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असम: सीएए के विरोध के चलते कांग्रेस को होगा नुकसान?

सीएए को संसद में पारित किए जाने पर पिछले साल असम में तगड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था। लोगों को डर है कि यह असम समझौते को कमजोर कर सकता है और बांग्लादेशी हिंदुओं की नई आमद हो सकती है। बीजेपी ने सीएए के पारित होने को एक उपलब्धि कहा है। लेकिन बराक घाटी में पार्टी बांग्लादेश से आये लोगों की पहचान कर उन्हें बाहर भेजने के मुद्दे पर वह फँसी दिखती है। 
दिनकर कुमार

असम की बराक घाटी में आबादी का 80% से अधिक हिस्सा बंगालियों का है, जो बांग्लादेश से होने वाले प्रवजन यानी माइग्रेशन के इतिहास से जुड़े हुए हैं। इसकी जनसांख्यिकी को देखते हुए असम विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस 1985 के असम समझौते और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को लागू करने के अपने रुख से जूझ रहे हैं।

भौगोलिक रूप से असम दो अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित है - बराक घाटी और ब्रह्मपुत्र घाटी। बराक घाटी में तीन जिले शामिल हैं - कछार, करीमगंज और हैलाकांदी - मुख्य रूप से बंगाली भाषी आबादी के साथ, जहां हिंदुओं और मुसलिमों की तादाद लगभग बराबर है। इसमें चाय बागानों के श्रमिकों की एक छोटी संख्या और जनजातियों का एक छोटा समूह भी है। 

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इसके विपरीत ब्रह्मपुत्र घाटी जातीय रूप से अधिक विविध है और असमिया बोलने वालों और विभिन्न प्रकार के अन्य जातीय समुदायों का घर है। इसके अलावा ब्रह्मपुत्र घाटी में निचले असम का एक बड़ा हिस्सा बंगाली भाषी मुसलमानों का घर है।

बराक घाटी में दो लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र (सिलचर और करीमगंज) और 15 विधानसभा सीटें हैं - कछार में सात, हैलाकांदी में तीन और करीमगंज में पांच सीटे हैं।

बीजेपी ने पहली बार नब्बे के दशक में असम के दूसरे हिस्सों में पहुंचने से पहले ही बराक घाटी में हिंदू बंगाली समुदाय के बीच अपने बड़े जनाधार के कारण प्रवेश किया था। बराक के अन्य मतदाता आमतौर पर एआईयूडीएफ या कांग्रेस का समर्थन करते रहे हैं।

वर्तमान में इसकी दोनों लोकसभा सीटें बीजेपी के पास हैं। बीजेपी ने 2016 के चुनावों में 15 विधानसभा सीटों में से आठ सीटों पर जीत हासिल की, जबकि एआईयूडीएफ ने चार और कांग्रेस ने तीन सीटों पर जीत हासिल की।

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असम समझौते में 25 मार्च 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले सभी शरणार्थियों और प्रवासियों के निर्वासन का प्रावधान किया गया था। दूसरी तरफ बीजेपी सरकार जो नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लेकर आई है उसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुसलिमों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है और इसके लिए 31 दिसंबर, 2014 तक की समय सीमा का उल्लेख किया गया है। 
सीएए को संसद में पारित किए जाने पर पिछले साल असम में तगड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था। लोगों को डर है कि यह असम समझौते को कमजोर कर सकता है और बांग्लादेशी हिंदुओं की नई आमद हो सकती है।

धारा 6 का मुद्दा 

बीजेपी ने सीएए के पारित होने को एक उपलब्धि कहा है। लेकिन बराक घाटी में पार्टी बांग्लादेश से आये लोगों की पहचान कर उन्हें बाहर भेजने के मुद्दे पर फँसी दिखती है। असम समझौते की धारा 6 को लागू न कर पाने का मसला गरम है। 

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ये धारा असमिया लोगों के लिए नौकरियों में कई सुरक्षा उपायों की वकालत करती है। बीजेपी ने कहा है कि वह धारा 6 को लागू करने के लिये पूरी तरह से वचनबद्ध है। 
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बराक घाटी में कांग्रेस, जो 126 सदस्यीय असम विधानसभा में 15 विधायकों को भेजती है, को सीएए पर अपने रुख को लेकर नुकसान हो सकता है। पार्टी ने गारंटी दी है कि अगर वह सत्ता में लौटती है तो असम में सीएए कानून लागू नहीं होगा। बराक घाटी में कई बंगाली सीएए का समर्थन करते हैं क्योंकि यह बांग्लादेशी हिंदुओं के लिए नागरिकता सुनिश्चित करेगा।

सिलचर से संसद सदस्य रही कांग्रेस नेता सुष्मिता देव ने बराक घाटी में कहा, “मैंने विभाजन के पीड़ितों का संघर्ष देखा है। हम जानते हैं कि प्रवासी होने का क्या मतलब है। मैं इस तरह के कानून के पक्ष में हूं, लेकिन यह अधिनियम [सीएए] किसी को भी नागरिकता देने में सक्षम नहीं है। मैं कुछ संशोधनों के साथ इसका समर्थन करूंगी, खासकर अगर इसमें मुसलिम शामिल होते हैं।”

कांग्रेस के असम प्रभारी जितेंद्र सिंह ने पिछले हफ्ते सिलचर का दौरा करते हुए कहा, "इस अधिनियम पर हमारा रुख दोनों [असम] घाटियों में समान है। जैसा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी पहले ही घोषणा कर चुके हैं, अगर हम सत्ता में आए तो हम असम में सीएए लागू नहीं करेंगे।"

राजदीप रॉय, जो सिलचर से बीजेपी के सांसद हैं, ने कहा कि कांग्रेस को भारतीय कानूनों के बारे में थोड़ा और सीखना चाहिए। "नागरिकता एक केंद्रीय मुद्दा है और राज्य सरकार एक कानून को निरस्त नहीं कर सकती है।"

असम समझौते की धारा 6 के कार्यान्वयन के लिए गठित एक उच्च-स्तरीय समिति ने बराक घाटी के किसी भी प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया और इस बात की बहुत आलोचना हुई। इसकी सिफारिशों को अभी तक लागू नहीं किया गया है और न ही स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण के रूप में सुरक्षा उपाय किए गए हैं। इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि बंगाली समुदाय को एक स्थानीय समूह माना जाएगा या नहीं।

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