भारत से इतर कई देशों में पेगासस स्पाइवेयर से कथित जासूसी के मामले में कार्रवाई हो रही है। फ़्रांस की राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार एजेंसी एएनएसएसआई ने इसकी पुष्टि की है कि देश के दो पत्रकारों के फ़ोन में पेगासस स्पाइवेयर मौजूद था।
साल 1967 में छह दिनों तक चले फ़लस्तीन युद्ध, उसमें तीन अरब देशों की हार और उन देशों के हिस्सों पर इज़रायल के क़ब्जे ने पूरे मध्य-पूर्व की राजनीति पर गहरा छाप छोड़ा।
इज़राइल-फ़लस्तीन के बीच जारी ख़ून-ख़राबे को रोक पाने में नाकामी के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की आलोचना शुरू हो गई है। यह आलोचना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तो हो ही रही है, उनकी अपनी पार्टी के सांसद तक कर रहे हैं।
लगभग 26 हज़ार वर्ग किलोमीटर में फैले इस इज़रायल-फ़लस्तीन के लिए जितना ख़ून बहा है, जितना संघर्ष हुआ है, उतना दुनिया में किसी जगह के लिए नहीं हुआ है। न ही दूसरे किसी संघर्ष ने विश्व राजनीति और पूरी मानवता को इस तरह प्रभावित किया है।
जिस इसलामी चरमपंथी गुट हमास ने पिछले कुछ दिनों से इज़रायली ठिकानों पर ताबड़तोड़ मिसाइल हमले कर एक नागरिक समेत सात यहूदी नागरिकों की हत्या कर दी है, उसकी नींव खुद इज़रायल ने रखी थी
इस्रायल के हमले पर अरब देश क्यों खामोश हैं? क्या अमेरिका और विश्व बिरादरी इसमें दखल देगी और देगी तो किस तरह? फ़िरोज़ मीठीबोरवाला, मुंबई, डॉ. सुनीलम, भोपाल, शीबा असलम फ़हमी, दिल्ली
कई अरब देश पहले ही इस्रायल से संबंध बनाने की दिशा में क़दम बढ़ा चुके हैं। यहाँ तक कि सऊदी अरब भी उसी दिशा में बढ़ता जा रहा है। ऐसे में पाकिस्तान पर भी भारी दबाव पड़ रहा है तो क्या उसे भी अरब देशों के पीछे चलना पड़ेगा? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट