सावरकर को ‘वीर’ कहने और अंग्रेजों से उनकी माफ़ी का मुद्दा जब राष्ट्रवादी विमर्श के बहाने गरमाया हुआ है, इसी बीच शूजीत सरकार की फ़िल्म सरदार उधम आई हुई है। पढ़िए, फ़िल्म समीक्षा कैसे उन्होंने माफ़ी की सलाह ठुकरा फाँसी के फंदे पर झूल गए थे।
ऐसे समय जब पूरी दुनिया में हिंसा के साथ-साथ उपभोक्तावाद भी बढ़ता जा रहा है और बाज़ार की पकड़ मजबूत होती जा रही है, महात्मा गांधी पहले से भी ज़्यादा प्रासंगिक हैं।
‘द फ़ादर’ डिमेंशिया के मरीज़ और उनकी बेटी के रिश्ते की कहानी है। इनके किरदार में आपको किसी परिचित बुज़ुर्ग की झलक दिखाई दे यह बहुत मुमकिन है। पढ़िए ‘द फ़ादर’ फ़िल्म की समीक्षा।
एक ऐसे समय में जब राजनीति का मक़सद किसी भी तरह से सत्ता हासिल करना रह गया हो और समाज में सब तरफ़ पैसे की ताक़त का बोलबाला हो, महात्मा गांधी के विचार आज कितने प्रासंगिक हैं?
बेलबॉटम के निर्माताओं ने फ़िल्म को सच्ची घटना से प्रेरित बताया है। लेकिन फ़िल्म के दृश्यों में ऐसे तथ्य दिखाए गए हैं जो सच नहीं लगती हैं। पढ़िए फ़िल्म की समीक्षा की आख़िर कैसी है यह फ़िल्म।
कृष्णभक्त कवि सूरदास ने मुग़ल सम्राट अकबर को एक पत्र लिखा था। सूरदास के पत्र को पढ़ कर काशी के हाकिम के ऊपर अकबर को अत्यंत क्रोध आया और उन्होंने उसे बदल दिया...।
जॉली एलएलबी वाले सुभाष कपूर हुमा क़ुरैशी को बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से मिलते-जुलते किरदार में ढाल कर लाये हैं सोनी लिव पर बिहार की राजनीति पर बनी वेब सीरीज़ महारानी में।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी विपक्ष के नेता होने के बावजूद इस कोरोना काल में सरकार की नीतियों के प्रति तीखा आलोचनात्मक रवैया और हमलावर तेवर रखने के बजाय लगातार सहयोग का रुख़ दिखा रहे हैं।
2021 साहिर लुधियानवी का जन्म शताब्दी वर्ष है। आज अगर वह हमारे बीच होते तो सौ साल के हो गए होते। साहिर लुधियानवी का ये शेर एक तरह से उनकी समूची रचनात्मकता, उनकी शायरी, उनके तमाम फ़िल्मी नग्मों का निचोड़ है और बुनियाद भी।
पत्रकारिता की साख और सम्मान को गिराने में टीवी न्यूज़ मीडिया ने प्रिंट के मुक़ाबले बहुत तेज़ी से शर्मनाक योगदान दिया है और इसकी क़ीमत पूरी इंडस्ट्री को चुकानी पड़ेगी।