अब तक लोकतंत्र सूचकांक में भारत के कुछ स्थान खिसकने की ही रिपोर्टें आती रही थीं, लेकिन अब एक ताज़ा रिपोर्ट में तो कहा गया है कि भारत एक लोकतंत्र के रूप में अपनी स्थिति खोने के कगार पर है।
कश्मीर और कश्मीरी आज ख़बर के विषय हैं पर विडम्बना देखिये, उन्हें अपनी ख़बर भी नहीं मिल रही। क्या ऐसे हालात ‘इमरजेंसी’ में भी थे? तब सेंसरशिप का प्रतिरोध जारी था। आज जैसा संपूर्ण (सरेंडर) नहीं था!
बीते एक साल में दुनिया भर में लोकतंत्र को लेकर बढ़ती चिंता ने राजनीति शास्त्र के एकेडेमिक्स में हलचल मचा दी है, पिछले साल ही कम से कम 5 ऐसी किताबें हारवर्ड से लेकर कैंब्रिज तक के विश्वविद्यालयों से आयी हैं जिन्होंने दुनिया भर में पाठकों को हिला कर रख दिया है।