राकेश कायस्थ युवा व्यंग्यकार हैं। उनका व्यंग्य संग्रह 'कोस-कोस शब्दकोश' बहुत चर्चित रहा। वह 'प्रजातंत्र के पकौड़े' नाम से एक व्यंग्य उपन्यास भी लिख चुके हैं।
दो दिन पहले ही पद्म श्री अवार्ड से नवाजी गईं कंगना रनौत ने क्यों कहा, '...और उन्होंने एक क़ीमत चुकाई... बिल्कुल वो आज़ादी नहीं थी, वो भीख थी। और जो आज़ादी मिली है वो 2014 में मिली है।'
मवेशियों के अनियंत्रित झुंड की तरह यह भीड़ भाग रही है। आप एक कोने में खड़े होकर बड़े गर्व से कह रहे हैं-हाई हेट पॉलिटिक्स। आप रौंदे जा चुके हैं, लेकिन आपको अंदाज़ा नहीं है।
अन्ना आये, अनशन आया, 2014 में नयी सरकार आयी लेकिन लोकपाल नहीं आया। पाँच साल तक ठाट से चौकीदारी चलाने के बाद अचानक मोदीजी ने इस सबसे सम्मानजनक पद को `सहकारिता आंदोलन’ में क्यों बदल दिया?
इमरान खान के प्रधानमंत्री बनते ही भारत और पाकिस्तान में एक नई जंग भी छिड़ गई है। एक ऐसी जंग जो 1947 के बाद से अब तक नहीं हुई थी। ये जंग है, मौलिक विचारों की, ये जंग है, हंड्रेड परसेंट ऑरिजनल आइडियाज़ की। ये जंग है, पकौड़े और अंडों की!