loader

राहुल : इमर्जेंसी एक भूल थी, उस दौरान जो हुआ, ग़लत था

आपातकाल यानी इमर्जेंसी लगाए जाने के लगभग 45 साल बाद गांधी परिवार के किसी व्यक्ति और कांग्रेस पार्टी के नेता ने सार्वजनिक तौर पर माना है कि वह एक 'ग़लती' थी और उस दौरान जो कुछ हुआ वह 'ग़लत' था। 

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और इंदिरा गांधी के पोते राहुल गांधी ने अमेरिका स्थित कॉर्नल विश्वविद्यालय के एक वर्चुअल सम्मेलन में यह माना है। उन्होंने मशहूर अर्थशास्त्री कौशिक से बातचीत में कहा, "यह एक भूल थी, बिल्कुल, और मेरी दादी ने भी यह कहा था। पर कांग्रेस ने कभी भी भारत के संस्थागत ढाँचा पर क़ब्ज़ा करने की कोई कोशिश नहीं की थी। सच में कहा जाए तो वह ऐसा कर भी नहीं सकती थी। कांग्रेस की नीतियाँ उसे इसकी इज़ाज़त नहीं देती थीं।"  

ख़ास ख़बरें

बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनाव से जुड़ा एक मुक़दमा हारने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975, की बीच रात को बग़ैर किसी विचार-विमर्श के, बग़ैर कैबिनेट की अनुमति के आपातकाल यानी इमर्जेसी की घोषणा कर दी थी।

इसके तहत कई मानवाधिकार रद्द कर दिए गए, प्रेस सेंशरशिप लगा दी गई और पार्टी व सरकार का विरोध करने वालों को जेल में डाल दिया गया था। आम चुनाव भी एक साल के लिए टाल दिया गया था। पाँच के बदले छह साल पर 1977 में आम चुनाव हुआ और उसके एलान के साथ ही आपातकाल हटाया गया था। 

rahul gandhi : emergency was a mistake - Satya Hindi

'संस्थाओं पर क़ब्जा नहीं किया'

कांग्रेस पार्टी के इस नेता ने इसके साथ यह भी कहा कि 1975-77 के दौरान जो कुछ हुआ था, और आज जो कुछ हो रहा है, वे बिल्कुल अलग-अलग चीजें हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी ने अपने लोगों को तमाम संस्थाओ में भर दिए हैं। 

राहुल ने कहा, "यदि हम बीजेपी को चुनाव में हरा भी देते हैं तो इन संस्थाओ में बैठे उनके लोगों को नहीं निकाल सकते।" 

राहुल गांधी ने संस्थाओं को योजनाबद्ध तरीके से ध्वस्त करने का आरोप बीजेपी पर लगाया। उन्होंने कहा,

"आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था इसलिए काम करती हैं कि संस्थाएं स्वतंत्र हैं और उनके बीच संतुलन बना हुआ है। आरएसएस उनकी स्वतंत्रता पर हमला कर रहा है, यह बहुत ही सुनियोजित तरीके से हो रहा है। मैं यह नहीं कहूँगा कि लोकतंत्र का क्षरण हो रहा है, बल्कि उसका गला घोंटा जा रहा है।"


राहुल गांधी, सांसद, कांग्रेस

उन्होंने इस मामले में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ हुई अपनी बातचीत का हवाला दिया। राहुल के अनुसार, मध्य प्रदेश के आला अफ़सर मुख्यमंत्री कमलनाथ की बात नहीं सुनते थे क्योंकि वे आरएसएस से जुड़े हुए थे। बता दें कि बाद में कमलनाथ की सरकार गिर पड़ी। फ़िहाल वहां बीजेपी की सरकार है शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री हैं।

राहुल गांधी ने कहा, "आज स्थितियाँ एकदम बदली हुई हैं।"

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट दिसंबर 2020 में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वह इस पर विचार करेगा कि क्या आपातकाल को पूर्ण रूप से असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है। 94 साल की एक बुजुर्ग महिला ने यह याचिका दायर की थी।  सुप्रीम कोर्ट ने इस पर केंद्र सरकार से जवाब भी माँगा था। 

अंदरूनी लोकतंत्र

राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी के अंदरूनी कलह और वहाँ चल रहे घमासान का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा,

"मैं पहला आदमी हूँ जो यह कहता है कि पार्टी में आंतरिक चुनाव होने ही चाहिए। पर यही सवाल दूसरे किसी राजनीतिक दल के से नहीं पूछा जाता है। यह कोई नहीं पूछता है कि बीजेपी, बीएसपी या समाजवादी पार्टी में आतंरिक लोकतंत्र क्यों नहीं है।"


राहुल गांधी, सांसद, कांग्रेस

निशाने पर कांग्रेस

बता दें कि इस मुद्दे पर कांग्रेस हमेशा से ही आलोचना के केंद्र में रही है। समय-समय पर अलग-अलग राजनीतिक दलों के लोगों ने आपातकाल को मुद्दा बनाया है और कांग्रेस पार्टी से सवाल पूछे हैं। 

गृह मंत्री अमित शाह ने जून, 2020, में एक के बाद एक कई ट्वीट कर कहा था कि 'एक परिवार की सत्ता की भूख ने पूरे देश को कारागार में तब्दील कर दिया था।'

यह भी याद रखने लायक बात है कि आपातकाल का विरोध करने वाले और उस दौरान जेल जाने वाले युवाओं में कई आगे चल कर राजनीति में सफल रहे, प्रमुख चेहरे बने और उनमें कई मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री भी बने। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव इस आपातकाल की ही उपज माने जाते हैं। इसी तरह रामविलास पासवान भी इमर्जेंसी के बाद हुए 1977 के लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड अंतर से चुनाव जीत कर राजनीति में छा गए थे।

यह भी दिलचस्प है कि इनमें कई लोग विपक्ष का राजनीति में लंबे समय तक रहे और कई ने तो कांग्रेस से ही हाथ मिलाया था। लालू प्रसादय यादव की पार्टी लंबे समय तक कांग्रेस के साथ रही और अभी भी हैं। इसी तरह रामविलास पासवान कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे, हालांकि बाद में वे बीजेपी की सरकार में भी मंत्री रहे। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें