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10% आरक्षण केवल सवर्णों के लिए नहीं, मुस्लिम, ईसाई, सबके लिए है

10% आरक्षण वाले बिल के बारे में मीडिया में कहा जा रहा है कि यह मोदी सरकार का सवर्णों, ख़ासकर ग़रीब सवर्णों को एक तोहफ़ा है। लेकिन क्या यह आरक्षण केवल ग़रीब सवर्णों के लिए है या दूसरे धर्मों के लोग भी इसमें आवेदन कर सकेंगे? मैं यहाँ इस पूरे मामले को समझने और समझाने की कोशिश करूँगा और उन भ्रमों को भी दूर करने की कोशिश करूँगा जो मीडिया ने पैदा किए हैं। सबसे पहला और सबसे बड़ा भ्रम -
  • क्या यह सवर्ण आरक्षण है?
नहीं, यह सवर्ण आरक्षण नहीं है। यह आर्थिक आधार पर आरक्षण है, जिसका लाभ भारत का कोई भी ऐसा नागरिक उठा सकता है जिसके परिवार की सालाना आमदनी 8 लाख रुपये से कम हो, जिसकी पारिवारिक ज़मीन 5 एकड़ से कम हो, जिसके पास 1000 वर्गफ़ुट से कम का आवास हो, जिसके पास म्युनिसिपल एरिया में 100 गज का और नॉन-म्युनिसिपल एरिया में 200 गज से कम का प्लॉट हो और सबसे बड़ी बात - जो किसी भी आरक्षित वर्ग में नहीं आता हो।
  • आरक्षित वर्ग में तो ईसाई और मुसलमान भी नहीं आते हैं तो क्या वे भी इस 10% आरक्षण में हिस्सेदार हो सकते हैं?
हाँ,  इस आरक्षण के तहत ईसाई और मुसलमान भी आ सकते हैं यदि वे आय की शर्त पूरी करते हों। उसी तरह जैसे जनरल कैटिगरी में ईसाई और मुसलमान भी आवेदन कर सकते हैं।
  • यदि यह जनरल कैटिगरी की ही तरह है जिसमें सवर्णों के साथ-साथ मुसलमान और ईसाई भी आवेदन कर सकते हैं तो अलग से इस आरक्षण का क्या मतलब?
मतलब है। दरअसल जनरल कैटिगरी में कोई भी उम्मीदवार हो सकता है। न जाति-धर्म का बंधन है न आय का। अनुसूचित जाति-जनजाति और पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार भी जनरल कैटिगरी में आवेदन कर सकते हैं और प्रतियोगिता में चुनकर आ सकते हैं। लेकिन इस 10% आरक्षण में आरक्षित वर्ग के लोग नहीं आएँगे। यानी यह शुद्ध रूप से उनके लिए सुरक्षित होगा जिनको कहीं से कोई आरक्षण नहीं मिला है चाहे वह सवर्ण हो, ईसाई हो या मुसलमान। दूसरे, जनरल कैटिगरी में आय की कोई सीमा नहीं है जबकि इस आरक्षण में आय सीमा निर्धारित की गई है।
  • यानी हम कह सकते हैं कि यह 10% आरक्षण उन ग़रीबों के लिए है जिनको आरक्षण नहीं मिला हुआ था और इस वजह से जो नौकरियों में नहीं आ पाते थे या शिक्षा नहीं हासिल कर पाते थे?
यह कहना मुश्किल है कि इस आरक्षण से अब तक के अनारक्षित ग़रीबों को लाभ होगा चाहे वे सवर्ण हों, ईसाई हों या मुसलमान, क्योंकि इसमें ग़रीबी निर्धारण की जो ऊपरी सीमा रखी गई है, वह बहुत ऊँची है। उस दायरे में आने वाले लोग बिल्कुल साधनहीन हों, ऐसा नहीं हैं, बल्कि बहुत संभव है कि जनरल कैटिगरी की अधिकतर सीटों पर पहले भी वही चुनकर आते थे और अब भी वही चुनकर आएँगे।
  • आप कह रहे हैं कि जो पहले ही सरकारी नौकरियों में चुनकर आ रहे थे या शिक्षा संस्थानों में दाख़िला पा रहे थे, उन्हीं को इस 10% आरक्षण का लाभ दिया गया है तो फिर यह किया क्यों गया? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा। बहुत कन्फ़्यूज़न है। ज़रा आसान तरीक़े से बताइए।
चलिए, मैं आपको सारा मामला दो मटकों और एक जग के उदाहरण से समझाता हूँ।इसे आप यूँ समझिए कि एक घर में दो परिवार रहते हैं - परिवार-क और परिवार-ख। घर में पानी से भरे दो मटके रखे हुए हैं। एक मटका-क जिससे परिवार-क पानी पीता है (ये आरक्षित सीटें हैं) और दूसरा मटका-ख जिससे परिवार-ख भी पानी पीता है और परिवार-क भी चाहे तो पी सकता है (यह जनरल कैटिगरी है)। अब सरकार ने यह किया है कि मटका-ख से एक जग पानी निकालकर परिवार-ख के बच्चों के लिए अलग रख दिया है। (यह 10% आरक्षण है जो इस 51% जनरल कैटिगरी से ही काटकर बनाया गया है)। इस जग का पानी न तो परिवार-क के सदस्य पी सकते हैं, न ही परिवार-ख के बड़े-बुजुर्ग। यह जग केवल परिवार-ख के बच्चों के लिए है।
  • अब समझ में आ रहा है कुछ-कुछ। यानी परिवार-ख के बच्चे अब से केवल जग से पानी पीएँगे जो उनके लिए अलग से रख दिया गया है? लेकिन यदि पानी कम पड़ गया तो?
परिवार-ख के बच्चे जग से भी पानी पी सकते हैं और चाहें तो परिवार-ख के मटके से भी पानी पी सकते हैं यदि उनके हाथ वहाँ तक पहुँचते हों। (यानी जिनकी आय 8 लाख से कम है, वे जनरल कैटिगरी में भी आवेदन कर सकते हैं यदि उनको लगता है कि वे जनरल कैटिगरी में कंपीट कर पाएँगे। उनके लिए कोई रुकावट नहीं है।)
  • बच्चे जग से भी पानी पी सकते हैं, मटका-ख से भी पानी पी सकते हैं तो फिर उनके लिए अलग से जग रखा ही क्यों गया?
कहा न! मटका-ख का पानी परिवार-ख भी पी सकता था और परिवार-क भी। अब उस मटका-ख का पाँचवाँ हिस्सा अलग कर दिया गया है जग के रूप में परिवार-ख के बच्चों के लिए। उसे न मटका-क का परिवार हाथ लगा सकता है न मटका-ख के बड़े-बुजुर्ग। यानी जग में रखा यह पानी बच्चों के लिए आरक्षित है।
  • अच्छा, अब एक आख़िरी सवाल। यह जो जग का पानी है, उसे कितनी साल तक के बच्चे पी सकते हैं? क्या उनकी कोई उम्र निर्धारित की गई है?
इस व्यवस्था में सबसे बड़ी गड़बड़ यही है कि बच्चों की उम्र बहुत ऊँची तय कर दी गई है। बच्चा दो साल का भी हो सकता है और पंद्रह साल का भी। इसलिए डर है कि कहीं इस जग का सारा पानी बड़े बच्चे ही पी लें और छोटे बच्चे प्यासे रह जाएँ। बड़े बच्चे तो पहले भी मटका-ख का पानी पीते थे और वह अब भी उनके लिए सुलभ है। लेकिन जिन बच्चों के लिए अलग से जग की व्यवस्था की गई थी, क्या उन बच्चों को पानी मिलेगा, सबसे बड़ा सवाल यही है।
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नीरेंद्र नागर

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