loader

ज़मीन नहीं, अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं यहूदी और फ़लस्तीनी!

डेविड और सोलोमन के येरूशलम पर ख़ुद को उनका वंशज कहने वालों ने क़ब्ज़ा कर लिया है, लेकिन उन महान राजाओं की दयालुता और न्यायप्रियता को तिलांजलि दे कर। हज़रत मूसा की यह ज़मीन तो है, पर क्या उन्होंने इसी ज़मीन की बात कही थी जो हिंसा, छल-प्रपंच और अन्याय पर टिका हो? निश्चित तौर पर नहीं।
प्रमोद मल्लिक

एक ही सरज़मीन की दो नस्लें जो भाषा, धर्म, संस्कृति और दूसरी कई चीजों में एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं, ज़मीन के उस टुकड़े के लिए लड़ रही हैं जिस पर दोनों अपने अधिकार का दावा करती  हैं, जो दोनों के ही अस्तित्व के लिए ज़रूरी है, जो उनमें से किसी के लिए सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं है। लगभग 26 हज़ार वर्ग किलोमीटर में फैले इस इज़रायल-फ़लस्तीन के लिए जितना ख़ून बहा है, जितना संघर्ष हुआ है, उतना दुनिया में किसी जगह के लिए नहीं हुआ है। न ही दूसरे किसी संघर्ष ने विश्व राजनीति और पूरी मानवता को इस तरह प्रभावित किया है।

यहूदियों का दावा है कि रोमन साम्राज्य ने  सन् 70 में येरूशलम पर कब्जा कर 500 साल पुराने उनके मंदिर  को ध्वस्त कर उसमें आग लगा दी और सारे यहूदियों को वहाँ से खदेड़ दिया। यह शुद्ध रूप से राजनीतिक संघर्ष था, क्योंकि उस इलाक़े के लोगों ने रोमन साम्राज्य को टैक्स देना बंद कर दिया था और ख़ुद को आज़ाद घोषित कर दिया था। उस समय तो इसलाम आया भी नहीं था और ईसाई धर्म का कोई प्रभाव नहीं था। 

ख़ास ख़बरें

ब्रिटिश मैन्डेट

प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन ने ऑटोमन साम्राज्य को हरा दिया और उस इलाक़े पर कब्जा कर लिया, जहाँ आज इज़रायल, फ़लस्तीन और जोर्डन हैं। उस समय मौजूद देशों के संगठन (संयुक्त राष्ट्र की तरह) लीग ऑफ़ नेशन्स ने ब्रिटेन से कहा कि वह उस इलाक़े का प्रसाशन तब तक देखे जब तक वहां एक राष्ट्र नहीं बन जाता जो अपना काम खुद देख सके। इसे ही मैन्डेट फॉर पैलेस्टाइन या ब्रिटिश मैन्डेट कहा गया। यह दिसंबर 1922 से 15 मई 1948 तक रहा। 

jews arabs struggle over israel, palestine - Satya Hindi
ब्रिटिश मैन्डेट

बालफ़ोर डेक्लेरेशन

लेकिन इसके पहले प्रथम विश्व युद्ध ख़त्म होते समय ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेम्स आर्थर बालफ़ोर ने 1918 में ब्रिटिश यहूदी समुदाय के प्रमुख लॉर्ड रोथ्सचाइल्ड को एक चिट्ठी लिखी, जिसमें पहली बार यहूदियों के लिए एक अलग देश बनाने की बात कही गई थी। 

लीग ऑफ़ नेशन्स के मैंडेट से यह साफ़ हो गया कि जब तक यहूदियों के लिए अलग देश बनता है, तब तक उसका प्रशासन ब्रिटेन देखता रहेगा।

jews arabs struggle over israel, palestine - Satya Hindi
बालफ़ोर डेक्लेरेशन

संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट

लेकिन यहूदियों का मानना है कि यहूदी धर्म के संस्थापक पैगंबर मूसा ने इसी धरती पर यहूदियों का राज होने की बात कही थी। इस धरती पर अपना खोया अधिकार वापस पाने के लिए यहूदियों ने ठोस और निर्णायक अभियान की शुरुआत 1947 में की। 

द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद 15 मई, 1947 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक समिति का गठन किया, जिससे यह कहा गया कि वह फ़लस्तीन की ज़मीन और यहूदियों के लिए अलग देश के सवाल पर रिपोर्ट दे। दिलचस्प बात यह है कि इस समिति में भारत भी शामिल था।

इस समिति ने 1 सितंबर 1947 को जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें यह कहा गया कि फ़लस्तीन की मौजूदा सीमा के अंदर अरबों का एक देश बने, यहूदियों का एक अलग स्वतंत्र देश बने और येरूशलम शहर को संयुक्त राष्ट्र के नियंत्रण में रखा जाए।

  1. इसके मुताबिक़, लगभग 15 हज़ार वर्ग किलोमीटर में अरबों का देश फ़लस्तीन होगा, जो अरब -मुसलिम बहुसंख्यक होगा, लेकिन  वहाँ रह रहे यहूदी अल्पसंख्यक भी वहाँ समान हक़ों के साथ बने रहेंगे। 
  2. लगभग 11 हज़ार किलोमीटर में यहूदियों का स्वतंत्र देश होगा, जिसमें वहाँ रह रहे अल्पसंख्यक मुसलमान अरब समान अधिकारों के साथ बने रह सकेंगे। 
  3. येरूशलम और बेथलेहम को संयुक्त राष्ट्र के तहत रखा जाएगा।

येरूशलम-बेथलेहम

येरूशलम यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के लिए समान रूप से पवित्र है, क्योंकि यहूदियों के पहले मंदिर के अवशेष और टेंपल माउंट हैं तो मक्का-मदीना के बाद मुसलमानों का तीसरा सबसे पवित्र धर्म स्थान अल अक्सा मसजिद भी येरूशलम में है। बेथलेहम ईसा मसीह का जन्म स्थान है और वह स्थान भी जहाँ उन्हें सलीब पर चढ़ा दिया गया था और दफ़नाया गया था। इन जगहों पर चर्च ऑफ़ नेटिवटी और चर्च ऑफ होली सेपल्चर बने हुए हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासभा की इस रिपोर्ट को 29 नवंबर, 1947 को मतदान के  लिए रखा गया, इसके पक्ष में 33 देशों ने वोट दिया तो इसके ख़िलाफ़ 13 देशों ने मतदान किया जबकि 10 देश मतदान के दौरान अनुपस्थित रहे।

अरब समुदाय ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया क्योंकि वे किसी भी सूरत में ज़मीन साझा नहीं कर सकते थे। यहूदी भी इससे खुश नहीं थे।

नाराज़ यहूदी भी, मुसलमान भी

अरब मुसलमानों का का मानना था कि यहूदियों को यहां बसाने की नीति ही ग़लत है, क्योंकि उनका दावा था कि यह ज़मीन अरबों की है और यहूदी इस ज़मीन पर अरबों की कीमत पर ही बसाए जाएंगे। कुछ यहूदी भी इससे नाराज़ थे क्योंकि वे पूरी की पूरी ज़मीन चाहते थे। बेन गुरियन उस समय यहूदी राजनीति में अपनी जगह बना रहे थे और उन्होंने विश्व यहूदी सम्मेलन को इस प्रस्ताव के लिए यह कह कर राज़ी कराया कि यह यहूदी राज्य के दिशा में पहला कदम है, लिहाज़ा इसे स्वीकार कर लिया जाए।  

इज़रायल राज्य की घोषणा

जिस दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्ताव  पारित हुआ, उसके अगले ही दिन यहूदियों और मुसलमानों के बीच दंगे भड़क उठे। यहूदियों के हथियारबंद संगठन 'हेगैना', 'इरगुन' और अरब मुसलमानों के बीच जफ़ा, तेल अवीव और हैफ़ा में हिंसक झड़पें हुईं। उनके बीच पथराव हुआ, गोलियां चलीं, बम फेंके गए, मोलोटोव कॉकटेल फेंक कर आगजनी की गई। प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने वाले पोलैंड और स्वीडन के वाणिज्य दूतावास पर बमबाजी हुई।

jews arabs struggle over israel, palestine - Satya Hindi
तेल अवीव में दंगे के दौरान जान बचा कर भागते हुए लोग।

ब्रिटेन के सैनिकों ने हिंसा रोकने की कोई खास कोशिश नहीं की। हिंसा की मुख्य वजह फ़लस्तीनियों का गुस्सा था कि उनकी ज़मीन पर किसी और को बसाया जाएगा और उन्हें अलग देश दे दिया जाएगा।

जिस दिन ब्रिटिश मैंडेट ख़त्म हो रहा था, उसके एक दिन पहले यानी 14 मई, 1948 को बेन गुरियन ने इज़रायल राज्य के स्थापना की घोषणा कर दी।

यहूदियों से क्यों नाराज़ थे मुसलमान?

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान  पोलैंड, जर्मनी, यूक्रेन से हिटलर के अत्याचार से बचाए गए यहूदी शरणार्थियों को जिस तरह उस इलाके में बसाया गया था और उनकी संख्या तेज़ी से बढ़ी थी, उसे लेकर भी तरह-तरह की आशंकाएं थी। अमेरिका और यूरोप के कई देशों से पैसे एकत्रित कर यहूदी संस्थाओं ने वैध तरीके से ज़मीन खरीद कर यहूदी बस्तियाँ बसा ली थीं।

दूसरा और बड़ा कारण यहूदियों का संगठन 'हेगैना' था। आत्मरक्षा के नाम पर बना यह संगठन पूरी तरह हथियारों से लैस था, कट्टरपंथी विचारों से ओतप्रोत और मुसलिम- विरोधी भावनाओं से भरा हुआ था। उसने कई मुसलिम इलाक़ों पर हमले किए और लोगों को मारा पीटा, हत्याएं कीं। मुसलमानों में इसके ख़िलाफ़ नफ़रत पहसे से ही थी।

jews arabs struggle over israel, palestine - Satya Hindi
यहूदियों के हथियारबंद संगठन हेगैना के लड़ाके

प्रथम इज़रायल-अरब युद्ध

जिस दिन ब्रिटिश मैंडेट ख़त्म हुआ, उसी दिन यानी 15 मई, 1948 को जोर्डन, सीरिया, मिस्र और इराक़ ने इज़रायल की स्थापना की घोषणा के ख़िलाफ़ युद्ध का एलान कर दिया। जल्द ही इसमें लेबनान भी शामिल हो गया।

इन देशों ने संयुक्त राष्ट्र को यह तर्क दिया कि चूंकि ब्रिटिश मैंडेट ख़त्म हो चुका है और कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है, लिहाज़ा वे हस्तक्षेप कर रहे हैं।

इस युद्ध का नतीजा यह हुआ कि नवनिर्मित इज़रायल ने प्रस्तावित फ़लस्तीन के कई इलाक़ों पर कब्जा कर लिया। साल 1948 में युद्ध विराम पर सहमति बनी। मिस्र ने गज़ा पट्टी और जोर्डन ने पश्चिमी तट पर कब्जा कर लिया। येरूशलम के दो हिस्से कर दिए गए-पूर्वी येरूशलम पर जोर्डन ने क़ब्जा कर लिया तो पश्चिमी येरूशलम इज़रायल के हिस्से रहा।

इस तरह फ़लस्तीन बनने के पहले ही बिखर गया, उस पर कब्जा मुसलमानों का ही रहा, लेकिन वह फ़लस्तीन राज्य तो नहीं ही था। वह मिस्र, सीरिया, जोर्डन और इज़रायल में बंट गया।

नक़बा!

दंगों और बड़े पैमाने पर हुई हिंसा के कारण अरबों को अपनी ही ज़मीन से पलायन करना पड़ा, लगभग सात लाख फ़लस्तीनियों ने भाग कर पास के देशों मिस्र, सीरिया, जोर्डन, लेबनान में शरण ली। इसे अरबी भाषा में 'नक़बा' यानी महाविनाश कहा गया। हालांकि इजऱायल ने एक लाख शरणार्थियों को वापस लेने और उन्हें नागरिकता देने की पेशकश की, लेकिन इसे अरब देशों ने इस आशंका से खारिज कर दिया कि ऐसा करना इज़रायल के अस्तित्व को स्वीकार करना होता। 

वे फ़लस्तीनी अपने घर कभी नहीं लौट सके, वे आज भी अलग-अलग देशों में बने शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।

jews arabs struggle over israel, palestine - Satya Hindi
घर बार छोड़ कर भागने को मजबूर फ़लस्तीनी

इसी तरह लगभग आठ लाख यहूदियों को भी लीबिया, इराक़, सीरिया, लेबनान से भागना पड़ा। वे सब इज़रायल पहुँचे जहाँ उनका न सिर्फ़ स्वागत किया गया, बल्कि ज़मीन और दूसरी सुविधाएं देकर बसाया गया।

इससे इज़रायल में यहूदियों की आबादी यकायक बहुत बढ़ गई, इस सिद्धांत को बल मिला कि इज़रायल यहूदियों के लिए है। इज़रायल में कट्टरता बढ़ी क्योंकि अपने घरों से भाग कर इज़रायल पहुँचे लोगों के मन में कटुता थी और मुसलमानों के लिए नफ़रत।

छह दिनों का युद्ध

इज़रायल फ़लस्तीन विवाद का अगला और बहुत ही बड़ा व निर्णायक मोड़ 1967 में आया, जब एक तरफ इज़रायल तो दूसरी तरफ मिस्र, जोर्डन व सीरिया में युद्ध हुआ।

इज़रायल का यह आरोप था कि मिस्र ने गज़ा पट्टी में फलस्तीनी चरमपंथियों को यहूदी बस्तियों पर हमला करने में मदद की। उसने पहले मिस्र पर हमला किया, इस लड़ाई में सीरिया और जोर्डन भी शामिल हो गए। इन देशों ने एलान किया कि अब इज़रायल का अस्तित्व ख़त्म हो जाएगा।यह युद्ध 5 जून, 1967 से 10 जून, 1967 तक चला। इसे 'सिक्स डे वॉर' यानी छह दिनों का युद्ध कहा जाता है। अमेरिकी साज़ो-सामान से लैस इज़रायल ने तीनों देशों को हरा दिया।

jews arabs struggle over israel, palestine - Satya Hindi
सिक्स डे वॉर

युद्ध के बाद बदला इज़रायल

छह दिनों तक चले इस युद्ध में इज़रायल ने मिस्र से गज़ा पट्टी, सीरिया से गोलान की पहाड़ियाँ और जोर्डन से पूर्वी येरूशलम व पश्चिमी तट छीन लिया। इस युद्ध के पहले इज़रायल जितने बड़े इलाक़े में था, उसके दूने से ज़्यादा इलाक़े पर उसक कब्जा युद्ध के बाद हो गया।

इस युद्ध के दूरगामी नतीजे निकले। पश्चिमी येरूशलम पर इज़रायल कब्जा पहले से था, पूर्व येरूशलम पर कब्जे के बाद इस पवित्र भूमि पर इज़रायल का कब्जा हो गया जिसका सपना यहूदी सदियों से देख रहे थे। इससे उनमें धार्मिक कट्टरता बढ़ी, मुसलमानों के प्रति नफ़रत फैलाने वाले तत्वों का प्रभाव बढता गया।

jews arabs struggle over israel, palestine - Satya Hindi
जीत का जश्न मनाते हुए यहूदी वॉलंटियर
युद्ध और उसमें जीत के कारण एक तरह का कट्टर राष्ट्रवाद उभरा जो इज़रायल के प्रति प्रेम के कारण कम और मुसलमानों और अरबों के प्रति नफ़रत पर ज़्यादा टिका हुआ था। 
धीरे-धीरे इज़रायल समाज व बौद्धिक वर्ग ही नहीं, सेना जैसे प्रतिष्ठानों में भी यह नफ़रत बढ़ने लगी, अंध राष्ट्रवाद फैलने लगा। मुसलमानों को अपना भाई मानने वाले यहूदी बुद्धिजीवी हाशिए पर ढकेल दिए गए।

ओ येरूशलम!

येरूशलम पर कब्जे के बाद यह लगभग मान लिया गया कि इज़रायल अब पूर्वी येरूशलम को किसी हालत में नहीं ख़ाली करेगा। मुसलमानों का तीसरा सबसे पवित्र धर्म स्थल उनके हाथ से निकल गया, जिसे फिर से पाना अब तक सपना ही बना हुआ है। इसे फिर से पाना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।

यह बात और है कि फ़लस्तीनी पूर्वी येरूशलम को ही अपना प्रस्तावित राजधानी मानते रहे हैं, कुछ तो अब भी ऐसा ही मान रहे हैं।

भविष्य की किसी भी बातचीत में येरूशलम एक ऐसा मुद्दा बन गया, जिस पर कोई भी पक्ष एक इंच भी नहीं हट सकता है। यह रणनीतिक व भौगोलिक कम, धार्मिक, भावनात्मक व मनोवैज्ञानिक कारण अधिक बन गया।

दूसरी ओर अरब देशों ने एलान कर दिया कि वे इज़रायल को मान्यता कभी नहीं देंगे, उससे किसी तरह की कोई बातचीत नहीं करेंगे और उनसे शांति भी नहीं चाहिए। वे उसे मिटा कर रहेंगे। 

यह दावा खोखला साबित हो चुका है। जोर्डन, मिस्र, लेबनान, सीरिया ने इज़रायल को पहले ही मान्यता दे दी। संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने 15 सितंबर 2020 को इसे मान्यता दे दी। 

डेविड और सोलोमन के येरूशलम पर ख़ुद को उनका वंशज कहने वालों ने क़ब्ज़ा कर लिया है, लेकिन उन महान राजाओं की दयालुता और न्यायप्रियता को तिलांजलि दे कर। हज़रत मूसा की यह ज़मीन तो है, पर क्या उन्होंने इसी ज़मीन की बात कही थी जो हिंसा, छल-प्रपंच और अन्याय पर टिका हो? निश्चित तौर पर नहीं।

ओ येरूशलम!

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
प्रमोद मल्लिक

अपनी राय बतायें

दुनिया से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें