देश में 6 मई को 4 लाख 14 हज़ार केस आए थे और अब 27 मई को 1 लाख 86 हज़ार। यानी 21 दिन में हर रोज़ संक्रमण के मामले आधे से भी कम हो गए। तो क्या दूसरी लहर ख़त्म होने की ओर है?
फाइजर ने कहा है कि इसकी वैक्सीन भारत में मिले नये स्ट्रेन पर तो 'बेहद प्रभावी' है ही। फाइजर ने यह भी कहा है कि 12 वर्ष से ज़्यादा उम्र के सभी लोग इस टीके को लगवा सकते हैं। कंपनी आपूर्ति भी करना चाहती है तो फिर दिक्कत कहाँ है?
कुछ ही दिनों पहले हमने देखा कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने कोविड-19 महामारी पर अपनी ऊर्जा केंद्रित करने के बजाय पश्चिम बंगाल में चल रहे विधानसभा चुनाव में व्यस्त थे। अब हम एक बार फिर सरकारी समय का एक और अक्षम्य दुरुपयोग देख रहे हैं।
'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने कई सर्वे और संक्रमण के दर्ज किए गए आँकड़ों के आकलन के आधार पर कहा है कि भारत में आधिकारिक तौर पर जो क़रीब 3 लाख मौतें बताई जा रही हैं वह दरअसल 6 लाख से लेकर 42 लाख के बीच होंगी।
भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार पर मेडिकल जर्नल लांसेट से जुड़े सिटिज़न कमीशन ने सुझाव दिया है कि कोरोना वैक्सीन को मुफ्त में लगाने के लिए खरीदने और बाँटने की एक केंद्रीय स्तर व्यवस्था होनी चाहिए।
कोरोना संक्रमण और मौत के मामलों में बीते दिन के मुक़ाबले तेज़ी आई है। सोमवार को संक्रमण के 1,96,427 मामले आए थे और 3,511 लोगों की मौत हुई थी। लेकिन बीते 24 घंटों में संक्रमण के 2,08,921 मामले आए हैं और 4,157 लोगों की मौत हुई है।
क्या कोरोना वायरस पानी में भी सक्रिय रहता है और यदि ऐसा है तो यह कितना बड़ा ख़तरा हो सकता है? यूपी में पानी के सैंपल में कोरोना वायरस की पुष्टि होने के बाद यह नयी चिंता पैदा हुई है।
पहले तो सम्मान से अंतिम संस्कार नहीं और अब रेत में दफन शवों के साथ भी क्रूरता! गंगा किनारे रेत में दबाए गए शवों से रामनामी चादर रूपी कफन को भी हटाने की तसवीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। प्रियंका गांधी ने भी ट्वीट किया है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने इसकी जाँच करने के लिए कहा है कि बीजेपी सांसद गौतम गंभीर ने बड़ी मात्रा में फैबी फ्लू की दवा कैसे पाई। वह भी तब जब इस दवा की भारी किल्लत थी।
बिना इंटरनेट और स्मार्ट फ़ोन की सुविधा वाले 18-44 साल की उम्र के लोग अब सीधे टीकाकरण केंद्र पर रजिस्ट्रेशन कराकर टीके लगवा सकते हैं। इंटरनेट, मोबाइल, ऐप से बिल्कुल अनजान लोग इस फ़ैसले से लाभ ले सकेंगे।
कोरोना संकट को लेकर प्रधानमंत्री मोदी के रवैये की विज्ञान की पत्रिका लांसेट के बाद अब प्रतिष्ठित 'द इकोनॉमिस्ट' ने तीखी आलोचना की है। इसने लिखा है कि जब कोरोना की दूसरी लहर से देश त्रस्त था तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ग़ायब थे।