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शर्मिंदा हूँ ताविषी जी! हम आपको बचा नहीं पाए

शर्मिंदा हूँ ताविषी जी! हम आपको बचा नहीं पाए। आपको समय पर इलाज नहीं दिला पाए। 40 बरस तक जिस लखनऊ में मुख्यधारा की पत्रकारिता आपने की, उससे इस व्यवहार की आप हक़दार नहीं थी। ताविषी जी! आपको हमसे कोरोना ने नहीं, सिस्टम ने छीना है। यह टूट चुका सिस्टम आपको समय से अस्पताल का एक बेड नहीं दिलवा पाया। और आप चली गईं। 

ताविषी जी मेरी मित्र और लखनऊ की वरिष्ठतम पत्रकारो में एक थीं। 40 बरस से पायनियर में कार्यरत थीं। हेमवती नंदन बहुगुणा से लेकर मुलायम सिंह यादव तक उन्हें नाम से जानते थे। अपनी बनाई लीक पर सीधे चलती थीं। न उधो का लेना न माधो को देना। पत्रकारीय गुट और पंचायतों से अलग, सीधी सरल और विनम्र। पत्रकारिता उनके लिए जीवनयापन नहीं, पैशन था। उन ताविषी के साथ व्यवस्था का यह व्यवहार बताता है कि लखनऊ में आम आदमी के हालात क्या होंगे।

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टूटती सांस, टूटता सिस्टम

ताविषी चार रोज़ से बीमार थीं। कल से उनकी साँस टूट रही थी। ऑक्सीजन लेवल 80 के नीचे था। वह छटपटा रही थीं। उनकी नज़दीकी मित्र सुनीता ऐरन और अमिता वर्मा ने इलाज के लिए हर किसी से कहा। पर कहीं कोई सुनवाई नहीं। कोई मदद नहीं मिली। कल दोपहर बाद मुझे अमिता वर्मा जी का संदेश मिलता है। ताविषी जी की हालत ख़राब है। घर पर जूझ रही हैं। उन्हें किसी अस्पताल में भर्ती कराएँ। मैं संदेश पढ ही रहा था की पत्रकार मित्र विजय शर्मा का फ़ोन आया। उनका ऑक्सीजन लेवल 70 के नीचे जा रहा है। घर पर जो ऑक्सीजन सिलेंडर है वह भी ख़त्म होने को है। 

lucknow journalist Tavishi dies of corona - Satya Hindi

मैं इंतज़ाम के लिए फ़ोन पर लग गया। एक एक कर सरकार के दरवाज़े खटखटाता रहा। कहीं से कोई उम्मीद नहीं। जिससे कहूँ, वही अपनी लाचारी बताता। फिर लखनऊ के ही विधायक और मंत्री बृजेश पाठक से बात की। बृजेश जी ने आधे घंटे में केजीएमयू के डॉ पुरी से बात कर आईसीयू बेड का इन्तजाम कर दिया। अब समस्या एंबुलेंस की थी। फिर बृजेश जी के दरवाज़े, फिर वहीं से इन्तजाम। 

तब तक चार बज गए थे।

मेरे मोबाइल पर ताविषी जी का फ़ोन। मैंने घबड़ाते हुए उठाया। मुझे बचा लीजिए। जल्दी कहीं भर्ती कराइए। साँस लेते नहीं बन रही है। टूट टूट कर हाँफती आवाज़।

दाखिला मिला, लेकिन...

मैंने कहा, हिम्मत रखिए। एबुलेन्स पहुँच रहा है। सब इन्तजाम हो गया है। आप ठीक हो जाएंगी। तब तक उनका ऑक्सीजन लेवल 70 के नीचे जा चुका था। और उनकी आवाज़ मेरे कानों में गूंज रही थी।... बचा लीजिए। ...

आधे घंटे में बृजेश जी का संदेश आया।

केजीएमयू में दाख़िला हो गया है। आईसीयू में है। डॉक्टर चार घंटे तक जूझते रहे, पर उन्हें बचाया नहीं जा सका। 10 बजे खबर आई, वह नहीं रहीं। मेरे कानों में रात भर उनकी आवाज़ गूंज रही है, मुझे बचा लीजिए। अपराध बोध से ग्रसित हूँ, मैं उन्हे नहीं बचा सका।

लोग आपको 'मिस' करेंगे

हमेशा हंसती रहने और कभी किसी बात का बुरा न मानने वाली ताविषी के साथ न जाने कितनी यात्राएँ कीं! कितने पत्रकारीय अभियान छेड़े! आज भी जब लखनऊ जाता, सबसे पहले मिलने आतीं।

उनका कोई शत्रु नहीं था। उनकी मृत्यु हमारे लिए व्यक्तिगत क्षति है। बार बार उनका हँसता चेहरा, उनकी उम्र के साथ पुरानी होती फिएट कार और रेमिगंटन का टाईपराईटर जिस पर उनकी गति देखते बनती थी, याद आ रहे हैं। जब भी लखनऊ में मित्रों के साथ बैठकी होगी आप बहुत याद आएगी ताविषी जी।

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क़मर वहीद नक़वी

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