दलितों पर अत्याचार लगातार बढ़ रहे हैं, मगर दलित राजनीति ठंडी पड़ी हुई है और दलित नेता कहीं नज़र नहीं आ रहे। क्या है इसकी वज़ह है? क्या दलित राजनीति का दौर ख़त्म हो गया है? सत्यहिंदी वेबिनार में इस बार भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद से बेबाक बातचीत
Suniye Sach। राहुल गाँधी ने कहा- ‘ग़रीब भूखा है क्योंकि सरकार अपने ‘मित्रों’ की जेबें भर रही है।’ बलिया हत्याकांड में जातिवाद ज़ोरों पर, बीजेपी विधायक सुरेन्द्र सिंह बोले - हमें क्षत्रिय प्यारे।
Suniye Sach। बलिया गोलीकांड में आरोपी के बचाव में खुलकर उतरे बीजेपी विधायक सुरेन्द्र सिंह। और बाराबंकी में भी हुई हाथरस जैसी घटना, दलित लड़की की रेप के बाद हत्या। Satya Hindi
हालिया टीआरपी घोटाले के मद्देनज़र ब्रॉडकास्टिंग ऑडिएंस रिसर्च कौंसिल यानी बार्क ने दो से तीन महीने तक के लिए न्यूज़ चैनलों की टीआरपी न देने का एलान किया है। क्या सिर्फ़ इसी से रेटिंग प्रणाली में सुधार हो जाएगा?
टीआरपी घोटाले के भंडाफोड़ होने के बाद से टीआरपी और भी संदिग्ध हो गई है। ऐसे में बार्क के सामने चुनौती है कि वह रेटिंग सिस्टम को ठीक करे। लेकिन वह क्या कर सकता है और क्या उससे दर्शकों को कोई फ़ायदा होगा? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट। Satya Hindi
व्यापक विरोध को देखते हुए तनिष्क ने स्वर्ण आभूषणों का अपना विज्ञापन रोक दिया है, लेकिन क्या उसने ऐसा करके सही किया है? क्या उसे विरोधियों के सामने इस तरह से घुटने टेक देने चाहिए थे? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट
दमन-अत्याचार के ख़िलाफ़ लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है और उसी के साथ-साथ विरोध भी। ये विरोध- प्रतिरोध देश को कहाँ ले जाएगा?
फिल्म इंडस्ट्री खड़ी हो गई है, कार्पोरेट जगत खड़ा हो रहा है। इसके पहले न्याय व्यवस्था और नौकरशाही से जुड़े लोगों ने भी आवाज़ें बुलंद की थीं। छात्र, किसान और मज़दूर तो सबसे पहले सड़कों पर आ चुके थे। क्या है इस असंतोष का मतलब? किसके विरोध में हो रही है ये लामबंदी? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट
दो बड़े कार्पोरेट के नफ़रत फैलाने वाले चैनलों का बहिष्कार करने से क्या हेट स्पीच पर लगाम लगाई जा सकेगी? क्या और कंपनियाँ इस अभियान में उनके साथ खड़ी होंगी? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट
सच बात तो ये है कि ये घोटाला बहुत बड़े घोटाले का एक छोटा सा हिस्सा भर है। वास्तव में टीआरपी यानी रेटिंग सिस्टम अपने आप में एक घोटाला है और इस घोटाले ने पूरे मीडिया को भ्रष्ट करने में भूमिका निभाई है।
राम विलास पासवान इस दुनिया में नहीं हैं मगर पूछा जा रहा है कि खुद को दलित नेता के रूप में प्रचारित करने वाले पासवान ने दलितों के लिए क्या किया? इसमें संदेह नहीं कि लगभग तीन दशकों से राम विलास पासवान राष्ट्रीय राजनीति में एक दलित नेता के रूप में जाने जाते रहे, मगर क्या उन्होंने दलितों के संघर्षों में हिस्सेदारी की, क्या उन्हें सामाजिक न्याय दिलवाने के लिए कोई लड़ाई लड़ी? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट