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ज़बरदस्त बाढ़ की चपेट में असम, 26 लाख प्रभावित, 89 की मौत

असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एएसडीएमए) के अनुसार बाढ़ से 26 ज़िलों के 75 राजस्व सर्कल के 2,525 गांवों में 26,31,343 लोग प्रभावित हुए। इसके अलावा  1,15,515 हेक्टेयर कृषि भूमि जलमग्न हुई है।
दिनकर कुमार
असम के कई हिस्सों में लगातार बारिश के बाद बाढ़ की स्थिति और बिगड़ गई है। बाढ़ से 26 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं, जबकि राज्य में 89 से अधिक लोगों की मौत हो गई है। बरपेटा और मोरीगाँव ज़िलों से एक-एक व्यक्ति की मौत की सूचना मिली है। पिछले 24 घंटों में बाढ़ से कोकराझार और गोलाघाट ज़िलों में दो व्यक्तियों के लापता होने की भी ख़बर है।

बाढ़ की स्थिति और गंभीर होने की संभावना है क्योंकि क्षेत्रीय मौसम विभाग ने असम के अलग-अलग स्थानों पर भारी वर्षा की भविष्यवाणी की है।

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बाढ़ का कहर

असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एएसडीएमए) के अनुसार बाढ़ से 26 ज़िलों के 75 राजस्व सर्कल के 2,525 गांवों में 26,31,343 लोग प्रभावित हुए। इसके अलावा 1,15,515 हेक्टेयर कृषि भूमि जलमग्न हुई है। 

ये बाढ़- प्रभावित ज़िले हैं, धेमाजी, लखीमपुर, बिश्वनाथ, दरंग, बाक्सा, नलबाड़ी, बरपेटा, चिरांग, बोंगाईगांव, कोकराझार, धुबरी, दक्षिण सालमारा, गोवालपारा, कामरूप, कामरूप (मेट्रो), मोरीगाँव, नगाँव, होजाई, गोलाघाट, जोरहाट, माजुली, शिवसागर, डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, पश्चिम कार्बी आंगलोंग और कछार।

बाढ़ ने लखीमपुर, बिश्वनाथ, नगाँव, जोरहाट, बोंगाईगांव, मोरीगांव, करीमगंज और पश्चिम कार्बी आंगलोंग में कई तटबंधों को क्षतिग्रस्त कर दिया है। लखीमपुर, चिराँग, नगाँव, जोरहाट और उदालगुरी ज़िलों में सड़कें टूट गई हैं।
बिश्वनाथ, माजुली, बाक्सा, उदालगुरी और कोकराझार ज़िलों से भी बाढ़ के कारण भू-कटाव की घटनाएँ हुई हैं।

काजीरंगा में तबाही

बाढ़ ने काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के 126 वन शिविरों को प्रभावित किया है, जबकि ओरंग नेशनल पार्क और पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य में भी कई वन शिविर बुरी तरह से प्रभावित हैं। काजीरंगा में बाढ़ से अब तक 120 वन्य जीव मारे जा चुके हैं।

इस बीच, एएसडीएमए के राज्य परियोजना समन्वयक पंकज चक्रवर्ती ने कहा कि उनका विभाग असम के बाढ़ राहत शिविरों में कोविड-19 के सभी मानदंडों को लागू करने के लिए बाध्य है। राज्य भर में 391 राहत शिविरों में कुल 45,281 लोग शरण ले रहे हैं।

बाढ़ में कोरोना

‘कुछ जगहों पर मानदंडों को लागू करने में कुछ कठिनाई हो सकती है। लेकिन हम आवश्यकता पड़ने पर बल प्रयोग करके भी इसे लागू करने का प्रयास कर रहे हैं। इस बार हमने प्रति शिविर लोगों की संख्या कम करने के लिए राहत शिविरों की संख्या भी बढ़ाई है,’ चक्रवर्ती ने कहा।
उन्होंने कहा कि प्रत्येक राहत शिविर में नियमित रूप से चिकित्सा टीमों का दौरा जारी है, लेकिन बाढ़ राहत शिविरों में प्रत्येक क़ैदी के लिए कोविड-19 परीक्षण करना संभव नहीं है। उन्होंने कहा,

‘सौभाग्य से आज तक असम के किसी भी बाढ़ राहत शिविर में कोई भी कोरोना पॉज़िटिव मामला सामने नहीं आया है।’


पंकज चक्रवर्ती,राज्य परियोजना समन्वयक, एएसडीएमए

मनुष्य ज़िम्मेदार?

असम ऐतिहासिक रूप से बाढ़-ग्रस्त रहा है, लेकिन प्राकृतिक और मानव निर्मित कारकों ने आज़ादी के बाद  स्थिति को और गंभीर बना दिया है।
1950 के कुख्यात भूकंप ने ब्रह्मपुत्र को और अधिक अस्थिर बनाने और उसके मार्ग को अधिक से अधिक मिट्टी के कटाव की ओर अग्रसर करते हुए दशकों में बदतर बाढ़ के लिए मंच तैयार कर दिया।
विशेषज्ञों का कहना है कि भूकंप ने क्षेत्र की स्थल आकृति को बदल दिया और ब्रह्मपुत्र घाटी को जल प्रलय के लिए अतिसंवेदनशील बना दिया।

असम में सूखा!

वर्षों से लगातार राज्य की विभिन्न पार्टियों की सरकारों ने नदियों पर सैकड़ों तटबंध बनाए हैं, लेकिन इनमें से कई संरचनाएं काफी कमजोर हो गई हैं। विडंबना यह है कि इतनी अधिक बाढ़ को देखने वाले राज्य असम ने हाल के वर्षों में सूखा भी देखा है। कुछ पर्यावरणविद् इन अप्रत्याशित पैटर्नों को जलवायु परिवर्तन से जोड़ते हैं।

असमिया समाज राज्य में नदी जल की प्रचुरता का जश्न मनाता है। विभिन्न लोक गीत ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के लिए समर्पित हैं। परंपरागत रूप से बाढ़ को पहले असम के समाज में एक ख़तरे के रूप में नहीं देखा गया था।

असम संस्कृति में नदी

लेकिन 1950 के दशक से शुरू हुए तटबंधों के निर्माण के जरिये त्वरित-समाधान का उपाय संतोषजनक नहीं रहा। वास्तव में अध्ययनों से पता चला है कि ये तटबंध ब्रह्मपुत्र के प्राकृतिक प्रवाह में ख़लल डालते हैं और अक्सर पानी के बहाव के कारण ये टूट जाते हैं।

गुवाहाटी जैसे शहरों में अनियोजित विकास और बड़े पैमाने पर निर्माण के चलते समस्या पैदा हो रही है। असम सरकार द्वारा प्रकाशित 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार ब्रह्मपुत्र द्वारा लगातार क्षरण के कारण 1954 से अब तक 3,800 वर्ग किलोमीटर से अधिक कृषि भूमि नष्ट हो चुकी है।
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