोग की सिफ़ारिशों के तहत सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था करने के ख़िलाफ़ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया। उधर 13 अगस्त 1990 को मंडल आयोग की सिफ़ारिश लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी गई। अगले दिन ही 14 अगस्त 1990 को अखिल भारतीय आरक्षण विरोधी मोर्चे के अध्यक्ष उज्ज्वल सिंह ने आरक्षण प्रणाली के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
आरक्षण लागू करने की इस गहमागहमी के बीच बीजेपी के नेता लालकृष्ण आडवाणी अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए रथयात्रा लेकर निकल पड़े थे और बिहार में उनके गिरफ्तार होने पर बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। वीपी सिंह सरकार गिर गई और जनता दल बँट गया।
18 दिसम्बर 1990 को गोरखपुर के तमकुही कोठी मैदान में मांडा के राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह की सभा होने वाली थी। आरक्षण लागू होने बाद सामाजिक न्याय के मसीहा का पहला और मेगा शो गोरखपुर में हुआ। वीपी सिंह ने उस रैली में कहा,
‘भूख एक ऐसी आग है कि जब वह पेट तक सीमित रहती है तो अन्न और जल से शांत हो जाती है और जब वह दिमाग तक पहुँचती है तो क्रांति को जन्म देती है। इस पर ग़ौर करना होगा। ग़रीबों के मन की बात दब नहीं सकती और अंततः उसके दृढ़ संकल्प की जीत होगी।’
सिंह ने कहा था,
“
ग़रीबों की कोई बिरादरी नहीं होती। दंगों में मारे जाने वाले लोग हिंदू और मुसलमान नहीं, हिंदुस्तान के ग़रीब लोग हैं। ग़रीबों के साथ हमेशा अत्याचार होते रहे हैं। इस शोषण अत्याचार को बंद करके समाज के पिछड़े तबक़े के लोगों को ऊपर उठाना होगा।
विश्वनाथ प्रताप सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री
विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़े तबक़े के उभार के लिए जो क्रांति कर दी, उसकी धमक उत्तर भारत में तीन दशक तक बनी रही। वंचित तबक़े के हज़ारों युवा आईएएस, आईपीएस और पीसीएस सहित विभिन्न न्यायिक सेवाओं में पहुँचे। सरकारी नौकरियों, विश्वविद्यालयों शिक्षण संस्थानों में तेज़ी से पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी बढ़ी। इंजीनियरिंग कॉलेजों और मेडिकल कॉलेजों में बड़े पैमाने पर समाज के पिछड़े वर्ग के बच्चों को प्रवेश मिलने लगा और ताक़त का उचित बँटवारा नज़र आने लगा। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने वह कर दिखाया, जिससे यह कहकर इनकार किया जाता रहा था कि पाँचों अँगुलियाँ बराबर नहीं होतीं और यह संभव ही नहीं है कि समाज का हर वर्ग उचित हिस्सेदारी प्राप्त कर सकता है।
अब एक बार फिर वह दौर आ गया है कि भारत में चर्चा मंदिर, मसजिद, राष्ट्रवाद, राष्ट्रद्रोह, पाकिस्तान तक सिमट गई है। गिरती अर्थव्यवस्था, घटते रोज़गार, किसानों की दुर्दशा चर्चा से एक सिरे से ग़ायब नज़र आते हैं। ऐसे में विश्वनाथ प्रताप सिंह की एक और कविता को याद कर लेना ज़रूरी है...
भगवान हर जगह है
इसलिये जब भी जी चाहता है
मैं उन्हे मुट्ठी में कर लेता हूँ
तुम भी कर सकते हो
हमारे तुम्हारे भगवान में
कौन महान है
निर्भर करता है
किसकी मुट्ठी बलवान है।
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