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वाट्सऐप पर लोगों की निजता को ख़तरा!

वाट्सऐप इस नई व्यवस्था को 8 फरवरी से शुरू करने वाला था लेकिन लोगों के विरोध और क्रोध को देखते हुए उसने अब इसे 15 मई तक आगे खिसका दिया है। ‘फेसबुक’ को वाट्सऐप की मिल्कियत 19 अरब डाॅलर में मिली है। वह इसे कई गुना करने पर आमादा है। 

डॉ. वेद प्रताप वैदिक

वाट्सऐप को दुनिया के करोड़ों लोग रोज इस्तेमाल करते हैं। वह भी मुफ्त! लेकिन पिछले दिनों लाखों लोगों ने उसकी बजाय ‘सिग्नल’, ‘टेलीग्राम’ और ‘बोटिम’ जैसे माध्यमों की शरण ले ली और यही क्रम कुछ महीने और भी चलता रहता तो करोड़ों लोग ‘वाट्सऐप’ से मुंह मोड़ लेते। 

ऐसी आशंका इसलिए हो रही है क्योंकि वाट्सऐप की मालिक कंपनी ‘फेसबुक’ ने नई नीति बनाई है जिसके अनुसार जो भी संदेश वाट्सऐप से भेजा जाएगा, उसे फेसबुक देख सकेगा यानि जो गोपनीयता वाट्सऐप की जान थी, वह निकलने वाली थी। 

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वाट्सऐप की सबसे बड़ी खूबी यही थी और जिसका बखान उसे खोलते ही आपको पढ़ने को मिलता है कि आपकी बात या संदेश का एक शब्द भी न कोई दूसरा व्यक्ति सुन सकता है और न पढ़ सकता है। यही वजह थी कि देश के बड़े-बड़े नेता भी आपस में या मेरे-जैसे लोगों से दिल खोलकर बात करना चाहते हैं तो वे वाट्सऐप का ही इस्तेमाल करते हैं। 
देखिए, इस विषय पर वीडियो- 

कानून ला रही सरकार 

इसका दुरुपयोग भी होता है। आतंकवादी, हत्यारे, चोर-डकैत, दुराचारी और भ्रष्ट नेता व अफसरों के लिए यह गोपनीयता वरदान सिद्ध होती है। इस दुरुपयोग के विरुद्ध सरकार ‘व्यक्तिगत संवाद रक्षा कानून’ ला रही है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता की रक्षा तो करेगा ही लेकिन संविधान विरोधी बातचीत या संदेश को पकड़ सकेगा। 

मैं आशा करता हूं कि इस महत्वपूर्ण कानून को बनाते वक्त हमारी सरकार और संसद वैसी लापरवाही नहीं करेगी, जैसी उसने कृषि-कानूनों के साथ की है। अभी भी वाट्सऐप पर स्वास्थ्य-जांच रपटें, यात्रा और होटल के विवरण तथा व्यापारिक लेन-देन के संदेशों को भेजने की खुली व्यवस्था है। 

‘फेसबुक’ चाहती है कि ‘वाट्सऐप’ की समस्त जानकारी का वह इस्तेमाल कर ले ताकि उससे वह करोड़ों रुपये कमा सके और दुनिया के बड़े-बड़े लोगों की गुप्त जानकारियों का खजाना भी बना सकती है। 

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वाट्सऐप इस नई व्यवस्था को 8 फरवरी से शुरू करने वाला था लेकिन लोगों के विरोध और क्रोध को देखते हुए उसने अब इसे 15 मई तक आगे खिसका दिया है। ‘फेसबुक’ को वाट्सऐप की मिल्कियत 19 अरब डाॅलर में मिली है। वह इसे कई गुना करने पर आमादा है। 

निजता की हो रक्षा

उसे पीछे हटाना मुश्किल है लेकिन ‘यूरोपियन यूनियन’ की तरह भारत का कानून इतना सरल होना चाहिए कि नागरिकों की निजता पूरी तरह से सुरक्षित रह सके लेकिन मेरा अपना मानना यह है कि जिन लोगों का जीवन खुली किताब की तरह होता है, उनके यहाँ गोपनीयता नाम की कोई चीज़ ही नहीं होती। वे किसी ‘फेसबुक’ से क्यों डरें? 

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)

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डॉ. वेद प्रताप वैदिक

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