मेरे विचार में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोयान द्वारा प्रसिद्ध हागिया सोफ़िया को मसजिद में बदलने का फ़ैसला एक प्रतिक्रियावादी क़दम है, और इसकी निंदा की जानी चाहिए।
मज़हबी श्रेष्ठता के प्रश्न हमेशा से मनुष्य के ज़रूरी सवालों को बहस से बाहर कर दिया करते
हैं। ख़ाली जेब ख़ाली पेट लोग इन सवालों पर लड़ मरते हैं लड़ मर सकते हैं । सियासत इसको जानती है और समय समय पर इसका स्तेमाल करती रही है । इस्तांबुल में भी यही हो रहा है “पड़ोस” का हाल सुना रहे हैं दानिश्वर वी एन राय
तो क्या अब दुनिया भर के मुसलमानों के लिए यह जश्न का मौक़ा है? यह कि हागिया सोफ़िया या हाया सोफ़िया अब फिर से मसजिद है? वह जो कल तक संग्रहालय थी? उसके पहले मसजिद? और उसके भी पहले एक गिरजाघर?