किसी दल को 90 फ़ीसदी ही वोट क्यों चाहिए? ज़्यादा से ज़्यादा या 100 फ़ीसदी तक क्यों नहीं? यदि यह सवाल आपको भी बेचैन करता है तो कोई बात नहीं, यह सवाल ही कुछ ऐसा है।
एक ओर करतारपुर कॉरिडोर का शिलान्यास तो दूसरी ओर आतंकवाद फैलाने की साज़िश। शिलान्यास से अगर कोई भ्रम पैदा होता हो कि माहौल में सुधार हो रहा है तो यह ख़ुशफ़हमी है।
पाक के सेना प्रमुख बाजवा से गले मिलने के कारण सिद्धू बीजेपी और राष्ट्रवादी चैनलों के लिए खलनायक बने हुए हैं। लेकिन पाक के असली खेल की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं है।
केन्द्र और आरबीआई के बीच काफ़ी समय से बैंक के ख़ज़ाने को लेकर तनातनी चल रही है। सरकार चाहती है कि आरबीआई इसमें से कुछ हिस्सा अपने पास रखे और बाकी पैसा उसे दे दे।
सत्यपाल मलिक केंद्र को इतना नाराज़ भी नहीं करना चाहते थे कि विपक्ष की सरकार बनवा दें। इसलिए उन्होंने बीच का रास्ता चुना कि न इसकी सरकार बने, न उसकी सरकार बने।
संघ परिवार बीजेपी को दोबारा सत्ता में लाने के लिए जनभावनाएँ उभारने की रणनीति पर काम कर रहा है। इस बार उसके निशाने पर कांग्रेस के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट भी है।
हल्दी-चावल के ज़रिए विश्व हिन्दू परिषद हर गाँव तक पहुँचना चाहती है ताकि हिन्दुत्व के नाम पर वैसा ही वातावरण बनाया जाए जैसा 1983 में कलश यात्रा के दौरान हुआ था।
पहले भी सरकारों और रिजर्व बैंक के बीच रिश्ते सामान्य नहीं रहे हैं। सवाल यह है कि क्या गवर्नर को सरकार की जी-हुज़ूरी करनी चाहिए या अपनी राय मजबूती से रखनी चाहिए?