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वजन कम करने के लिए जिम की शुरुआत, ओलंपिक स्वर्ण पदक पर क़ब्ज़ा

मधुमक्खियों के छत्ते को छेड़ना, आम चुराना और दोस्तों से झगड़ा करना-नीरज चोपड़ा के बचपन की शरारतें उन्हें ही नहीं दूसरे लोगों को भी याद हैं।

बेहद प्यार करने वाली दादी उन्हें दूध से ताजा निकाला गया क्रीम और ढेर सारा चूरमा खिला देतीं। चूरमा यानी घी में रोटी के टुकड़े डुबो कर ऊपर से ढेर सारा चीनी उड़ेल कर बनाया गया खाने का सामान। कैलोरी से भरपूर और मोटापा बढ़ाने के लिए पर्याप्त। 

नीरज किशोरावस्था में ही मोटे-ताजे, थुलथुल बन गए और शरीर का वजन कम करने उपायों पर विचार किया जाने लगा। उन्हें पास के ही जिम में भेजा गया ताकि वे पसीना बहा कर कुछ वजन कम कर लें और ठीकठाक दिखें।

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पानीपत की लड़ाई!

गाँव के पास का जिम जब बंद हो गया तो नीरज को पानीपत शहर के जिम में भेजा गया जो उनके गाँव से 15 किलोमीटर दूर है। पानीपत वही जगह है जहाँ तीन बहुत अहम लड़ाइयाँ हुई हैं और जिसने भारत का इतिहास बदल दिया है।

किसे पता था कि वह पानीपत 15 किलोमीटर दूर के एक गाँव खान्ड्रा से आने वाले इस बच्चे को भी बदल देगा और वह भी इतिहास रच देगा और भारत के खेल के इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ देगा। 

जिस जगह ये ऐतिहासिक युद्ध हुए, उसी शहर में शिवाजी स्टेडियम भी था। यह वही स्टेडियम था, जहाँ आस पास के लोग और खेल में दिलचस्पी रखने वाले लोग जाया करते थे। आस पास के गाँवों के दर्जनों एथलीट इसी शिवाजी स्टेडियम में आकर पसीना बहाया करते थे। 

एक जाड़े की शाम जब नीरज शिवाजी स्टेडियम में जॉगिंग कर रहे थे, उन पर जयवीर चौधरी की नज़र पड़ी। लोग उन्हें प्यार से सिर्फ जयवीर कहते थे और वह खुद जैवलिन थ्रो किया करते थे।

प्रतिभा की पहचान

जयवीर खुद एथलीट थे, उसे लेकर पूरी तरह गंभीर थे, समर्पित थे और कुछ कर दिखाने के लिए जुटे हुए थे। वे नीरज के गाँव से पाँच किलोमीटर दूर बिंझल के रहने वाले थे। 

नीरज के चाचा सुरेंद्र का कहना है कि जयवीर ने नीरज से दौड़ने को कहा, उनसे भार उठाने को कहा और जैवलिन फेंकने को दिया। अंत में उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि नीरज के लिए जैवलिन फेंकना सबसे अच्छा रहेगा। 

जयवीर का कहना है कि एक दिन शाम को उन्होंने नीरज से यूं ही जैवलिन फेंकने को कह दिया। उन्होंने कहा,

नीरज ने 35-40 मीटर दूर तक भाला फेंका, पहली बार जैवलिन फेंकने वाले के लिए यह अच्छा प्रदर्शन कहा जाएगा। लेकिन इससे भी बड़ी बात थी कि जिस तरीके से उसने जैवलिन फेंका, वह बहुत अच्छा था।


जयवीर चौधरी, जैवलिन थ्रोअर

ऐतिहासिक काल का खेल

वे यह भी कहते हैं कि नीरज मोटा था, लेकिन उसका शरीर बहुत ही लचीला था।

खुद नीरज ने कहा, "मैंने जयवीर को देख कर ही जैवलिन फेंकना सीखा, वह मेरे बड़े भाई के समान हैं।"

जैवलिन थ्रो दरअसल ऐतिहासिक काल में शुरू हुए पहले ओलंपिक में भी शामिल किया गया था। शिकार के लिए भाला फेंका जाता था और यही इस खेल की बुनियाद है। इस खेल में गति, ताक़त और लचीलापन सबकुछ चाहिए। 

जैवलिन थ्रो यूरोप से निकला और इस खेल पर यूरोप के लोगों का ही वर्चस्व बना रहा, यह वर्चस्व अब तक बरक़रार है। ओलंपिक की तो बात ही क्या की जाए, गोल्ड कोस्ट में नीरज के प्रदर्शन के पहले भारत को कभी कॉमनवेल्थ गेम्स में भी कोई पदक नहीं मिला था।

from haryana village to Tokyo Olympic 2020, neeraj chopra wins olympic gold  - Satya Hindi

आर्थिक दिक्कत

नीरज की प्रतिभा को पहचानने के बाद जयवीर ने उनके घर के लोगों से कहा कि वे उसे पूरी तरह खेलकूद में ही समर्पित होने को कहें। इस पर परिवार में बात हुई और लोग इस पर राजी भी हो गए।

दिक्क़त यह थी कि इसके लिए संसाधनों को जुटाना मुश्किल था। संयुक्त परिवार था और आठ एकड़ की ज़मीन थी। चार भाइयों का संयुक्त परिवार, इसमें 16 सदस्य, सब एक ही घर में रहते थे। उनके पास तीन गाएं और दो भैंसें थीं। एक गाय 44 लीटर दूध देती थी। सुरेंद्र ने कहा कि "घर के तीन लोग निजी क्षेत्र में छोटी-मोटी नौकरी करते थे। नीरज को खेलकूद में डालने के लिए यह ज़रूरी था कि हम संसाधन को ठीक करें।"

प्रैक्टिस करने लायक एक सामान्य जैवलिन की कीमत 15 से 20 हज़ार रुपए होती है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तैयारी करने लायक जैवलिन की कीमत एक लाख रुपए तक हो सकती है।

इसी तरह पेशेवर खेलकूद करने वाले खिलाड़ियों के इस्तेमाल में आने वाले जूते 10 हज़ार रुपए के होते हैं। 

सुरेंद्र ने बताया कि घर की मरम्मत की जानी थी, लेकिन वह टाल दिया गया और उस पैसे से नीरज के काम की चीजें खरीदी गईं। 

पंचकूला

नीरज, जयवीर और दूसरे दो लोग पँचकूला चले गए, जिसे एथलेटिक्स की नर्सरी कहा जाता है। वहाँ उन्हें कोच नसीम अहमद मिले और उन्होंने उन सबको संवारा। 

धीरे-धीरे नीरज जैवलिन के अच्छे खिलाड़ बन कर उभरे और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई बार पदक भी जीते। 

पोलैंड में 2016 में हुए अंडर 20 चैंपियनशिप में नीरज ने 86.48 मीटर तक भाला फेंका। गोल्ड कोस्ट में नीरज ने 86.47 मीटर की दूरी तक जैवलिन फेंका, एक सेंटीमीटर कम रह गया। इस दूरी पर 2016 के रियो ओलंपिक में उन्हें रजत पदक मिल सकता था।

कदम दर कदम कामयाबी

टोक्यो ओलंपिक 2020 में नीरज ने स्वर्ण जीत कर इतिहास रच दिया, लेकिन उन्होंने इसके लिए एक-एक कदम रखा। पहले यूरोप में डायमंड लीग, उसके बाद जकार्ता में एशियन गेम्स।

जयवीर का कहना है कि नीरज में बहुत प्रतिभा है और वह 95 मीटर तक भाला फेंक सकते हैं।

यह बेहद दुखद है कि नीरज को सामने लाने वाले जयवीर खुद अब तक बहुत दूर नहीं जा सके। वे कहते हैं, "2010 के राष्ट्रीय खेलों में मैं सातवें स्थान पर था। पर मेरे दाहिनी कुहनी में चोट लगी, उसका ऑपरेशन दो बार करवाना पड़ा। मैं कई साल तक खेल से दूर रहा।"

जयवीर 27 साल के हो चुके हैं। 

नीरज कहते हैं, "मैं चाहता हूं कि जयवीर बिल्कुल फिट रहें। कितना अच्छा हो कि चोटी के एक अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा में हम दोनों कंपीट करें।" 

कॉमनवेल्थ में स्वर्ण पदक जीतने पर हरियाणा सरकार ने नीरज को 1.50 करोड़ रुपए का ईनाम दिया। अब नीरज के पास पैसे हैं। गाँव में छह कमरों का पक्का मकान बन चुका है, उसमें बैठक भी बना हुआ है। उसकी दीवाल पर लिखा हुआ है, "एक विचार आपके जीवन को बदल सकता है।"

नीरज चोपड़ा से बेहतर भला कौन यह जानता है?

(अभिजीत घोष के फ़ेसबुक पेज से साभार)
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अभिजीत घोष

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