यह क्या हो रहा है? क्यों हो रहा है? चारो तरफ़ मौत का मंजर क्यों है? लग रहा है प्रलय की आहट तेज़ हो रही है।असमय जाते प्रियजन। अशुभ सिलसिला टूट ही नहीं रहा है। चौतरफा अवसाद। हताशा। इसके पीछे कौन है?
बनारसी गायकी का एक नक्षत्र टूटा गया। राजन जी उसी अनन्त में चले गए जहॉँ से संगीत के सात सुर निकले थे। जोड़ी टूट गयी। अब साजन जी का स्वर अधूरा रह जायगा। राजन साजन मिश्र की इस जोड़ी ने बनारस के कबीर चौरा से निकल कर दुनिया में ख़्याल गायकी का परचम लहराया।
कोरोना संकट के बीच जनता आज त्राहिमाम कर रही है। कोई सुनने वाला नहीं है। राम, तुम जिस करोड़ों लोगों की आस्था से भगवान हो, वे लोग मानवता के सबसे बड़े संकट से जूझ रहे हैं। भेड़-बकरियों की तरह सड़कों पर मर रहे हैं। क्या तुम्हें उनकी कोई सुध नहीं है?
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की ग़ैरमौजूदगी में भी उनकी नज़्म पाकिस्तान हुकूमत की चूलें हिला रही थी। ऐसी नज़्म को कुछ लोग अगर हिंदू विरोधी समझ रहे हैं तो उनकी बुद्धि पर तरस खाना चाहिए।
नामवर सिंह परलोक लीन हो गए। ऐसा लग रहा है कि मानो मेरे भीतर कुछ टूट गया हो। कुछ अपूरणीय-सा। असहनीय-सा। यह हिन्दी आलोचना की तीसरी परम्परा का चले जाना है।