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कांग्रेस ने आख़िर क्यों तोड़ दिया अजमल के साथ गठबंधन?

कई राज्यों में सियासी मुश्किलों से दो-चार हो रही कांग्रेस ने एलान किया है कि असम में वह ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ़) के साथ ‘महाजोत’ यानी महागठबंधन में नहीं रहेगी। ‘महाजोत’ में एआईयूडीएफ़ ही कांग्रेस का सबसे बड़ा सहयोगी दल था। ऐसे में आख़िर क्या वजह रही कि कांग्रेस ने उसका साथ छोड़ने का फ़ैसला किया। 

गुवाहाटी में असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी की चार घंटे तक चली बैठक में यह फ़ैसला लिया गया। यानी कि इस फ़ैसले पर मंथन ख़ूब हुआ। इसके अलावा एक दूसरे सहयोगी दल बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ़) के साथ गठबंधन रखा जाए या नहीं, इस बारे में फ़ैसला हाईकमान पर छोड़ दिया गया। 

साथ छोड़ने के पीछे वजह कांग्रेस ने ये बताई है कि एआईयूडीएफ़ के नेता लगातार बीजेपी की तारीफ़ कर रहे थे। 

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पीछा छुड़ाना चाहती थी कांग्रेस?

कांग्रेस ने जो वजह बताई है, वह आसानी से गले नहीं उतरती। क्या कांग्रेस ने यह बात बहाने के तौर पर कही है। क्या वह एआईयूडीएफ़ से वास्तव में अपना पीछा छुड़ाना चाहती थी। अगर चाहती थी तो आख़िर क्यों, क्योंकि कुछ महीने पहले हुए चुनाव में दोनों ने पूरे दम-ख़म के साथ चुनाव लड़ा था। कांग्रेस के इस फ़ैसले को समझने से पहले असम की राजनीति की कुछ अहम बातों को समझना होगा। 

मुसलिम आबादी सबसे ज़्यादा 

असम में 30 से 34 फ़ीसदी आबादी मुसलमानों की है और इनमें मूल असमिया और बांग्लादेश से आए मुसलमान शामिल हैं। मुसलिम वोटों का बहुत बड़ा हिस्सा असम में एआईयूडीएफ़ के मुखिया बदरूद्दीन अजमल को मिलता रहा है। 2005 में बनी एआईयूडीएफ़ ने बहुत तेजी से राज्य में अपना आधार मजबूत किया है। 

यहां इस बात का भी जिक्र करना होगा कि एआईयूडीएफ़ के साथ गठबंधन किया जाए या नहीं, इसे लेकर कांग्रेस संकोच कर रही थी। कई नेताओं का कहना था कि एआईयूडीएफ़ के साथ गठबंधन करने से कांग्रेस को नुक़सान होगा।

गठबंधन को लेकर संकोच 

गठबंधन को लेकर संकोच करने के पीछे वजह यह थी कि बीजेपी लगातार एआईयूडीएफ़ को सांप्रदायिक दल के रूप में प्रचारित करती रही है। ख़ुद मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा अजमल को जिन्ना बता चुके हैं। कांग्रेस को इस बात का डर था कि एआईयूडीएफ़ के साथ गठबंधन करने से उसे हिंदू वोटों का नुक़सान हो सकता है। हालांकि अंत में कांग्रेस ने एआईयूडीएफ़ के साथ गठबंधन कर ही लिया था। 

‘लक्ष्मण रेखा’ वाला बयान 

संकोच की वजह से ही असम में कांग्रेस की प्रचार कमेटी के अध्यक्ष और सांसद प्रद्युत बोरदोलोई ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि अगर एआईयूडीएफ़ भविष्य में किसी तरह का सांप्रदायिक रूख़ अख़्तियार करती है तो हम उसके साथ नहीं रहेंगे और इसलिए हमने ‘लक्ष्मण रेखा’ खींच दी है। 

Assam Cong AIUDF split ties  - Satya Hindi

सीएए आंदोलन का मुद्दा 

असम की राजनीति में बीते कुछ सालों में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) एक बड़ा मुद्दा रहा है। इस आंदोलन का सबसे ज़्यादा ज़ोर ऊपरी असम में ही था। ऊपरी असम हिंदू बहुल इलाक़ा है और कांग्रेस को एआईयूडीएफ़ के साथ गठबंधन करने से यहां की 45 सीटों पर नुक़सान हो रहा था। 

इसके अलावा बीजेपी कांग्रेस पर इस बात के लिए हमलावर थी कि असम में अजमल के अलावा, उसने पश्चिम बंगाल में इंडियन सेक्युलर फ्रंट के साथ गठबंधन किया है। बीजेपी की कोशिश कांग्रेस को मुसलिम राजनीति करने वाले इन दलों का हितैषी दिखाकर हिंदू मतदाताओं के बीच में उसकी छवि ख़राब करने की थी। यह बात कांग्रेस को भी पता थी।

चुनाव में मिली हार 

इस सबके अलावा बड़ी बात यह थी कि कांग्रेस को उम्मीद थी कि एआईयूडीएफ़ के साथ गठबंधन कर वह असम की सत्ता में आ जाएगी लेकिन ये भी नहीं हो सका। चुनाव नतीजों में ‘महाजोत’ केवल 50 सीटों पर ही जीत हासिल कर सका। इसमें से कांग्रेस को 29, एआईयूडीएफ़ को 16, बीपीएफ़ को चार और सीपीआई(एम) को एक सीट पर जीत मिली। 

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पांच सीटों पर उपचुनाव 

एआईयूडीएफ़ के साथ गठबंधन टूटने के अलावा बीते कुछ दिनों में असम में कांग्रेस के दो विधायकों ने पार्टी को अलविदा कहा है। इसके अलावा सुष्मिता देव के रूप में एक बड़ा चेहरा उसे छोड़कर चला गया है। आने वाले वक़्त में असम में पांच सीटों पर उपचुनाव होने हैं। ऐसे में 'महाजोत' से एक बड़े दल के निकल जाने के क्या नतीजे होंगे, असम कांग्रेस ने इस बारे में ज़रूर विचार किया होगा। उपचुनाव वाली सीटों पर जीत हासिल करना भी कांग्रेस के लिए अब एक बड़ी चुनौती है। 

कांग्रेस के इस फ़ैसले पर एआईयूडीएफ़ का कहना है कि यह फ़ैसला बेहद अपरिपक्व है और इससे बीजेपी को ही फ़ायदा होगा। एआईयूडीएफ़ की यह बात सही भी है क्योंकि इससे बीजेपी विरोधी वोटों का बंटवारा बढ़ जाएगा जिसे ‘महाजोत’ रोक सकता था। 

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पवन उप्रेती

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