शुक्रवार यानी आज से चेन्नई में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ टीम इंडिया का घरेलू ज़मीं पर टेस्ट अभियान शुरू हो रहा है। लाल गेंद से 4 मैच और 20 दिन की क्रिकेट में टीम इंडिया के पास पाने के लिए बहुत कुछ नहीं है। आख़िर, ऑस्ट्रेलिया दौरे पर एकदम नई नवेली टीम के साथ बेहद मुश्किल हालात में अंजिक्य रहाणे की कप्तानी में टेस्ट सीरीज़ जीतने के बाद इंग्लैंड जैसी टीम को घर में अगर पीट भी दिया तो क्या? ये नतीजा मानकर ही चला जा रहा है। टीम इंडिया की जीत महज़ औपचारिकता ही मानी जायेगी। पिछली बार इंग्लैंड ने एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया था और तगड़ा मुक़ाबला किया था। यहाँ तक कि जीतने के कगार पर भी पहुँचे थे लेकिन आख़िर नतीजा क्या रहा था 4-0 की हार।
चिंता करने की ज़रूरत क्यों?
भारत को सिर्फ़ इस सीरीज़ में यह सुनिश्चित करना है कि वह 1 से ज़्यादा मैच नहीं हारे वर्ना उनके लिए इस साल जून में होने वाली वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फ़ाइनल में न्यूज़ीलैंड से भिड़ने को लेकर सवाल खड़े हो सकते हैं। उसके अलावा विराट कोहली की टीम को चिंता करने की ज़रूरत क्यों और कहाँ है?
अगर इतिहास को खंगाले तो आज़ादी के बाद से इंग्लैंड भारतीय ज़मीं पर सिर्फ़ 3 ही टेस्ट सीरीज़ जीत पाया है। सबसे शानदार जीत तो 2011-12 की ही रही जहाँ पर केविन पीटरसन ने मुंबई टेस्ट में एक ऐसी पारी खेली जिसे विदेशी ज़मीं पर सबसे उम्दा शतकों में से एक माना जाता है। उस सीरीज़ में इंग्लैंड के पास जेम्स एंडरसन और ग्रेम स्वॉन (इंग्लैंड के दो सर्वकालिक महान गेंदबाज़) जैसे मैन-विनर थे तो मोंटी पानेसर ने उम्मीद से बेहतर खेल दिखाया था। लेकिन, भारत के लिए वो हार उनके अहम को ठेस पहुँचाने वाली हार थी।
भारत इतना मज़बूत कैसे?
भारत इतना आहत हुआ कि उसके बाद से उसने अपने घर में कोई टेस्ट सीरीज़ नहीं गँवायी है। आलम यह है कि पिछले 12 टेस्ट सीरीज़ में उसका जीत का अश्वमेघ रथ तेज़ी से बढ़ता ही दिख रहा है जिसे रोकने की हिम्मत इस इंग्लैंड टीम में क़तई नहीं दिख रही है।
इंग्लैंड टीम चमत्कार दोहरा सकती है?
पिछले एक दशक में भारत ने अपने घर में 33 जीत (44 मैचों में) हासिल की है। पिछले 35 टेस्ट में भारत घर में सिर्फ़ 1 मैच हारा है। जी हाँ, सिर्फ़ एक। लेकिन, उससे भी ज़्यादा अहम बात यह है कि इस दौरान भारत ने सिर्फ़ 3 टेस्ट गँवाये हैं। उनमें से भी 2 उसी सीरीज़ के थे जब इंग्लैंड ने टीम इंडिया को आख़िरी बार 2011-12 में मात दी थी।
इंग्लैंड टीम क्या फिर से वो चमत्कार दोहरा सकती है? श्रीलंका के ख़िलाफ़ पिछले महीने इंग्लैंड ने 2 मैचों की सीरीज़ में आसानी से जीत हासिल की और विदेश में वो पिछले 5 टेस्ट लगातार जीतकर आ रहे हैं।
यानी फॉर्म तो अच्छा है लेकिन भारत को हराने के लिए ये काफ़ी होगा? बिल्कुल नहीं।
चेन्नई है भारत का गाबा!
पृथ्वी शॉ, के एल राहुल, हुनमा विहारी, मयंक अग्रवाल, रिद्दीमान साहा, रविंद्र जडेजा, मोहम्मद शमी, भुवनेश्वर कुमार और उमेश यादव।
इंग्लैंड को नहीं लगता है भारत से डर!
लेकिन, इंग्लैंड को मानो ऐसी बातों से कोई फर्क ही नहीं पड़ता है। नहीं तो कैसे वो ये सोच भी सकती है कि तेज़ गेंदबाज़ जेम्स एंडरसन और स्टुअर्ट ब्रॉड एक साथ प्लेइंग इलेवन का हिस्सा नहीं होंगे? एंडरसन-ब्रॉड की जोड़ी ने अब तक टेस्ट क्रिकेट में 1120 विकेट हासिल किये हैं और आधुनिक टेस्ट क्रिकेट की सबसे ख़तरनाक और कामयाब जोड़ी रोटेशन पॉलिसी का हवाला देते चेन्नई में नहीं खिलाया जायेगा। इसे दुस्साहस ही शायद कहा जा सकता है।
टीम से ज़्यादा कोहली के लिए ये सीरीज़ बेहद अहम
बहरहाल, इंग्लैंड के लिए प्राथमिकता चाहे कुछ भी हो लेकिन भारतीय टेस्ट कप्तान कोहली के लिए ये सीरीज़ उनके करियर की बेहद अहम सीरीज़ साबित हो सकती है। पहली बार कोहली की सर्वोच्चता (कप्तानी) को चुनौती देने के लिए अंजिक्य रहाणे जैसा एक शानदार विकल्प टीम को मिला है। एक नई चयन समिति भी आ चुकी है जो शायद अब हर बात में कप्तान-कोच के साथ बेवजह हाँ में हाँ न मिलाये। कोहली ने क़रीब से देखा है कि किस तरह से चेतेश्वर पुजारा और अश्विन जैसे खिलाड़ियों ने रहाणे के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया। उन्हें भी वैसा ही भरोसा जीतने की ज़रूरत है।
कोहली ने जितने टेस्ट भारत के लिए जीते हैं उतने किसी कप्तान ने नहीं और शायद भविष्य में कोई इतने जीते भी नहीं लेकिन वो सब मायने नहीं रखेगा अगर किसी तरह से कोहली कप्तान के तौर पर इस सीरीज़ में चूकते हैं।
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