लांसेट ने एक शोध प्रकाशित किया है जिसमें पता चला है कि फाइज़र और एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन से बनी कोरोना के ख़िलाफ़ एंटीबॉडी यानी प्रतिरोधी क्षमता 2-3 महीने में ही धीरे-धीरे घटने लगती है।
ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका कंपनी की वैक्सीन और फाइज़र की वैक्सीन के कॉकटेल पर शोध में सामने आया है कि दोनों टीकों की एक-एक खुराक को 4 हफ़्ते के अंतराल पर लेने से शरीर में काफ़ी ज़्यादा एंटी-बॉडी बनती है।
भारत में कोरोना के जिस डेल्टा वैरिएंट ने दूसरी लहर में तबाही मचाई उस पर मौजूदा वैक्सीन की दो खुराक काफ़ी ज़्यादा कारगर है। ऐसा पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड यानी पीएचई ने ही शोध के आधार पर कहा है।
यूरोपीय देशों के बाद अब भारत में भी कुछ ऐसे मामले आए हैं जिसमें कोरोना टीके लगाने के बाद ब्लड क्लॉटिंग यानी ख़ून के थक्के जमने की शिकायतें हैं। यह बात सरकारी पैनल ने ही कही है।
एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन को लेकर उठे सवाल गंभीर होते जा रहे हैं। ब्रिटेन की मेडिसन और हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेग्युलेटरी एजेंसी ने पाया है कि इसकी वैक्सीन और ख़ून के थक्के जमने के बीच कोई मजबूत संपर्क है।
कोरोना संक्रमण के तीसरी लहर का सामना कर रहे यूरोप के अब कई प्रमुख देशों ने एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन को फिर से शुरू करने की बात कही है। इन देशों का यह फ़ैसला तब आया है जब ईएमए ने कहा है कि एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन सुरक्षित है।
एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन पर अब यूरोपीय यूनियन के बड़े देशों- जर्मनी, इटली और फ्रांस ने भी रोक लगा दी है। कोरोना के ख़िलाफ़ दुनिया भर में चलाए जा रहे टीकाकरण अभियान को बड़ा झटका लगा है।
जिस एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़ोर्ड से क़रार कर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया कोरोना वैक्सीन बना रही है उसकी वैक्सीन पर कई यूरोपीय देशों में तात्कालिक तौर पर रोक लगाई गई है। यह रोक डेनमार्क, नॉर्वे और आइसलैंड ने गुरुवार को लगाई।