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बग़दादी के मारे जाने से भारत का क्या लेना-देना?

बग़दादी की मौत की ख़बर ऐसे समय में आयी है जब इसलामिक स्टेट बहुत कमज़ोर हो चुका है। अमेरिका और दूसरे देशों के सैनिक गठजोड़ ने उसकी कमर तोड़ दी है। उसके आतंकवादी मारे-मारे फिर रहे हैं। देखना यह होगा कि उसकी विचारधारा का आकर्षण उसकी मौत के बाद कितनी देर तक बना रहता है या फिर उसके मरते ही ख़त्म हो जाएगा!
आशुतोष

कई बार अबू बक़र अल बग़दादी मरा और कई बार वह ज़िंदा हो गया। पिछले साल ही उसके मरने की ख़बर आयी थी, लेकिन श्रीलंका में ईस्टर संडे के मौक़े पर हुई भयानक आतंकवादी घटना के बाद उसका एक वीडियो सामने आया और लोग एक बार फिर उसके ज़िंदा होने की ख़बर से सन्न रह गये थे।

संतोष की बात यह है कि आईएस भारत के मुसलमानों को अपनी तरफ़ बड़ी संख्या में आकर्षित करने में नाकाम रहा है। पिछले साल भारत में इसके दस लोगों का पकड़ा जाना एक बड़ी ख़तरे की घंटी थी। क्योंकि तब तक भारत इस बात पर गर्व करता था कि पूरी दुनिया से मुसलमान इसलामिक स्टेट से प्रभावित होकर उसके सदस्य बने या उनके लिए ख़ून ख़राबा किया, लेकिन भारत में वह अपने मक़सद में कामयाब नहीं हो पाया। दुनिया में मुसलमानों की आबादी भारत में सबसे ज़्यादा है पर इसलामिक स्टेट से इक्का-दुक्का ही भारतीय मुसलमान जुड़े। जबकि इंग्लैंड और दूसरे यूरोपीय देशों में काफ़ी अधिक संख्या में मुसलमान युवा इसलामिक स्टेट में शामिल हुए और आतंक का रास्ता पकड़ा।

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भारत से मुसलिम युवाओं का इसलामिक स्टेट से न जुड़ने के बहुत से कारण हैं। सबसे बड़ा कारण तो यह है कि हिंदुस्तान का मुसलमान अपने आप को दुनिया के मुसलमानों की समस्याओं से जोड़ कर नहीं देखता और न ही भारत में उसे इसलाम ख़तरे में लगता है। वह जहनी तौर पर भी मध्य-पूर्व एशिया से काफ़ी अलग है। यहाँ का मुसलमान हिंदू संस्कृति से प्रभावित है। लेकिन इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि भविष्य में भी ऐसा नहीं होगा।

आईएस ख़ूँख़ार आतंकवादी संगठन है जो क्रूरतम हिंसा में यक़ीन रखता है। पहली बार उसके नाम से तब सनसनी फैली थी जब उसने मोसुल पर क़ब्ज़ा कर लिया था। आईएस ने सद्दाम हुसैन के गृह जनपद टिकरित को भी अपने झंडे तले ले लिया था।

पूरी दुनिया तब हक्की-बक्की रह गई थी। दुनिया को रोज़ ऐसे वीडियो देखने को मिलने लगे थे जिसमें वे किसी इंसान को निहायत क्रूरता के साथ क़त्ल कर रहे होते थे। फिर चाहे पत्रकार हो या फिर कोई सिपाही। क्रूरता की सारी हदें पार कर ली थीं। दुनिया यह सोच नहीं पा रही थी कि ऐसे भी संगठन हो सकते हैं।

इज़राइली पत्रकार इताई आंजल के हिसाब से इसलामिक स्टेट के आतंकवादी किसी इंसान का गला रेतने के लिए कम धार वाले चाकू का इस्तेमाल करते हैं ताकि मरने वाले की तकलीफ़ को ज़्यादा से ज़्यादा किया जा सके।

इसे क्रूरता का प्रबंधन भी कहा जाता है। आंजल का कहना है कि इसलामिक स्टेट की पूरी रणनीति होती है कि जितना ज़्यादा से ज़्यादा तकलीफ़ को बढ़ाया जा सके उतना ही उनके ख़ौफ़ में इज़ाफा होगा।

इसलामिक स्टेट से अल क़ायदा अलग कैसे?

इसलामिक स्टेट वैसे तो अमेरिका में 9/11 को अंजाम देने वाले आतंकवादी संगठन अल क़ायदा से ही निकला है। बिन लादेन के साथ अबू मुसाब जरकवी काम करता था। कुछ मामलों में उसकी राय बिन लादेन से नहीं मिलती थी। लादेन से उसका झगड़ा शिया मुसलमानों को लेकर हुआ। बिन लादेन का कहना था कि उसकी लड़ाई पश्चिमी देशों, ख़ासतौर से अमेरिका से है जो अपने हित के लिए इसलाम को तबाह कर रहा है।

जरकवी का मानना था कि इसलाम को बचाने के लिए उन लोगों से भी लड़ना होगा जो इसलाम के असली रास्ते पर नहीं चलते। वह ‘तकफीर’ के सिद्धांत को मानता था जिसके मुताबिक़ जिनकी इसलाम में आस्था नहीं है उन्हें मारने की इजाज़त इसलाम देता है। वह मानता था कि इसलाम की बुरी गत इसलिए हुई क्योंकि वह पैग़म्बर मुहम्मद के बताए रास्ते से भटक गया।

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ख़लीफ़ा राज की बात क्यों?

जरकवी का कहना था कि इसलामिक स्टेट बनना चाहिए, जिसका प्रमुख ख़लीफ़ा हो और जहाँ शासन शरीयत के हिसाब से चले। वह मानता था कि जब तक ख़लीफ़ा का राज था तब तक इसलाम तरक़्क़ी करता गया। इसलिए एक बार फिर ख़लीफ़ा का राज लाया जाए और इसलाम की पुरानी हैसियत वापस लौटे। 2006 में जरकवी की मौत हो गई। उसके बाद अबू बकर अल बग़दादी इसलामिक स्टेट का मुखिया बना। बगदादी भी 2010 में अल्लाह को प्यारा हो गया। उसकी जगह इब्राहिम अवाद इब्राहिम अली अल बदरी अल समाराई ख़लीफ़ा बना पर वह अबू अल बग़दादी के नाम से ही काम करता रहा। उसका असली चेहरा उसके अपनों ने भी नहीं देखा था। वह भूत के नाम से भी जाना जाता था। यह वह सुरक्षा के वास्ते करता था।

बग़दादी के बारे में यह प्रचलित है कि वह पैग़म्बर मुहम्मद के परिवार से संबंधित है। वह इसलामिक मामलों का बड़ा जानकार भी माना जाता है। जून 2014 में मोसुल पर क़ब्ज़ा करने के बाद उसने ख़ुद को इसलामिक स्टेट का ख़लीफ़ा घोषित कर दिया और यह एलान कर दिया कि जहाँ-जहाँ इसलामिक स्टेट का कब्ज़ा है वहाँ-वहाँ शरीयत के हिसाब से शासन चलेगा। अल क़ायदा ने कभी भी किसी ज़मीन पर क़ब्ज़ा जमाने की कोशिश नहीं की। वह पश्चिम और दुश्मन देशों को अधिक से अधिक नुक़सान पहुँचाना चाहता था। 9/11 का हमला इसी मक़सद से किया गया था।

इसलामिक स्टेट इनसे अलग है। वह मानता है कि जो राज शरीयत के हिसाब से न चले उसे हिंसा के ज़रिए उखाड़ फेंक इसलामिक राज्य की स्थापना करना उसका धार्मिक कर्तव्य है।

इसलामिक राज्य में सब कुछ इसलाम के अनुसार से ही होना चाहिए फिर चाहे वह स्कूल हो या अस्पताल या बैंक या रेस्टोरेंट या फिर बिज़नेस। इस राज्य में काफ़िरों के लिए कोई जगह नहीं है।

पढ़े-लिखे युवा भी नहीं बच सके

इसलामिक स्टेट की सबसे बड़ी पहचान यह है कि इसने विचार के स्तर पर दुनिया भर के रैडिकल मुसलिम युवाओं को आकर्षित किया। यहाँ तक कि यूरोप के अति-आधुनिक माहौल में पले-बढ़े मुसलिम युवा भी अपना घर-देश छोड़ कर इराक़ पहुँच गए इसलाम के लिए लड़ने। इसलामिक स्टेट ने सिद्धान्त दिया कि जैसे हज़रत मुहम्मद ने हिज्र किया था, मक्का से मदीना गए वैसे ही इसलाम के लिए लोगों को हिज्र करना होगा।

जो मुसलिम युवा अपना घर छोड़कर गए उन्हें यह लगा कि वह पैग़म्बर मुहम्मद के रास्ते पर चल रहे हैं। यह नया आकर्षण था। वे जेहाद करने के लिए निकले हैं। बग़दादी कहता था कि इसलामिक स्टेट के लिए हिज्र करना इसलाम की अनिवार्यता है यानी असली मुसलमान वही है जो हिज्र करता है।

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आतंकी बनाने की तरकीब

इसलामिक स्टेट ने यह भी कहा कि जो लोग घर नहीं छोड़ कर आ सकते हैं वे जहाँ हैं वहीं पर जेहाद कर सकते हैं। इसके प्रवक्ता अबू अल अदनानी ने 21 सितंबर 2014 को एक बयान जारी किया। उसका कहना था, ‘आप जहाँ हैं जिस देश में हैं जो काफ़िरों का देश है, वहाँ के नागरिकों पर हमले करें। ...यह सब जेहाद है।’ उसका साफ़ कहना था कि जो जहाँ है, जैसा है, वहीं जान ले सकता है। इस बयान के बाद पूरे यूरोप में कई ऐसे हमले हुए। किसी ने लंदन में किसी पुलिस वाले का गला रेत दिया तो किसी ने भीड़ पर गाड़ी चढ़ा दी जैसा कि फ़्रांस में हुआ। इन घटनाओं ने पूरी दुनिया को हिला दिया। क्योंकि अब कोई सुरक्षित नहीं था। और कोई भी आतंकवादी हो सकता था।

बग़दादी की मौत की ख़बर ऐसे समय में आयी है जब इसलामिक स्टेट बहुत कमज़ोर हो चुका है। अमेरिका और दूसरे देशों के सैनिक गठजोड़ ने उसकी कमर तोड़ दी है। उसके आतंकवादी मारे-मारे फिर रहे हैं। पश्चिम के कुछ अख़बार तो यह भी लिखने लगे हैं कि इसलामिक स्टेट पूरी तरह से तबाह हो चुका है और अब वह कभी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता। अब बग़दादी की मौत की ख़बर इसलामिक स्टेट की रही सही उम्मीद को भी ख़त्म कर देगा। देखना यह होगा कि उसकी विचारधारा का आकर्षण उसकी मौत के बाद कितनी देर तक बना रहता है या फिर उसके मरते ही ख़त्म हो जाएगा!

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