बाबरी मसजिद विध्वंस में अदालत द्वारा साज़िश के आरोपों से बरी किए जाने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी ख़ुश हैं कि वह दोषमुक्त हो गए हैं, लेकिन क्या वह ख़ुद को दोषमुक्त मानते होंगे? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार खुला ख़त लिखकर उठा रहे हैं सवाल।
शांता कुमार अपना टिकट कटने के बाद पार्टी के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी से मिलने गये तो लाल कृष्ण आडवाणी की आँखों में आँसू देख कर उन्हें बहुत पीड़ा हुई।
आडवाणी ने कहा है कि बीजेपी अपने विरोधियों या आलोचकों को कभी राष्ट्रविरोधी नहीं कहती। लोग कहने लगे कि वह उदार नेता हैं, लेकिन क्या वे भूल गये कि आडवाणी का रथ जिधर से गुज़रा वहाँ ख़ून की लकीरें खिंच गयीं?
आडवाणीजी आज ब्लॉग लिख कर बीजेपी और मोदी जनता पार्टी का फर्क बता रहे हैं। लेकिन ‘भावनाओं के सवाल’ को बवाल बनाने की कोशिश तो आडवाणीजी की पीढ़ी ने ही शुरू की थी।
लोकसभा चुनाव से पहले कई नामी-गिरामी उम्मीदवार रातों-रात पार्टियाँ बदल रहे हैं, उनकी चर्चा सुर्खियों में है लेकिन बीजेपी ने अपने जिन वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार किया है, उनकी चर्चा सबसे ज़्यादा है।
बीजेपी के कई ऐसे दिग्गज नेता हैं जो वर्षों तक पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे और संगठन से लेकर सरकार में कई बड़े पदों पर रहे। लेकिन इस बार वे चुनावी समर से बाहर हैं।
बीजेपी के 'लौहपुरुष' लालकृष्ण आडवाणी का टिकट कट गया और वह पार्टी में दरकिनार कर दिये गये। क्या आडवाणी को ही अपनी ऐसी हालत के लिए ज़िम्मेदार माना जाना चाहिए। सुनिये, 'सच्ची बात' में प्रभु चावला को, वह क्या मानते हैं।