देश में आज मीडिया की हालत क्या है और आम नागरिकों के लिए यह कितना बड़ा नुक़सान है? अधिकतर सम्पादक न तो अपने पाठकों को बताने को तैयार है और न ही कोई उससे पूछना ही चाहता है कि ख़बरों का ‘तालिबानीकरण’ किसके डर अथवा आदेशों से कर रहे हैं?
इमरजेंसी को भारत एक ऐसे भयावह काल की तरह याद रखता है जिसने सभी संस्थाओं को विकृत करके भय के वातावरण का निर्माण किया था। लेकिन इमरजेंसी या इस तरह के हालात में मीडिया की क्या भूमिका है?
सरकार ने हाथ झाड़ लिए हैं और प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया की भूमिका भी बहुत उत्साहजनक नहीं लगती। ऐसे में तब्लीग़ी जमात के बहाने मुसलमानों को निशाना बनाने वाले मीडिया को कैसे सुधारा जाए? पेश है ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन के पूर्व महासचिव एन. के. सिंह से वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की बातचीत।
सरकार ने क्यों सु्प्रीम कोर्ट से कहा कि वो आदेश दे कि मीडिया कोरोना पर खबर बिना सरकार से कंफर्म किये न चलाये? क्या ये ख़बरों को सेंशर करने की कोशिश नहीं थी? आख़िर सरकार क्यों मीडिया पर कंट्रोल चाहती है? देखिए आशुतोष की बात।