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पप्पू पास हो गया, वह भी फ़र्स्ट डिविज़न में

लोगों के मन में जो यह धारणा बन गई थी कि 2019 की लडाई एकतरफ़ा है, कांग्रेस बीजेपी का मुक़ाबला नहीं कर सकती और राहुल गाँधी मोदी के सामने नहीं ठहरते। आज के चुनाव परिणामों के बाद यह तर्क ख़त्म होगा। अभी तक बीजेपी की तरफ़ से  कहा जाता था कि मोदी जी का कोई विकल्प नहीं है। लेकिन अब तय है कि 2019 का लोकसभा चुनाव मोदी बनाम राहुल होगा।
आशुतोष
विधानसभा चुनावों के नतीजे आ गए हैं और अब यह कहा जा सकता है कि पप्पू फ़र्स्ट डिविज़न में पास हो गया। वह सिंघम बन गया है। राहुल गाँधी के लिये पिछले पाँच साल बडे बुरे बीते। उनकी समझदारी और राजनीतिक परिपक्वता पर बड़े तीखे सवाल खड़े किए जाते रहे। राहुल से ज़्यादा बड़ी अग्निपरीक्षा हाल के दिनों में शायद किसी नेता ने नहीं दी होगी। आज यह कहा जा सकता है कि देश की राजनीति में बडा बदलाव आने वाला है। हिंदीभाषी राज्यों - राजस्थान और छत्तीसगढ में कांग्रेस ने भारी उलटफेर किया। वहाँ वह आसानी से सरकार बना रही है। मध्य प्रदेश में भी वह सरकार बनाने के काफ़ी क़रीब है।हालाँकि तेलंगाना में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा हैं और मिज़ोरम भी हाथ से निकल गया है। पर इस चुनाव में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को बड़ी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है। यह कहा जा सकता है कि अब ऊँट आया पहाड़ के नीचे।अब जब ये परिणाम आ गए हैं तो यह पूछा जा सकता है कि इसका आने वाले दिनों में क्या फ़र्क़ पड़ेगा। मेरे विचार से इस चुनाव के पाँच बडे निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। आज यह कहा जा सकता है कि देश की राजनीति में बडा बदलाव आने वाला है। हिंदीभाषी राज्यों - राजस्थान और छत्तीसगढ में कांग्रेस ने भारी उलटफेर किया। वहाँ वो आसानी से सरकार बना रही है। मध्यप्रदेश में भी वो सरकार बनाने के काफी क़रीब है।हालाँकि तेलंगाना में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा हैं। और मिज़ोरम भी हाथ से निकल गया है। पर इस चुनाव में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को बडी शर्मिंदगी का सामना करना पडा है। ये कहा जा सकता है कि अब ऊँट आया पहाड़ के नीचे। इस चुनाव के पाँच बडे निष्कर्ष निकाले जा सकता हैं। आज के चुनाव नतीजों के बाद देश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव आने वाला है। लंबे समय के बाद कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी ख़ुशख़बरी आई है। इन परिणामों से पाँच निष्कर्ष बड़े आराम से निकाले जा सकते हैं।

कांग्रेस-बीजेपी मुक़ाबला

1. साल 2014 के बाद से एक मिथ बन गया था कि कांग्रेस सीधे मुक़ाबले में बीजेपी का सामना नहीं कर सकती। उसकी हार तय होती है, वह जीती बाज़ी भी हार जाती है। गुजरात और कर्नाटक में यह उम्मीद थी कि वह बीजेपी को पटकनी दे सकती है। पर दोनों जगह वह चूक गई। इसी तरह हरियाणा, महाराष्ट्र, असम, झारखंड, उत्तराखंड, जम्मू में बीजेपी को वह टक्कर नहीं दे पाई। गोवा और मेघालय में वह बढ़त के बाद भी सरकार बनाने से चूक गई। सिर्फ़ पंजाब वह जीत पाई पर वहाँ बीजेपी सीधी लडाई में नहीं थी। आज की तारीख़ में वह तीनों राज्यों को जीतती दिख रही है। ये सफलताएँ कांग्रेस को एक नई ताक़त देंगी और यह धारणा बदलेगी कि वह बीजेपी को नहीं हरा सकती।

पप्पू नहीं हैं राहुल

2. कांग्रेस की जीत का सेहरा सीधे राहुल गाँधी के सिर बँधेगा। उनके बारे में यह प्रचलित मुहावरा कि वे राजनीति के पप्पू हैं,  हटेगा। वह सिर्फ़ हारने के लिए खेलते है, यह भ्रम टूटेगा।
राहुल ने गुजरात चुनावों के बाद बहुत सोच-समझ कर हिंदूवादी रास्ते पर चलने का ख़तरा मोल लिया। यह दाँव उन पर उलटा भी पड़ सकता था। पर नतीजे यह संकेत कर रहे हैं कि यह ख़तरा लेना सही साबित हुआ। बीजेपी राहुल के हिंदूवाद में फँस गई।
फिर राहुल ने धड़ों में बँटी कांग्रेस को तीनों राज्यों में एकजुट करने का भी काम किया और बूथ तक पार्टी को एक्टिव करने में जुटे। यानी उनकी नेतृत्व क्षमता पर उठने वाले सवाल शांत होंगे। वह एक प्रभावी नेता के तौर पर स्थापित होंगे।

राहुल का दम

3. मोदी जी का मिथ टूटेगा कि वे अपने दम पर चुनाव जिता सकते हैं। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में, बाद के दिनों में मोदी जी की तस्वीरें पोस्टर-बैनर से हट गई थीं। चुनाव प्रचार में रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान ही हावी रहे। चुनाव उनके इर्द-गिर्द बनाने की कोशिश की गई, जबकि मोदीजी खुद चुनौती देकर दुश्मन को ललकारने के लिए मशहूर रहे हैं। गुजरात में उन्होंने अपने बल पर बाज़ी पलटने का काम किया। पर इन चुनावों में वह बुझे-बुझे दिखे। हार उनका नूर काफ़ी हद तक ख़त्म कर देगी। मोदी उतार शुरू हो जाएगा जो उनके लिए बड़ी चुनौती खड़ी करेगा।

4. अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे को मज़बूती से उठाने का काम संघ परिवार ने किया। धर्मसंसद की गई। 500 से ज़्यादा जिलों में गाँव-गाँव राम के नाम पर सभाएँ भी की गईं पर कोई ज़्यादा असर तो दिखा नहीं।बल्कि यह कहें तो बेहतर होगा कि मामला टाँय-टाँय फिस्स हो गया। ऐसे में यह हवा भी फैलेगी कि हिंदुत्ववाद का झंडा उठाकर निर्णायक राजनीति अब आगे करना ख़तरे से ख़ाली नहीं। इससे हिंदुत्व के ख़ेमे मे कन्फ्यूज़न फैलेगा कि करें तो क्या करें - कौन सा रास्ता लें - हिंदुत्व का या कुछ और।

'नो टीना'

5. सबसे बड़ी बात यह है कि लोगों के मन में जो यह धारणा बन गई थी कि 2019 की लडाई एकतरफ़ा है, कांग्रेस बीजेपी का मुक़ाबला नहीं कर सकती और राहुल गाँधी मोदी के सामने नहीं ठहरते, यह तर्क ख़त्म होगा। अभी तक बीजेपी की तरफ़ से  कहा जाता था कि मोदी जी का कोई विकल्प नहीं है। उनके विरोधी भी कहते थे कि ‘टीना (There Is No Alternative) फ़ैक्टर’  की वजह से ही मोदी जी की सरकार फिर बनेगी वरना उनकी सरकार ने कोई काम नहीं किया। आज के चुनाव परिणामों के बाद तय है कि 2019 का लोकसभा चुनाव मोदी बनाम राहुल होगा। चर्चा यह होगी कि राहुल का हिंदुवाद बेहतर है या मोदी का हिंदुत्व। टीना फ़ैक्टर  की वकालत करने वालों की दलील कमज़ोर पड़ेगी।
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