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कोरोना जैसी दूसरी बीमारियों से बचने के लिये क्या करे इंसान?

कोविड-19 के संक्रमण ने सारी दुनिया में कोहराम मचा रखा है। हम इंसान भले ही अपने को धरती का सर्वश्रेष्ठ जीव मानते हों, मगर प्रकृति के लिए इंसान और मामूली कीड़े में कोई भी अंतर नहीं है। जन्म, प्रजनन, और मृत्यु सबके लिए एक ही नियम है। हमें प्रकृति बारंबार इसका अहसास कराती रहती है। कोविड-19 महामारी के पैदा होने और इसके संक्रमण की वजह और उसका शिकार इंसान ही है। 

इस बीमारी की सबसे बड़ी वजह इंसान का विस्तार है। कह सकते हैं कि कहीं न कहीं उसकी इस सभ्यता में कोई बड़ा डिफ़ॉल्ट है जिसे जानने और मानने की महती आवश्यकता है। किस तरह से एक नन्हा वायरस पूरी दुनिया के विकास के मॉडल को औंधा पलट सकता है, न सिर्फ़ वह उसकी बेलगाम रफ़्तार को रोक सकता है, बल्कि ग्लोबल का दम भरने वाली आधुनिक सभ्यता को अपने घर की फसीलों तक महदूद कर सकता है। कहाँ हम पूरी दुनिया को ग्लोबल विलेज में तब्दील करने चले थे और कहाँ अब हमें अपने घर के लोगों तक से डिस्टेन्सिंग रखना पड़ रहा है!

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कोरोना के कहर से जूझती दुनिया के सामने आज जो कुछेक सवाल पूरी शिद्दत से खड़े हो गए हैं उनमें एक अहम सवाल यह भी है कि क्या वह वक़्त आ गया है जब हम मनुष्यों को खान-पान की अपनी आदतों पर नए सिरे से विचार करना चाहिए। 

बहरहाल, कोरोना वायरस हमारे लिए एक ऐसे अवसर के रूप में भी सामने आया है जिससे हम अपनी भोजन प्रणाली का विश्लेषण करें ताकि एक स्वस्थ और टिकाऊ भविष्य के लिए अपने खानपान के तौर-तरीक़ों में ज़रूरी बदलाव कर सकें। कोरोना वायरस एक जूनेटिक वायरस है, जिसका अर्थ है इसका संचरण स्वाभाविक रूप से जानवरों से इंसानों में होता है। यह सर्वविदित है कि इस वायरस के प्रसार का केंद्र (एपीसेंटर) चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी वुहान स्थित सीफूड होलसेल मार्केट ही है, जहाँ मछ्ली, मुर्गियाँ, ममोर्टस्, चमगादड़, विषैले साँप, खरगोशों तथा अन्य जंगली जानवरों के अंगों को बेचा जाता है।

इससे पहले साल 2002 में सार्स (सीवीयर एक्यूट रेसपिरेटरी सिंड्रोम)-सीओवी वायरस के प्रसार का कारण सीवेट बिल्लियाँ थीं, जिनके मांस के भक्षण के कारण यह वायरस मानव में संचारित हुआ। ग़ौरतलब है कि सार्स के प्रसार का भी केंद्र चीन के वुहान स्थित सीफूड मार्केट ही था। 

चीन के पशु बाज़ार ऐसी ही जगहों के उदाहरण हैं जहाँ जानवरों से मनुष्यों में वायरस के संचरण की अधिक संभावना होती है। चीन के बाज़ारों में कई जानवरों का माँस बिकने की वजह से ये बाज़ार मानव में वायरस की प्रायिकता को बढ़ा देते हैं।

कोविड-19 उस वायरस फैमिली का सदस्य है जिसके अंदर कई सार्स-सीओवी व मेर्स (मिडल ईस्ट रेसपिरेटरी सिंड्रोम)-सीओवी आते हैं जिनमें से कई चमगादड़ में पाए जाते हैं और वह किसी बिचौलिए जीव के ज़रिए पहले भी इंसानों को संक्रमित कर चुके हैं। 2012 का मर्स फ्लू ऊँटों से इंसानों में फैला और इसका केंद्र सऊदी अरब था। 2009 का बहुचर्चित स्वाइन फ्लू मैक्सिको में शुरू हुआ और वह सुअरों के मांस भक्षण की वजह से हम इंसानों तक पहुँचा। एचआईवी और इबोला वायरस के बारे में भी ऐसे ही सिद्धांत प्रचलित हैं।

coronavirus pandemic is due to meat, seafood and nature exploitation - Satya Hindi

इन विभिन्न प्रकोपों से हमें क्या सबक़ मिलता है? यही कि हमें अपने मौजूदा खाद्य प्रणाली की समीक्षा करनी चाहिए। वैसे भी वर्तमान जनसंख्या वृद्धि दर के मद्देनज़र संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (फूड एंड एग्रिकल्चर ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ द यूनाइटेड नेशंस-एफ़एओ) का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक विश्व की आबादी लगभग 10 अरब होगी। इतनी बड़ी आबादी का पेट भरना तभी संभव हो सकेगा जब हम अपनी भोजन प्रणाली और भोजन पैदा करने के तौर-तरीक़ों में बड़े सुधार कर पाएँगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विश्व में नई उभरती संक्रामक बीमारियों में 60 फ़ीसदी बीमारियों का कारण जूनोसिस संक्रमण ही होता है।

ऐतिहासिक रूप से ऐसी कई घटनाएँ प्रकाश में आई हैं जिनसे यह साबित होता है कि जूनोसिस संक्रमण की बदौलत वैश्विक महामारी की स्थिति कई बार बनी है। इनमें 541-542 ईसा पूर्व में चिन्हित जस्टीनियन प्लेग, 1347 में द ब्लैक डेथ, सोलहवीं सदी में यलो फीवर, 1918 में वैश्विक इन्फ्लूएंज़ा महामारी या स्पेनिश फ्लू वगैरह पशुजन्य रोग मानवता पर कहर बरपा चुके हैं।

आधुनिक महामारियाँ जैसे- एचआईवी/एड्स, सार्स और एच1एन1 इन्फ्लूएंज़ा में एक बात समान है कि इन सभी मामलों में वायरस का संचरण जानवरों से इंसानों में हुआ। 

ऐसे स्थान जहाँ मनुष्यों और जानवरों में अनियमित रक्त और अन्य शारीरिक संपर्क जैसा संबंध स्थापित होता है, वहाँ पर वायरस का ज़्यादा प्रसार होता है। ग़ौरतलब है कि पिछले तीन दशकों में 30 से ज़्यादा नए वायरस में से 75 फ़ीसदी संक्रमण जानवरों से इंसानों में हुआ है।

मयामी यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर एवं ‘फिलॉस्फर एंड द वुल्फ’ और ‘एनिमल्स लाइक अस’ जैसी पुस्तकों के लेखक मार्क रौलैंड्स ने चेतना और पशु अधिकारों संबंधी अपने शोध के माध्यम से दुनिया को चेताया है कि मांसाहार कोरोना महामारी से भी अधिक बुरे नतीजे ला सकता है। वह कहते हैं कि मुझे लगता है, लोगों को यह समझाने की आवश्यकता है कि मांसाहार से उन्होंने अपना कितना नुक़सान कर लिया है। यह न केवल हृदय संबंधी बीमारियाँ, कैंसर, डायबिटीज़ और मोटापा बढ़ा रहा है बल्कि पर्यावरण संबंधी कई समस्याएँ भी पैदा कर रहा है, जिन्हें हम महसूस कर रहे हैं। 

मांसाहार के कारण बड़े पैमाने पर जंगल काटे जा रहे हैं और पृथ्वी के लिए एक बड़ा संकट खड़ा हो रहा है। 

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नि:संदेह दुनिया भर में भूख और कुपोषण से मानवता की लड़ाई में जंतु प्रोटीन की अहम भूमिका है। मगर सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि अनियंत्रित मांसाहार की प्रवृत्ति जलवायु परिवर्तन यानी धरती का तापमान बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभा रही है। उदाहरण के लिए अमेरिका में चार लोगों का मांसाहारी परिवार दो कारों से भी ज़्यादा ग्रीन हाऊस गैस छोड़ता है। सभी ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में कृषि क्षेत्र का योगदान 15 फ़ीसदी है, जिसका तक़रीबन आधा मांस उत्पादन से होता है। 

भूमि और जल के दोहन से भी इसका गहरा संबंध है। लेकिन अजीब बात है जब ग्लोबल वॉर्मिंग की बात होती है तो सिर्फ़ कारों की बात की जाती है, मांस खाने वालों की नहीं! 

लेकिन हमें इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि दाल-चावल और सब्ज़ियाँ जंतु प्रोटीन का विकल्प नहीं हो सकतीं। जानवरों के मांस में पोषक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं। शरीर के लिए जंतु प्रोटीन भी उतना ही ज़रूरी है, जितना कि दूसरे पोषक तत्व। निर्धनों के लिए तो प्रोटीन का सबसे सस्ता ज़रिया ही जानवरों का मांस है। अगर सारी दुनिया शाकाहारी हो जाएगी तो सबसे बड़ा संकट विकासशील देशों के लिए हो जाएगा। थोड़ा-थोड़ा मांस, मछ्ली और दूध उन्हें कुपोषण से बचाए रखता है। 

जहाँ तक मांस छोड़कर दूध अपनाने की बात है तो मांस एवं दूध दोनों एक-दूसरे से जुड़े हैं। दोनों ही पशुओं से आते हैं। पृथ्वी का तापमान बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार तीन गैसों कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में पशुओं का बड़ा योगदान है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, कृषि कार्य में लगे जानवरों को दी जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं की बड़ी मात्रा ने रोगाणु प्रतिरोधी बैक्टीरिया को ख़त्म कर दिया है जिससे पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। ऐसे पशु किसी भी वायरस या बैक्टीरिया के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं। यदि इन पशुओं के मांस या अन्य उत्पादों का सेवन इंसानों द्वारा किया जाता है तो संभव है कि पशुओं में मौजूद वायरस या बैक्टीरिया इंसानों में संचारित हो जाए।

वीडियो में देखिए, कोरोना के सस्ते इलाज पर विवाद क्यों?

ऐसे में समाधान क्या है? समाधान है-संतुलन। मांसाहार कम करना और ऐसे मांस का उत्पादन करना जो स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए कम नुक़सानदायक हो। रुमिनेंट (जुगाली करने वाले पशु) के मांस की तुलना में सूअर, मुर्गे और मछ्ली स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए कम नुक़सानदायक हैं।

संतुलन हमारे जीवन का मूलमंत्र होना चाहिए। संतुलन और सादगी को जीवन का मूल मंत्र बनाकर चलें तो हम न केवल इस दुनिया को, इसके तमाम जीव जंतुओं को बेहतर माहौल दे सकते हैं बल्कि अपनी राह को भी बहुत सारे ख़तरों से बचा सकते हैं। 

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प्रदीप

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