कंगना रनौत देश की आज़ादी को लेकर दिए गए विवादित बयान के बाद उन्होंने महात्मा गांधी पर हमला किया है। कंगना ने गांधी जी के अहिंसा के मंत्र का मजाक उड़ाते हुए कहा है कि दूसरे गाल को भी आगे कर देना भीख है न कि आज़ादी।
जवाहरलाल नेहरू का जिस्म भले ही नहीं रहा हो, लेकिन वह एक लड़ाई अभी भी लड़ रहे हैं। वह लड़ाई क्या है यह कंगना के उस बयान से भी पता चलता है जिसमें उन्होंने कहा है कि आज़ादी 1947 में नहीं बल्कि 2014 में मिली है।
एक धोती और लाठी के साथ पूरी ज़िंदगी चलने वाले महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम के पनरुद्धार के लिए सरकार ने 1200 करोड़ रुपये क्यों आवंटित किए हैं? क्या इससे गांधी जी वाली सादगी बची रह जाएगी?
राजनाथ सिंह ने यह क्यों कहा कि महात्मा गांधी के कहने पर सावरकर ने अँग्रेज़ों को माफ़ीनामे लिखे थे? क्या इसके लिए कोई तथ्य है या फिर गांधी के विचारों पर हमले का प्रयास है?
देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि महात्मा गांधी के कहने पर सावरकर ने दया याचिका दाखिल की थी। आख़िर वह किस आधार पर यह कह रहे हैं? क्या ऐतिहासिक तथ्य इसकी पुष्टि करते हैं?
महात्मा गांधी का इस्तेमाल क्या सरकारों ने अपने-अपने तरीक़े से नहीं किया है? राज्यों ने क्या गांधी की एक ऐसी सरलीकृत छवि निर्मित नहीं की है जो किसी के लिए असुविधाजनक नहीं रहे?
वरिष्ठ पत्रकार और एडिटर्स गिल्ड के सदस्य डॉक्टर राकेश पाठक को गांधी जयंती पर गुजरात के साबरमती आश्रम में जाने से क्यों रोका गया और दो-दो बार हिरासत में लिया गया?
गाँधी जयंती पर गोडसे का महिमामंडन क्यों चल रहा है एक हत्यारे को अहिंसा के पुजारी से बड़ा बताने वाले इतने लोग कहाँ से आ गए गाँधी की समाधि पर मत्था टेकने वाले सर्वोच्च पद पर बैठे लोग इस सब पर खामोश क्यों हैं क्या गाँधी के अपमान पर उनकी मौन सहमति है डॉ. मुकेश कुमार के साथ चर्चा में शामिल हैं-प्रो. राम पुनियानी, डॉ. सुनीलम, श्रवण गर्ग, अपूर्वानंद और राकेश पाठक
क्या भारत को आज महात्मा गांधी के विचारों की ज़रूरत नहीं है? क्या मौजूदा सरकार और सत्तारूढ़ दल जानबूझ कर गांधी के विचारों पर हमले कर रही है? बता रहे हैं पत्रकार श्रवण गर्ग।
एक ऐसे समय में जब राजनीति का मक़सद किसी भी तरह से सत्ता हासिल करना रह गया हो और समाज में सब तरफ़ पैसे की ताक़त का बोलबाला हो, महात्मा गांधी के विचार आज कितने प्रासंगिक हैं?
महात्मा गांधी से जुड़े साबरमती आश्रम का पुनर्विकास किया जाएगा। आख़िर यह जीर्णोद्धार किस तरह का होगा? लोग क्यों आशंका जता रहे हैं कि कहीं इसका जीर्णोद्धार जलियांवाला बाग की तरह तो नहीं होगा?
पर क्या आज़ादी के चौहत्तर साल के बाद भारतीय लोकतंत्र गांधी की कसौटी पर खरा उतरा है? क्या भारत लोकतंत्र के उस विज्ञान को विकसित कर पाया है जिसकी कामना गांधी ने की थी?
एक तबका गांधी की हत्या को सही ठहराने की भौंडी और वीभत्स कोशिश कर रहा है। तब एक बार फिर गांधी की हत्या पर नये सिरे से पड़ताल की ज़रूरत थी। अब यह नई कोशिश एक किताब- ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ की शक्ल में सामने आयी है।
महात्मा गाँधी के इस देश की राजधानी दिल्ली की नाक के नीचे बसे ग़ाज़ियाबाद ज़िले के एक गाँव डासना में स्थित देवी के मंदिर में पानी की प्यास बुझाने के लिए प्रवेश करने वाले एक मासूम तरुण की ज़बरदस्त तरीक़े से पिटाई की जाती है।