48 घंटों में घर वापसी कर रहे 60 से ज़्यादा मज़दूरों की सड़कों पर कुचल कर हुई मौत के बाद योगी सरकार ने शहरों की सीमाएँ सील कर पैदल या अन्य गाड़ियों से आ रहे मज़दूरों को रोक दिया है।
विकलांग बेटे को घर वापस लाने के लिए इक़बाल ने एक साइकिल चुराई तो उसके साथ माफ़ीनामा भी लिखकर छोड़ दिया। लॉकडाउन लागू होने के बाद से ही प्रवासी मजदूरों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है।
लंबे संघर्षों के बाद आख़िरकार कामगारों के 8 घंटा काम के जिस अधिकार को 'अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन’ (आईएलओ) ने 1919 में मान्यता दी थी, ठीक एक सदी बाद क्या इस तरह अपनी आँखों के सामने उन्हें 'उड़नछू' हो जाते वह देखता रहेगा?
केंद्र और राज्य सरकारें यह दावा कर रही हैं कि इन मज़दूरों को खाने के सामान उपलब्ध कराये जा रहे हैं पर तमाम राज्यों और शहरों से गाँवों की तरफ़ सड़कों पर उमड़ती भीड़ इन दावों की सच्चाई पर गंभीर सवाल खड़ा करती हैं।