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क्या असम में भारी मतदान लोगों के गुस्से का इज़हार है?

असम विधानसभा चुनाव 2021 पूरा हो गया और अब तमाम लोगों की निगाहें 2 मई की ओर हैं, जब मतगणना होगी और नतीजों का ऐलान किया जाएगा। मंगलवार को हुए अंतिम और तीसरे चरण के लिए हुए मतदान में 82 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था।

इसके पहले यानी दूसरे चरण में भी लगभग 77 प्रतिशत मतदान हुआ था। पहले चरण में लगभग 70 प्रतिशत मतदान हुआ था। यानी कुल मिला कर 79 प्रतिशत से ज़्यादा मतदान हुआ।

क्या यह व्यवस्था- विरोधी वोट है यानी कि अधिक मतदान इसलिए हुआ कि लोगों में मौजूदा सरकार के प्रति गुस्सा है? अभी कुछ भी कहना मुश्किल है, लेकिन भारी मतदान और चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों के आधार पर एक मोटा अनुमान लगाया जा सकता है। 

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एबीपी-सी वोटर चुनाव पूर्व सर्वे

एबीपी-सी वोटर चुनाव पूर्व सर्वे पर भरोसा किया जाए तो असम में बीजेपी को 65 से 73 सीटें मिल सकती हैं। इस ओपिनियन पोल के मुताबिक़, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस व उसके सहयोगियों को 52 से 60 सीटों पर जीत हासिल हो सकती है। अन्य दलों के खाते में शून्य से चार सीटें जा सकती हैं। 

इस चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण के अनुसार, असम विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 45 फ़ीसदी वोट हासिल हो सकता है। दूसरी ओर, कांग्रेस को 41 प्रतिशत और अन्य को प्रतिशत वोट मिल सकते हैं। 

टाइम्स नाउ-सी वोटर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण

टाइम्स नाउ-सी वोटर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में यह पाया गया है कि एनडी को 67 सीटें मिल सकती हैं जबकि यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस यानी यूपीए को 57 सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है। इस तरह वहाँ यूपीए की सीटें पहले से कम होने के बावजूद उसकी सरकर बनने के आसार हैं। 

चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण में पाया गया है कि समान नागरिकता क़ानून और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स के ख़िलाफ़ चले ज़ोरदार आन्दोलनों के बावजूद बीजेपी अगुआई वाला यह गठबंधन किसी तरह बहुमत हासिल कर लेगा, लेकिन उसे सीटें कम मिलेंगी, उसका वोट शेयर भी कम हो जाएगा। 

असम की 126 सीटों वाली विधानसभा में पिछले चुनाव में एनडीए को जहाँ 74 सीटें मिली थीं, इस बार वह घट कर 67 पर सिमट सकती है। दूसरी ओर यूपीए की सीटें पिछली बार की 39 से बढ़ कर इस बार 57 तक पहुँच सकती हैं। अन्य दलों को दो सीटें हासिल हो सकती हैं। 

assam assembly election 2021 : brisk voting indicates anger against BJP? - Satya Hindi

क्या है चुनावी समीकरण?

असम की 126 सीटों वाली विधानसभा में पिछले चुनाव में एनडीए को जहाँ 74 सीटें मिली थीं, इस बार वह घट कर 67 पर सिमट सकती है। दूसरी ओर यूपीए की सीटें पिछली बार की 39 से बढ़ कर इस बार 57 तक पहुँच सकती हैं। अन्य दलों को दो सीटें हासिल हो सकती हैं। 

बता दें कि असम में पहले चरण के तहत 47 विधानसभा सीटों पर 27 मार्च को मतदान हुए। इसके बाद दूसरे चरण के तहत 39 विधानसभा सीटों पर 1 अप्रैल को वोट पड़े। तीसरे व अंतिम चरण के तहत 40 विधानसभा सीटों पर 6 अप्रैल को मतदान हुआ। 

असम में पहले चरण में जिन 47 सीटों के लिए मतदान हुआ, पिछली बार उनमें से बीजेपी ने 27 पर जीत हासिल की थी। असम गण परिषद (एजीपी)  को 8, कांग्रेस को 9 और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ़) को सिर्फ दो सीटें मिली थीं। 

दो महीने पहले तक लग रहा था कि बीजेपी इस चुनाव को बड़े आराम से निकाल लेगी, मगर स्थितियाँ बदली हैं। एक तो महागठबंधन की वज़ह से उसे गंभीर दावेदार के रूप में देखा जाने लगा और दूसरा ऊपरी असम में काँग्रेस ने डटकर काम किया है।

ऊपरी असम का मामला

काँग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए ज़रूरी है कि पहले दौर के मतदान में वे अच्छा प्रदर्शन करें। बीजेपी अगर इस इलाक़े में 15 के आसपास सीटें गँवाती है तो उसके लिए दिसपुर दूर हो जाएगा, क्योंकि महागठबंधन की वज़ह से बराक घाटी और निचले असम में उसका नुक़सान होना तय है। ऊपरी असम के नुक़सान की भरपाई निचले असम से होने की संभावना नहीं है। 

दूसरी ओर, असम के बाक़ी क्षेत्रों में काँग्रेस के महागठबंधन का प्रदर्शन अच्छा रहेगा, यह सब मानते हैं, मगर उनके भरोसे वह सरकार बनाने की उम्मीद नहीं कर सकती। उसे कम से कम 15 सीटें ऊपरी असम से जीतना ही होंगी, मगर क्या वह ऐसा कर पाएगी? लाख टके का सवाल यही है।

पिछले चुनाव में ऊपरी असम की 42 में से 36 सीटों पर बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने बाज़ी मारी थी और काँग्रेस के हाथ केवल छह सीटें आई थीं।

कांग्रेस का प्रदर्शन

काँग्रेस की हार का कारण ही ऊपरी असम में ख़राब प्रदर्शन रहा था। सत्ता विरोधी लहर में उसका सूपड़ा साफ़ हो गया था। हालाँकि अब 2016 वाली स्थिति नहीं है। 

असम में कांग्रेस का आधार काफी मजबूत रहा है। तरूण गोगोई की क़यादत में वहां वह लगातार 15 साल तक सरकार चला चुकी है। लेकिन 2016 के विधानसभा चुनाव में उसकी करारी हार हुई थी।

कांग्रेस ने इस बार असम में मजबूत गठबंधन बनाया है। उसके साथ बदरूद्दीन अजमल की ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ़) सहित वाम दलों सीपीआई, सीपीआई (एम), सीपीआई (एमएल), बीपीएफ़ और आंचलिक गण मोर्चा का भी साथ है।

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बदरुद्दीन अजमल, प्रमुख, एआईयूडीएफ़

चाय होगी कड़वी?

इस गठबंधन को अंतिम रूप देने में भी बघेल की भूमिका होने की बात कही जाती है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और एआईयूडीएफ़ के साथ लड़ने के कारण बीजेपी को फायदा हुआ था। लेकिन इस बार इन दोनों ने ऐसी भूल नहीं की है। 

कांग्रेस को उम्मीद है कि सीएए के ख़िलाफ़ हुए आंदोलनों, चाय बागानों के वर्कर्स की नाराज़गी, बेरोज़गारी, महंगाई के मुद्दों के कारण उसे असम में मदद मिलेगी। इसके अलावा एआईयूडीएफ़ और बीपीएफ़ जैसे अहम दलों के साथ आने के कारण भी कांग्रेस सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही है।

यदि भारी मतदान को लोगों के निश्चित और साफ़ जनादेश का संकेत माना जाए तो यह कहा जा सकता है कि कम से कम त्रिशंकु विधानसभा नहीं होगी या सीटों का अंतर बहुत बारीक नहीं होगा।

यानी जनता बीजेपी अगुआई वाले गठबंधन या कांग्रेस की अगुआई वाले गठबंधन में से किसी एक को साफ बहुमत देना पसंद करेगी। 

बराक घाटी, निचले असम और बोडोलैंड में मतदान ऊपरी असम से ज़्यादा हुआ है। यदि इसे कोई संकेत माना जाए तो यह कहा जा सकता है कि लोग सरकार के ख़िलाफ़ वोट देने निकले थे। लेकिन इस पर भी पूरे भरोसे से कुछ कहना या निष्कर्ष निकालना जोखिम भरा है। इसलिए इंतजार तो 2 मई का ही करना होगा। 

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क़मर वहीद नक़वी

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