सीमांचल एक्सप्रेस हादसा क्यों हुआ? अफ़सरों ने सरसरी तौर पर ट्रैक में फ़्रैक्चर को इसका कारण माना है। लंबे समय से होते रहे इन हादसों के लिए भी अधिकतर रिपोर्टें ट्रैक में ख़राबी को सबसे बड़ा कारण बताती रही रही हैं। रेलवे मंत्रालय भी जब तब रेलवे ट्रैक को दुरुस्त करने की ज़रूरत है बताता रहा है। हालाँकि फंड की कमी के कारण ये बेहद ज़रूरी काम नहीं हो रहे हैं। इसी को लेकर सवाल भी उठते रहे हैं कि यदि पहले सामान्य ट्रेनों की यात्रा सुरक्षित नहीं हो सकती तो बुलेट ट्रेन की इतनी जल्दी क्यों?
रेल मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साढ़े चार वर्षों में साढ़े तीन सौ अधिक छोटे-बड़े हादसे हो चुके हैं। इनमें मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग पर हुई ऐसी-छोटी दुर्घटनाएँ भी शामिल हैं जिनमें एक या दो लोगों की जान गई। रिपोर्टें है कि मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग बनने से हादसों में कमी आई है। हालाँकि एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 2014-15 में 135 हादसे हुए और 2015-16 में घटकर 107 रह गए। 2016-17 में रेल हादसों का आंकड़ा घटकर 104 हो गया। लेकिन बड़े हादसे अभी भी काफ़ी ज़्यादा हैं।
साढ़े चार साल में ये रहीं बड़ी दुर्घटनाएँ
- 10 अक्टूबर, 2018 को रायबरेली के हरचंदपुर रेलवे स्टेशन के पास न्यू फरक्का एक्सप्रेस में हादसा। इंजन सहित नौ डिब्बे पटरी से उतरे। 7 लोगों की मौत।
- 19 अगस्त, 2017 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में उत्कल एक्सप्रेस पटरी से उतरी। 22 लोगों की मौत। 156 से ज़्यादा लोग घायल।
- 22 जनवरी, 2017 को हीराखंड एक्सप्रेस आंध्र प्रदेश के विजयानगरम में दुर्घटना। 39 यात्रियों की मौत। 36 लोग घायल।
- 20 नवंबर, 2016 को उत्तर प्रदेश के कानपुर के पास पुखरायां में हादसा। 150 से ज़्यादा लोगों की मौत। 200 से ज़्यादा लोग घायल।
- 5 अगस्त, 2015 में मध्य प्रदेश के हरदा में 10 मिनट के अंदर दो ट्रेन हादसे। रेल पटरी धंसने से मुंबई-वाराणसी कामायनी एक्सप्रेस और पटना-मुंबई जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गई। 31 लोगों की मौत।
- 25 मई, 2015 को कौशांबी में मूरी एक्सप्रेस हादसे का शिकार। 25 की मौत। 300 से ज़्यादा घायल।
- 20 मार्च, 2015 को जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी। 34 लोग मारे गए।
- 26 मई, 2014 को उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले में गोरखधाम एक्सप्रेस एक मालगाड़ी से टकराई। 22 से ज़्यादा लोगों की मौत।
ट्रैक में इन गड़बड़ियों से होते हैं हादसे
- भारत में ज़्यादातर रेलवे ट्रैक काफ़ी पुराने हैं। इनकी मरम्मत का काम भी ठीक से नहीं होता है जो हादसों की वजह बनता है। तेज़ रफ़्तार अक्सर ट्रेन हादसों की वजह बन जाती है।
- ट्रैक में फिश प्लेट्स को बोल्ट से जोड़ा जाता है। इनकी रिपेयरिंग नहीं की जाए तो ये लूज होने लगते हैं जो कभी भी हादसे की वजह बन सकते हैं।
- ट्रैक ज्वाइंट का ठीक से रख रखाव ना करना और समय पर मरम्मत ना करना ट्रेन हादसे की वजह बन सकता है।
- अगर ट्रेन के पहियों की सही समय पर मरम्मत नहीं होती है तो वे जाम हो जाते हैं। ऐसे में ट्रेन के ट्रैक से उतरने का ख़तरा कई गुना बढ़ जाता है। इससे पहिए ट्रैक को भी ख़राब कर सकते हैं।
- ट्रेनों को एक मार्ग से दूसरे मार्ग पर भेजने के लिए लगाए गए मैकेनिकल इंस्टालेशन की मरम्मत सही से नहीं हो रही।
- गर्मी में ट्रैक का फैलना और सर्दियों में सिकुड़ना। इसके लिए जो तात्कालिक उपाय किए जाते हैं वह रेलवे की तरफ़ से विंटर पेट्रोलिंग है।
पुराने पड़े ट्रैकों और ट्रेनों को बदलने की ज़रूरत
इन्हीं वजहों से पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने भी एक बार कहा था कि रेलवे में पूरा ध्यान ऑपरेशन के बजाय कॉस्मेटिक बदलावों पर है। तो क्या बुलेट ट्रेन भी उसी कॉस्मेटिक बदलावों का रूप है?
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