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महमूद मदनी ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव पद से दिया इस्तीफ़ा 

जाने-माने धर्मगुरु मौलाना महमूद मदनी ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना क़ारी मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी को भेजे अपने इस्तीफ़े में महमूद मदनी ने कहा है कि अपनी निजी व्यस्तताओं की वजह से वह महासचिव पद से इस्तीफ़ा दे रहे हैं। महमूद मदनी से इस मामले पर बात करने की कोशिश की गई। लेकिन वह न तो फ़ोन पर उपलब्ध हुए और न ही एसएमएस का जवाब दिया। लेकिन उनके नज़दीकी सूत्रों ने दावा किया है कि उन्होंने सिर्फ़ महासचिव पद से इस्तीफ़ा दिया है। वह जमीयत के संस्थापक सदस्य हैं और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी हैं और आगे भी बने रहेंगे। अभी तक उनका इस्तीफ़ा स्वीकार नहीं किया गया है।

दिलचस्प बात यह है कि दो लाइन के इस इस्तीफ़े में महमूद मदनी ने व्यंग्यात्मक भाषा का इस्तेमाल किया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष को संबोधित अपने इस्तीफ़े में उन्होंने लिखा है, 'बहुत ही एहतराम के साथ जनाब-ए-वाला की ख़िदमत में यह आजिज़ाना गुज़ारिश है कि यह नाकारा अपनी तमाम तर नाअहलियों (ना क़ाबिलियत) और व्यक्तिगत व्यस्तताओं की वजह से राष्ट्रीय महासचिव के पद से इस्तीफ़ा देता है।' अपने इस्तीफ़े में इस्तेमाल की गई इस तरह की भाषा से अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि शायद जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सदर के साथ उनके विवादों की खाई काफ़ी बढ़ गई है।
  • सूत्रों के मुताबिक़, जमीयत उलेमा-ए-हिंद की अगुआई पूरी तरह महमूद मदनी करते हैं। बतौर सदर उन्होंने मौलाना क़ारी मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी को रखा हुआ है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से उस्मान मंसूरपुरी पूरी ही जमीयत की बागडोर संभालने की कोशिश कर रहे हैं। इसी विवाद के चलते महमूद मदनी ने  गुस्से में आकर इस्तीफ़ा दिया है और इस व्यंग्यात्मक भाषा का इस्तेमाल किया है।

दो हिस्सों में बँट गया था संगठन

ग़ौरतलब है कि 2008 में अपने वालिद मौलाना असद मदनी के इंतकाल के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद की अगुवाई को लेकर अपने चाचा मौलाना अरशद मदनी के साथ महमूद मदनी का विवाद हुआ था। काफ़ी लंबे चले इस झगड़े के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद दो हिस्सों में बँट गई थी। एक हिस्से की अगुवाई मौलाना अरशद मदनी करते हैं। इसे जमीयत उलेमा-ए-हिंद अली (अलिफ) के नाम से जाना जाता है। जबकि महमूद मदनी की अगुआई वाले धड़े को जमीयत उलेमा-ए-हिंद (मीम) के नाम से जाना जाता है। पूरे संगठन को महमूद मदनी चलाते हैं। बस, उन्होंने नामचारे के लिए मौलाना क़ारी मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी को सदर की जिम्मेदारी सौंपी हुई है।

लंबे समय तक रहा था टकराव

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के दोनों धड़ों में कई साल टकराव रहा। यहाँ तक कि मौलाना अरशद मदनी और महमूद मदनी के बीच झगड़ा इस हद तक बढ़ गया था कि दोनों एक-दूसरे की शक्ल देखना पसंद नहीं करते थे। लेकिन बाद में यह दूरियाँ कम होती गईं।
  • पिछले 2 साल से जमीयत के दोनों धड़े एक-दूसरे के कार्यक्रमों में भी शरीक होने लगे हैं। महमूद मदनी अपने चाचा का इतना लिहाज़ ज़रूर करते हैं कि जिस दिन अरशद मदनी किसी मुद्दे पर कोई बयान देते हैं उस दिन महमूद मदनी उस मुद्दे पर नहीं बोलते ताकि चाचा-भतीजे में किसी तरह का टकराव नहीं दिखे।

इस्तीफ़ा नामंजूर तो नहीं होगा?

महमूद मदनी का यूँ अचानक महासचिव पद से इस्तीफ़ा देना जमीयत उलेमा-ए-हिंद के कई लोगों को अखर रहा है। इसकी कोई वजह भी समझ में नहीं आ रही है। लिहाज़ा लोग अंदाज़ा लगा रहे हैं कि शायद एक-दो दिन में ही मौलाना क़ारी मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी उनके इस्तीफ़े को नामंजूर करने का एलान कर दें। यह देखना दिलचस्प होगा कि अपने ही बनाए संगठन में महमूद मदनी का इस्तीफ़ा मंजूर होता है या संगठन उन्हें बतौर सर्जरी ज़िम्मेदारी संभालने या जनरल सेक्रेटरी के रूप में ही बनाए रखने का फ़ैसला करता है। जमीयत के तमाम लोगों की नज़रें इस पर लगी हुई हैं।

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यूसुफ़ अंसारी

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