आपातकाल को उन लोगों ने भी बढ-चढकर याद किया, जो अपनी गिरफ़्तारी के चंद दिनों बाद ही माफ़ीनामा लिखकर जेल से बाहर आ गए थे, ठीक उसी तरह, जिस तरह विनायक दामोदर सावरकर अंग्रेजों से माफ़ी माँग कर जेल से बाहर आए थे।
राहुल बार-बार आरोप लगा रहे हैं कि देश इस समय ‘अघोषित आपातकाल’ से गुजर रहा है। राहुल ने बिना साँस रोके और पानी का घूँट पीए अर्थशास्त्री कौशिक बसु के साथ हुए इंटरव्यू में कह दिया कि उनकी दादी द्वारा 1975 में लगाई गई इमरजेंसी एक ग़लती थी।
आपातकाल यानी इमर्जेंसी लगाए जाने के लगभग 45 साल बाद गांधी परिवार के किसी व्यक्ति और कांग्रेस पार्टी के नेता ने सार्वजनिक तौर पर माना है कि वह एक 'ग़लती' थी और उस दौरान जो कुछ हुआ वह 'ग़लत' था।
देश में 45 साल पहले इंदिरा गाँधी आपातकाल लगा चुकी थीं। शास्त्री भवन में बैठे एक मलयाली अफ़सर को दिखाए बिना किसी अख़बार का संपादकीय छप ही नहीं सकता था। बड़े-बड़े तीसरमारखां संपादक नवनीत-लेपन विशारद सिद्ध हो रहे थे।
आपातकाल में आरएसएस की भूमिका नहीं थी तो आरएसएस ने क्यों कहा था कि उसका जेपी आंदोलन से कोई लेना देना नहीं? देवरस ने क्यों इंदिरा गाँधी आपातकाल की तारीफ की थी?
45 साल पहले आपातकाल के दौरान जब जेपी का नज़रबंदी आदेश निकला था तब प्रेस में खलबली मची थी। प्रेस सेंसरशिप भी लागू हो चुकी थी। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या होने वाला है।
अगर हम अपनी राजनीतिक और संवैधानिक संस्थाओं के मौजूदा स्वरूप और संचालन संबंधी व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो हम पाते हैं कि आज देश आपातकाल से भी कहीं ज़्यादा बुरे दौर से गुज़र रहा है।