loader

नागरिकता क़ानून: अमित शाह जी, आप झूठ पर झूठ बोल रहे हैं!

गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि नागरिकता (संशोधन) क़ानून, 2019 को अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए लाया गया है। लेकिन वास्तव में इस क़ानून के जरिए आरएसएस/बीजेपी के शासकों ने संविधान की मूल-आत्मा, देश के लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष चरित्र और उसकी बुनियाद पर गहरा आघात किया है। 
शमसुल इसलाम

नागरिकता (संशोधन) क़ानून, 2019 के जरिए उन हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, ईसाइयों और पारसियों को  भारत की नागरिकता प्रदान करने का रास्ता प्रशस्त किया जा रहा है, जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न से त्रस्त होकर 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले, भारत आ चुके हैं। इस विधेयक को देश के गृह मंत्री अमित शाह ने 9 दिसंबर, 2019 को लोकसभा में पेश किया है।

यह विधेयक लोकसभा में आरएसएस/बीजेपी को हासिल विशाल बहुमत की बदौलत बिना किसी परेशानी के, आठ घंटे से भी कम समय में पारित हो गया। 2 दिन बाद, 11 दिसम्बर को राज्य सभा ने केवल 6 घंटों में इस विधेयक को मंज़ूरी देकर क़ानून बनाने का रास्ता साफ़ कर दिया। इस तरह आरएसएस/बीजेपी के शासकों ने संविधान की मूल-आत्मा, देश के लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष चरित्र और उसकी बुनियाद पर गहरा आघात किया है।

गृह मंत्री अमित शाह ने इस क़ानून के बचाव में संसद के भीतर और संसद के बाहर जिन दलीलों को पेश किया है, आइए जरा उन तर्कों की बारी-बारी से जांच की जाए।

(1) नागरिकता (संशोधन) क़ानून 2019 भारत के लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष संविधान को दफनाने की एक कोशिश है। 

इस क़ानून को लोकसभा में पेश करते समय शाह ने इसके पक्ष में जो तर्क चीख-चीख कर पेश किए उस में से एक था - "संविधान हमारा धर्म है और यह विधेयक भारतीय संविधान के अनुरूप है।" प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, "यह विधेयक भारत की सदियों से चली आ रही समावेशी परंपरा और मानवीय मूल्यों में विश्वास के अनुरूप है।"

भारत में, इससे पहले इस तरह का कोई विधान नहीं रहा है। संविधान के अनुच्छेद 14 में कहा गया है, "धर्म, जाति, वंश, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।" यह क़ानून इस प्रावधान का उल्लंघन करता है। दावा किया गया है कि मौजूदा नागरिक क़ानून, 1955 का यह संशोधित रूप है। जबकि, यह अभी तक लागू क़ानून के ख़िलाफ़ है क्योंकि नागरिक क़ानून, 1955 अधिनियम के अनुसार जन्म, अवजनन, पंजीकरण, देशीयकरण या राज्यक्षेत्र के समावेश द्वारा भारतीय नागरिकता प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार प्रस्तुत विधेयक भारतीय संविधान के, देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा घोषित चार बुनियादी स्तंभों में से एक - इसके धर्मनिरपेक्ष चरित्र का अतिक्रमण है।  

ताज़ा ख़बरें

(2) यह विधेयक आरएसएस के एजेंडे का हिस्सा है। 

अमित शाह ने सदन में इस विधेयक को पेश करते हुए यह भी एलान किया है कि यह अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नहीं है। शाह के अनुसार, "पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार के रहते किसी अल्पसंख्यक को डरने की ज़रूरत नहीं है।" यहाँ पर शाह बड़े उदार और विशाल हृदय गृह मंत्री नज़र आते हैं और वह उन सभी लोगों का भारत में बतौर नागरिक स्वागत करने के लिए तत्पर हैं, "जो उत्पीड़न...अपने धर्म और अपने परिवार की महिलाओं के सम्मान को बचाने की खातिर स्वदेश छोड़ करके भारत आते हैं।"

'मानवतावादी' अमित शाह की दलील थी - "यदि पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों को सताया जा रहा है, तो हम मूक दर्शक नहीं रह सकते। हमें उनकी हिफाजत और उनके सम्मान व गरिमा की सुनिश्चितता को आश्वस्त करना होगा।"

लेकिन क़ानून पर नजर डालते ही शाह के दावे हवा हो जाते हैं। अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में सताए गए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, ईसाइयों और पारसियों से ही सहानुभूति है और देश में उनका स्वागत है, परंतु शियाओं, अहमदियों और सूफियों जैसे अन्य सताए गए मुसलमान इसके पात्र नहीं माने गए हैं। 

आरएसएस/बीजेपी के हुक्मरानों के अनुसार, सताए गए मुसलमानों पर इसलिए विचार नहीं किया गया क्योंकि वे इन देशों में अल्पसंख्यक नहीं हैं, बल्कि मुसलमान होने के कारण बहुसंख्यक हैं। एक निपढ़-निरक्षर भी बखूबी जानता है कि इन तीनों देशों में उपर्युक्त संप्रदायों से संबंधित लोग वहां घोषित तौर पर मुसलमान नहीं माने जाते हैं।

अमित शाह इन तीन मुसलिम देशों में हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, ईसाइयों और पारसियों के धार्मिक उत्पीड़न पर तो बेहद चिंतित हैं परंतु इन देशों में धर्मांध कट्टरपंथी इसलामी समूहों द्वारा तर्कवादियों, उदारवादियों, नास्तिक लेखकों, कवियों, ब्लॉगरों और धर्मनिरपेक्ष कार्यकर्ताओं की सैकड़ों की तादाद में हत्या और उत्पीड़न से जरा भी परेशान नहीं हैं।

पाक के सताए बलूचों को जगह नहीं 

पाकिस्तान में बलूच राष्ट्रवादियों की हत्याएं, जातीय आधार पर उनका अस्तित्व नेस्तनाबूत करने की मुहिम जारी है। भारत लंबे समय से इसकी भर्त्सना करता रहा है। हजारों बलूच पाकिस्तानियों को पाकिस्तान के सशस्त्र सैन्य बलों ने मौत के हवाले कर दिया है, सैकड़ों ऐसे हैं जिनका कोई अता-पता नहीं है। नस्लीय आधार पर उनका सफाया किए जाने के बावजूद, प्रस्तुत क़ानून में उनके लिए कोई गुंजाइश नहीं है कि वे भारत में शरण ले सकें, क्योंकि वे मुसलमान हैं, अल्पसंख्यक नहीं हैं!

चीन में उइग़ुर मुसलिमों पर अत्याचार

और चीन में उइग़ुर मुसलिम अल्पसंख्यकों पर हो रहे उत्पीड़न का क्या? संयुक्त राष्ट्र की एक समिति ने जांच में पाया है कि चीन के पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र में एक लाख से अधिक उइग़ुर मुसलमान और अन्य मुसलिम समूहों को बाड़बंदी करके शिविरों में रखा गया। उनके बारे में चीन की सरकार का कहना था कि उन्हें "फिर से शिक्षित करने के कार्यक्रम के तहत वहां रखा गया है।" हाल ही में, अमेरिकी कांग्रेस ने चीन पर दबाव डालने के उद्देश्य से एक विधेयक पारित किया है जिसका मक़सद चीन के सुदूर पश्चिम क्षेत्र में इस उपजातीय मुसलिम समूह पर सामूहिक क्रूर दमन को रोकना है।

https://www.cbsnews.com/news/congress-approves-bill-condemning-china-for-persecution-of-ethnic-musli...

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में उत्पीड़ित मुसलमान जो भारत में आ-बस गए हैं उन्हें स्वीकार करने के लिए अमित शाह तैयार नहीं हैं। उनका तर्क है कि इन देशों में मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं हैं। लेकिन चीन में उत्पीड़न के शिकार मुसलमान तो वहां धार्मिक अल्पसंख्यक हैं! नए नागरिकता क़ानून के तहत उन्हें शरणार्थी का दर्जा देने से इनकार करना कौन सी मानसिकता ज़ाहिर करता है। 

अफगानिस्तान में तालिबान की ज्यादतियों के शिकार होकर सैकड़ों की तादाद में अफ़गान भारत आ चुके हैं, जिन में बड़ी तादाद महिलाओं की है, उनके समक्ष जल्द ही भारी आफत आने वाली है। नए नागरिकता क़ानून के तहत ये सभी अफगान शरणार्थी अफ़गानिस्तान लौटने के लिए विवश होंगे जिसका एक बड़ा हिस्सा इस समय भी तालिबान के नियंत्रण में है।

(3) ईसाईयों के प्रति प्रेम का ढकोसला

पड़ोसी देशों में ईसाइयों के प्रति जिस कदर प्यार उड़ेला जा रहा है, यह भी कम हैरतअंगेज नहीं है। आरएसएस के सबसे प्रमुख विचारक गोलवलकर ने मुसलमानों को 'आंतरिक खतरा नंबर 1' और उनके बाद भारतीय ईसाइयों को 'आंतरिक खतरे नंबर 2' बता रखा है। 

[MS Golwalkar, Bunch of Thoughts, Sahitya Sindhu, Bangalore, 1996, p. 193.] 

ईसाइयों के प्रति अमित शाह की यह मुहब्बत बहुत जल्द बेनकाब होने वाली है। अगले कुछ दिनों के भीतर संसद में संविधान (126 वां संशोधन) विधेयक पारित हो जाएगा। इस संशोधन के बाद 25 जनवरी, 2020 से लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो-भारतीय सदस्यों के नामांकन की व्यवस्था ख़त्म हो जाएगी। ईसाईयों के इस समुदाय से प्रतिनिधि मनोनीत किए जाने का प्रावधान इसलिए किया गया था कि देश की आबादी में अत्यल्प होने की वजह से इस समुदाय के प्रतिनिधि चुनाव जीत कर सदन में आ सकें, यह मुश्किल है। एक हकीकत यह भी है कि बावजूद संवैधानिक प्रावधानों के मोदी सरकार ने17 वीं लोकसभा के गठन के बाद (छह महीने से अधिक समय तक) सदन में एंग्लो-भारतीय समुदाय से किसी भी सदस्य को नामित नहीं किया है। [https://www.telegraphindia.com/india/anglo-indian-appeal-on-nominated-members/cid/1725605?ref=top-st...

वह सरकार जो देश की सीमाओं के पार ईसाइयों के उत्पीड़न को लेकर व्यथित है, देश के भीतर उनके लिए सुनिश्चित तमाम संवैधानिक अधिकारों के बावजूद, उन्हें उन अधिकारों से वंचित करने में लगी हुई है।

(4) सिख, जैन और बौद्ध धर्मों के प्रति अमित शाह का प्रेम जिन्हें आरएसएस भारत में स्वतंत्र धर्म ही नहीं मानता है! 

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदुओं, सिखों, जैनियों और बौद्धों के प्रति अमित शाह जो मुहब्बत जाहिर कर रहे हैं, यह भी ख़ासी दिलचस्प है। बहैसियत आरएसएस के मार्ग-दर्शक, अमित शाह को हिंदू धर्म से स्वतंत्र इन धर्मों की हैसियत मंजूर नहीं है। उनके गुरु गोलवलकर की शिक्षा यही है कि हिंदुओं को सिखों, बौद्धों और जैनियों में विभाजित नहीं किया जाना चाहिए, "बौद्ध, जैन, सिख सभी के लिए एक ही व्यापक शब्द 'हिंदू' है।" [MS Golwalkar, The Spotlights, Sahitya Sindhu, Bangalore, 1974, p. 171.]

(5) श्रीलंका के उत्पीड़ित हिन्दुओं को अधरझूल में छोड़ दिया गया है। 

नागरिकता संशोधन क़ानून श्रीलंका के बारे में खामोश है। वहां हिंदू तमिलों का बड़े स्तर पर नरसंहार हो चुका है। श्रीलंका में फासीवादी बौद्ध संगठनों का कहना है, श्रीलंका केवल सिंहलियों के लिए है। अमित शाह और उनकी हिंदुत्ववादी सरकार ने श्रीलंका में घनघोर उत्पीड़न से त्रस्त उन हिंदू तमिलों के साथ विश्वासघात किया है जिन्हें गृहयुद्ध के दौरान श्रीलंका से पलायन करके भारत में आना पड़ा था। श्रीलंका में इस समय रह रहे हिन्दुओं को अब भी उत्पीड़न झेलना पड़ रहा है।

(6) ‘एक राष्ट्र, एक विधान’ को लेकर अमित शाह का पाखंड

सत्ताधारी आरएसएस/बीजेपी सक्रिय रूप से यह वकालत करते रहे हैं कि भारत एक राष्ट्र है और प्रत्येक मामले में संपूर्ण देश और देशवासियों के लिए एक ही क़ानून होना चाहिए। रोचक स्थिति यह है कि भारत में अब तक नागरिकता के संबंध में सभी के लिए एक ही नागरिकता क़ानून रहा है, लेकिन प्रस्तुत संशोधन के बाद, देश में नागरिकता के लिए विभिन्न क़ानून होंगे। 

वर्तमान क़ानून संपूर्ण अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, लगभग पूरे मेघालय और असम और त्रिपुरा के कुछ हिस्सों को इस क़ानून से बाहर रखता है, फिलहाल मणिपुर इसके दायरे में आता है लेकिन इसे भी इस क़ानून की परिधि से बाहर कर दिए जाने की सम्भावना है। इस प्रकार नागरिकता को लेकर विभिन्न क़ानून होंगे, 'एक राष्ट्र, एक क़ानून' का नारा तो अब पूरे तौर पर खोखला साबित हो गया है।

(7) इस क़ानून की पटकथा आरएसएस के सबसे महत्वपूर्ण विचारक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक गोलवलकर ने 1939 में ही लिख दी थी। 

गोलवलकर ने 1939 में अपनी पुस्तक वी ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड में भारतीय राष्ट्र के चरित्र के बारे में जो कुछ कहा है, प्रस्तुत नागरिकता (संशोधन) क़ानून 2019 उसकी पुनरावृति है। उक्त पुस्तक में गोलवलकर ने कहा था कि भारत एक अनन्य हिंदू राष्ट्र रहेगा। 

गोलवलकर ने एलानिया कह दिया था, "हिन्दुओं की धरती हिन्दुस्थान में हिन्दू राष्ट्र रहता है और रहना ही चाहिये…फलतः केवल वही आंदोलन सच्चे अर्थों में ‘राष्ट्रीय’ हैं जो हिन्दू राष्ट्र के पुनर्निर्माण, पुनरोद्भव तथा वर्तमान स्थिति से इसकी मुक्ति का उद्देश्य लेकर चलते हैं। केवल वही राष्ट्रीय देशभक्त हैं जो अपने हृदय में हिन्दू नस्ल और राष्ट्र के गौरवान्वीकरण की प्रेरणा के साथ कार्य को उद्धत होते हैं और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये संघर्ष करते हैं।” 

गोलवलकर ने यहाँ तक कह दिया था कि वे सभी लोग, जिनकी हिंदू राष्ट्र कायम करने के प्रति आस्था नहीं है "देशद्रोही हैं और देश के दुश्मन हैं, या फिर नरम शब्दों में कहा जाए तो मूर्ख हैं।"

[MS Golwalkar, We or Our Nationhood Defined, Bharat Publication, Nagpur, 1939, p. 44.]

आरएसएस के अन्य नेताओं की तरह गोलवलकर भी हिटलर और मुसोलिनी के प्रशंसक थे। उन्होंने लिखा है - "जर्मन नस्ल के गौरव की चर्चा आज हर जगह है। अपनी संस्कृति और नस्ल की शुद्धता को बनाये रखने के लिये उसने अपने देश को सेमिटिक (सामी) नस्ल के लोगों यानि यहूदियों से स्वच्छ कर पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया है। वहां नस्लीय गौरव के उच्चतम रूप की अभिव्यक्ति हुई है। जर्मन ने यह भी सिखाया है कि कैसे जड़ तक विभिन्नता वाली नस्लों और संस्कृतियों को एक एकीकृत समग्रता में समाहित करना बिल्कुल असंभव है। यह हिंदुस्थान के संदर्भ में हमारे लिये सीखने और लाभ उठाने के लिये अच्छा अध्याय है।" [M.S. Golwalkar, We Or Our Nationhood Defined, Bharat Publications, Nagpur, 1939, p. 35.]

गाेलवलकर ने इसी पुस्तक में साफ-साफ कहा, "चतुर प्राचीन राष्ट्रों के अनुभव से अनुमोदित इस दृष्टिकोण से हिंदुस्थान की विदेशी नस्लों को या तो निश्चित तौर पर हिन्दू संस्कृति और भाषा अपना लेनी चाहिये, हिन्दू धर्म का सम्मान तथा उस पर श्रद्धा रखनी सीखनी चाहिये, हिन्दू नस्ल और संस्कृति यानि हिन्दू राष्ट्र के गौरवगान के अलावा किसी और विचार को मन में नहीं लाना चाहिये और हिन्दू नस्ल में समाहित हो जाने के लिये अपनी पृथक पहचान त्याग देनी चाहिये या फिर वे इसे देश में पूरी तरह से हिन्दू राष्ट्र के अधीन बिना किसी दावे के, बिना किसी भी विशेषाधिकार के और उससे भी आगे बिना किसी भी वरीयतापूर्ण व्यवहार के, यहां तक कि बिना किसी नागरिक अधिकार के रह सकते हैं’, उनके लिये कोई और रास्ता अपनाने की छूट तो कम से कम नहीं ही होनी चाहिये। हम एक प्राचीन राष्ट्र हैं, हमें उन विदेशी नस्लों से, जिन्होंने रहने के लिये हमारे देश को चुना है, ऐसे ही निपटना चाहिये जैसे प्राचीन राष्ट्र निपटते हैं।" [M.S. Golwalkar, We Or Our Nationhood Defined, Bharat Publications, Nagpur, 1939, p. 47.]

विचार से और ख़बरें

हैरानी की बात है कि गोलवलकर की घोर अल्पसंख्यक विरोधी और नाज़ीवाद/फासीवाद समर्थक पुस्तक वी ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड, का प्राक्कथन लिखना मंजूर किया, लोकनायक नाम से विख्यात कांग्रेसी नेता एम. एस. अणे ने। हिंदू राष्ट्र के विचार के प्रति सहानुभूति के बावजूद, अणे जैसे नेता को गोलवलकर द्वारा पुस्तक में प्रतिपादित अल्पसंख्यकों की पूर्ण पराधीनता और उनका सफाया किए जाने जैसे प्रतिचरमपंथी विचार रास नहीं आए। अणे ने सही रेखंकित किया कि गोलवलकर के लिए 'अल्पसंख्यक' या 'विदेशी जाति' का तात्पर्य सिर्फ मुसलमानों से ही था। गोलवलकर द्वारा बताए गए अधिनायकवादी समाधानों से अणे स्वयं को पृथक रखने का प्रयास करते नजर आते हैं। प्राक्कथन में उन्होंने लिखा था: 

"मैंने पाया कि मुसलमानों की समस्या से गुज़रते हुए लेखक हिन्दू राष्ट्रीयता और हिन्दू संप्रभुतासंपन्न राज्य के बीच का अंतर हमेशा दिमाग़ में नहीं रख पाये हैं। एक संप्रभु राज्य के रूप में हिन्दू राष्ट्र एक सांस्कृतिक राष्ट्रीयता के रूप में हिन्दू राष्ट्र से पूरी तरह भिन्न चीज़ है। किसी भी आधुनिक राज्य ने एक बार अपने-आप या फिर किसी क़ानूनी नियम के चलते घुलमिल जाने के बाद अपने यहां रहने वाले विभिन्न राष्ट्रीयताओं वाले अल्पसंख्यकों को नागरिक अधिकारों से वंचित नहीं किया है।"

[M.S. Golwalkar, We Or Our Nationhood Defined, Bharat Publications, Nagpur, 1939, p. xiii.]

यह जानना और भी दिलचस्प है कि पुस्तक के अगले संस्करणों में अणे की इन आलोचनात्मक टिप्पणियों को हटा दिया गया था। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
शमसुल इसलाम

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें