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योगी मसजिद में क्यों न जाएँ?

‘हिंदू’ नाम तो आपको हज़ार-डेढ़ हज़ार साल पहले विदेशी मुसलमानों ने ही दिया है। आप अपने नामदाता का तिरस्कार क्यों कर रहे हैं? आप मुख्यमंत्री हैं। आप सबके हैं। आपका प्रेम और सम्मान सबको समान रूप से क्यों नहीं मिलना चाहिए? मैं न तो मूर्ति-पूजा करता हूँ, न ‘नमाज़’ पढ़ता हूँ और न ही ‘प्रेयर’ करता हूँ लेकिन मैं मंदिर में भी जाता हूँ, मसजिद में भी, गिरजे में भी, गुरुद्वारे में भी और साइनेगाॅग में भी! 
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि अयोध्या के पास बननेवाली मसजिद के शिलान्यास में मैं नहीं जाऊँगा, क्योंकि मैं योगी हूँ और हिंदू हूँ। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि उन्हें निमंत्रित भी नहीं किया जाएगा। आज की ख़बर यह है कि मसजिद बनानेवाले सुन्नी वक्फ बोर्ड के एक अधिकारी ने दावा किया है कि उन्हें निमंत्रण भेजा जा रहा है और उन्हें उसे स्वीकार करना चाहिए। इसके लिए उसने तर्क दिया है। 

तर्क यह है कि मसजिदों के शिलान्यास की इसलाम में कोई परंपरा नहीं है। इसलाम के चारों प्रमुख संप्रदायों की यही मान्यता है। जो शिलान्यास अयोध्या के धन्नीपुर गाँव में होगा, वह होगा मसजिद के साथ बननेवाले अस्पताल, लायब्रेरी, सामूहिक रसोईघर, संग्रहालय और शोध केंद्र का! मैं ख़ुद मानता हूँ कि मुख्यमंत्री होने के नाते उन्हें मुसलमानों के इस निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए।

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हालाँकि मैं यह भी सोचता हूँ कि किसी मसजिद या मंदिर से किसी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का क्या लेना-देना? उनके उद्घाटन या शिलान्यास के लिए इन कुर्सीधारियों को बुलाने की तुक क्या है? राजनीति के दलदल में फँसे हुए इन लोगों का आचरण क्या अनुकरण के योग्य होता है? अयोध्या में जो मंदिर और मसजिद बनेंगे, वे क्या इन नेताओं की मेहरबानी से बन रहे हैं? वे तो अदालत के फ़ैसले की वजह से बन रहे हैं। ऐसे अवसर पर कुर्सीधारियों को बुलाना क्या सिद्ध करता है? क्या यह नहीं कि आप धर्म को राजनीति के चरणों में लिटा रहे हैं?

योगी आदित्यनाथ का यह कहना कि वह योगी और हिंदू हैं, इसलिए मसजिद के शिलान्यास में नहीं जाएँगे, यह भी तर्कसंगत नहीं है। ‘योग दर्शन’ या ‘योग वाशिष्ठ’ या किसी अन्य योग-ग्रंथ में क्या यह लिखा है कि योगी किसी मंदिर या मसजिद में जाए या न जाए? जब योग-दर्शन की रचना हुई, तब भारत में हिंदू नाम का कोई प्राणी ही नहीं था और मूर्ति-पूजा नाम की कोई चीज नहीं थी। कोई मंदिर भी नहीं था।

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‘हिंदू’ नाम तो आपको हज़ार-डेढ़ हज़ार साल पहले विदेशी मुसलमानों ने ही दिया है। आप अपने नामदाता का तिरस्कार क्यों कर रहे हैं? आप मुख्यमंत्री हैं। आप सबके हैं। आपका प्रेम और सम्मान सबको समान रूप से क्यों नहीं मिलना चाहिए? मैं न तो मूर्ति-पूजा करता हूँ, न ‘नमाज़’ पढ़ता हूँ और न ही ‘प्रेयर’ करता हूँ लेकिन मैं मंदिर में भी जाता हूँ, मसजिद में भी, गिरजे में भी, गुरुद्वारे में भी और साइनेगाॅग में भी! इसीलिए कि इनमें जानेवाले हर व्यक्ति के प्रति मेरा प्रेम है।

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डॉ. वेद प्रताप वैदिक

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