दो महीने की लंबी लड़ाई के बाद असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सोमवार को 84 वर्ष की आयु में गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (जीएमसीएच) में अंतिम सांस ली। गोगोई के निधन के साथ ही एक युग समाप्त हो गया है। असम के लोगों ने अपने अभिभावक को खो दिया है।
असमिया के लोकप्रिय कवि प्रणव कुमार बर्मन ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिये गोगोई को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा है कि जिस समय गोगोई पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, उस समय असम अशांत था और पुलिस ने उन्हें पकड़कर उन पर देशद्रोह का मामला दर्ज कर दिया था। उस समय इन्दिरा गोस्वामी ने तरुण गोगोई को फोन कर कहा- तरुण, यह क्या हो रहा है, तुम्हारी पुलिस एक कवि को सता रही है। गोगोई ने तुरंत बर्मन की रिहाई का आदेश देते हुए कहा था कि कवि चाहे कोई भी गुनाह करे,उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
गोगोई ने उस असम को आगे बढ़ाया, जो कई चुनौतियों का सामना कर रहा था और कठिन समय से गुजरते हुए जटिलताओं से ग्रस्त था। जब गोगोई पहली बार मुख्यमंत्री बने तब उग्रवाद और हत्याओं के कारण विकास बुरी तरह प्रभावित हुआ था और राज्य के कर्मचारी लंबित वेतन के लिए आंदोलनरत थे।
गोगोई ने स्थिर शासन प्रदान किया, कर राजस्व बढ़ाया, कृषि और आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया। कई चरमपंथी संगठनों को बातचीत की मेज पर लाए और राज्य में अमन का माहौल तैयार किया।
गोगोई ने युवाओं की मानसिकता को सकारात्मक रूप से बदलने की दिशा में काम किया। उन्होंने रोजगार के अवसर पैदा करने और लाखों सरकारी रिक्तियों को भरने की पहल की। गोगोई की डॉक्टर निज़रा देवी का कहना है, "तरुण गोगोई जमीन से जुड़े व्यक्ति थे और जानते थे कि आम लोगों से कैसे जुड़ना है। गोगोई हर श्रेणी के लोगों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना जानते थे।”
गोगोई का जन्म 1 अप्रैल, 1934 को असम के जोरहाट जिले के रंगाजान टी एस्टेट में एक आहोम परिवार में हुआ था।
छह बार सांसद रहे
तरुण गोगोई ने लोकसभा के सांसद के रूप में छह कार्यकाल पूरे किए। उन्होंने पहली बार 1971-85 में जोरहाट सीट का प्रतिनिधित्व किया। 1976 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के संयुक्त सचिव चुने जाने के बाद गोगोई राष्ट्रीय कद के साथ नेता बन गए। बाद में उन्होंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (1985-90) के महासचिव के रूप में भी कार्य किया।
गोगोई ने पी. वी. नरसिम्हा राव के केंद्रीय मंत्रिमंडल में खाद्य और प्रसंस्करण उद्योग विभाग में केंद्रीय राज्य मंत्री (1991-96) के रूप में कार्य किया और वह चार बार विधायक भी चुने गए। उन्होंने 1996-98 में पहली बार मार्घेरिटा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और 2001 से तीताबर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे।
गोगोई 2001 में असम के मुख्यमंत्री चुने गए थे। उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में राज्य में लगातार कई बार चुनावी जीत हासिल करते हुए पार्टी का नेतृत्व किया।
तीन दिन का शोक
असम में तीन दिन के शोक की घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने गोगोई के मार्गदर्शन को याद करते हुए कहा कि उन्हें लगता है कि उन्होंने अपने पिता को खो दिया है। सोनोवाल ने अपने सारे कार्यक्रम रद्द कर दिये थे और डिब्रूगढ़ से वापस लौटकर गोगोई से मिलने अस्पताल पहुंचे थे। यह असमिया संस्कृति की खूबसूरती ही है कि राजनीतिक विरोध के बावजूद दो पीढ़ियों के नेताओं के बीच अपनेपन का रिश्ता नजर आता है।
नेहरू-गांधी परिवार के वफादार नेता गोगोई ने असम के विकास की योजना के लिए अपने राजनीतिक अनुभव का इस्तेमाल किया। मुख्यमंत्री के रूप में उनके पंद्रह वर्षों में से दस वर्ष केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के साथ गुजरे थे।
कांग्रेस को मजबूत किया
गोगोई ने लोगों की नब्ज समझी और उसी के अनुसार फैसले लिए। वह चाहते थे कि कांग्रेस राज्य में प्रमुख राजनीतिक ताकत बनी रहे और अन्य समुदाय-आधारित समूहों पर निर्भर नहीं रहे।
गोगोई के अंतिम कार्यकाल में असंतोष देखा गया और हिमंता बिस्वा शर्मा ने बीजेपी में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ दी। गोगोई को बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन के हाथों 2016 के चुनावों में हार मिली।
तीन बार असम के मुख्यमंत्री पद पर रहने वाले तरुण गोगोई पेशे से वकील थे। वह 1960 के दशक के उत्तरार्ध में असम बार काउंसिल के सदस्य थे, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गोगोई में एक राजनेता को देखा और उन्हें 1971 के चुनाव के लिए लोकसभा का टिकट दिया।
सीएए का विरोध
वह 1983 तक लगातार अदालतों के सामने पेश होते रहे, लेकिन फिर अदालतों में बहस करना बंद कर दिया। 36 साल बाद तरुण गोगोई ने दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के विरोध प्रदर्शनों के दौरान वकील वाला काला लिबास धारण किया। गोगोई पी. चिदंबरम की सहायता करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अदालत में गए, जो सीएए के खिलाफ याचिका दायर करने वाले प्रमुख वकील थे।
हालांकि सीएए और प्रस्तावित नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनसीआर) के विचार की असम आंदोलन में उत्पत्ति हुई थी और वह उसी के असम संस्करण के समर्थक थे लेकिन वह नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए सीएए और इसके द्वारा प्रस्तावित एनसीआर के खिलाफ थे।
तरुण गोगोई ने इन्हें भेदभावपूर्ण पाया और असम संस्करण के साथ दोनों की तुलना करने के किसी भी सुझाव को खारिज कर दिया।
गोगोई को सीएए को वापस लेने और एक राष्ट्रव्यापी एनआरसी की योजना को हटाने के लिए सक्रिय रूप से आवाज उठाते देखा गया था। असम के संदर्भ में तरुण गोगोई को कट-ऑफ तारीख पर आपत्ति थी। सीएए 2014 के अंत में कट-ऑफ तारीख रखता है। असम में नागरिकता के लिए कट-ऑफ तारीख 1971 है।
एनआरसी का असम संस्करण 1985 के असम समझौते पर आधारित है, जिसके लिए तरुण गोगोई ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ मिलकर प्रदर्शनकारियों के साथ एक समझौते पर पहुंचने का काम किया था।
सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान अपने साक्षात्कारों में, तरुण गोगोई ने असम एनआरसी को अपना और कांग्रेस का "बेबी" करार दिया था। उन्होंने सीएए को "विदेशियों" को नागरिकता देने और देश में हिंदू-मुसलिम विभाजन बनाने के मार्ग के रूप में देखा। यही कारण था कि गोगोई ने 36 साल बाद वकील का चोगा पहना था और सुप्रीम कोर्ट चले गए थे।
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