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रिया का नाम दुनिया की सबसे बहादुर औरतों में होना चाहिये!

जब पूरा देश और मीडिया न्यायालय से पहले ख़ुद ही न्यायालय बन बैठा था और रिया चक्रवर्ती को अपराधी साबित करने में जुटा हुआ था, मुंबई हाईकोर्ट ने यह कहते हुए उसे ज़मानत दे दी कि रिया पर कोई आपराधिक मामला नहीं बन रहा है। ड्रग्स के लिए दूसरे को पैसे देने का मतलब ड्रग्स सिंडिकेट में शामिल होना नहीं होता।

कोर्ट ने और भी सख़्त बातें कही हैं। चार महीने के मीडिया ट्रायल और एक महीने जेल में गुजारने के बाद रिया बाहर आ चुकी हैं। उम्मीद है कि जल्द ही उन सारे मूर्खतापूर्ण और बेबुनियाद आरोपों से भी मुक्त हो जाएँगी। लेकिन अपने पीछे छोड़ जाएँगी ऐसे ढेर सारे सवाल, जिसका जवाब आपको तब तक नहीं मिलेगा, जब तक आप भक्ति और कठहुज्जती दोनों का चश्मा उतारकर खुली आँखों से नहीं देखते।

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सुशांत सिंह राजपूत की मौत एक दुखद घटना थी। संभावनाओं से भरी एक हँसती-मुस्कुराती ज़िंदगी का यूँ ख़त्म हो जाना अफसोस की बात है। लेकिन उससे कहीं ज़्यादा दुखद और शर्मनाक है वो बात, जो उसकी मौत का तमाशा बनाकर उन लोगों ने की, जो कहने को तो ज़िंदा हैं, पर जिनका ज़मीर मर चुका है। पहले तो मीडिया जाने कहाँ-कहाँ से बौड़म सबूत जुटाकर टीवी स्टूडियो में ही यह साबित करने में जुटा रहा कि सुशांत ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उसकी हत्या हुई है। और इस हत्या का ठीकरा उसकी गर्लफ्रेंड पर फोड़ दिया।

दो महीने लगातार चले मीडिया ट्रायल के बाद पहली बार जब उस लड़की ने मुँह खोला और एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में पहली बार अपना पक्ष रखा तो सबसे ज़्यादा तकलीफ उन्हीं लोगों को हुई जो बिना न्यायालय गए टीवी पर ही न्याय कर देना चाहते थे। रिया के घर आने वाले डिलिवरी बॉय और लिफ्टमैन तक का इंटरव्यू लेने को बेताब मीडिया रिया के इंटरव्यू से इस कदर बौखलाया क्यों था, यह समझने के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक होने की ज़रूरत नहीं। सामान्य तर्कबुद्धि भी काफ़ी होगी।

पहले महाराष्ट्र पुलिस और फिर सीबीआई ने पूरा ज़ोर लगा दिया कि कहीं से रिया के ख़िलाफ़ कोई सुबूत मिल जाए। जब कुछ नहीं मिला तो आख़िरकार नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को बीच में आना पड़ा और सुशांत को ड्रग देने और ड्रग सिंडिकेट में शामिल होने का आरोप लगाते हुए रिया की गिरफ्तारी का महान राष्ट्रीय आयोजन संपन्न हुआ।

जब गवाहों से यह पता चला कि सुशांत ड्रग्स लेता था तो टीवी चैनल वालों ने हेडलाइन लगाई- ‘सुशांत को ड्रग्स देती थीं रिया चक्रवर्ती।’ बेचारा लड़का लेता नहीं था, डायन लड़की देती थी। मतलब सचमुच। आपका राजा बेटा बिल्कुल दूध का धुला है।

औरतों से इस सवाल का जवाब क्या पूछना, जिगर हो तो ख़ुद से ही पूछकर देख लीजिए। आप शराब पीते हैं, सिगरेट पीते हैं तो क्या आपकी पत्नी या गर्लफ्रेंड देती है। अगर वो न चाहे तो क्या आपको ऐसा करने से रोक सकती है। क्या उसके रोकने से आप रुक जाएँगे।

आपने अपने आसपास कौन सा ऐसा रिश्ता, कौन सी ऐसी शादी देखी है, जिसमें पति और बॉयफ्रेंड के हर अच्छे-बुरे, सही-ग़लत के सामने औरत ने आख़िरकार सिर न झुकाया हो। हमारे यहाँ तो औरतें अपने रेपिस्ट पतियों तक का बचाव करती पाई जाती हैं। इसके लिए न मैं उन्हें दोष दे रही हूँ न उनकी आलोचना कर रही हूँ। आपके समाज में औरत की जितनी दोयम दर्जे की स्थिति और जैसी दो कौड़ी की हैसियत है, आपकी ताक़त और आपके हर कर्म-कुकर्म के आगे सिर झुकाने के सिवा उसके पास और कोई रास्ता नहीं। आपके विरोध का रास्ता सिर्फ़ एक ही मंजिल की ओर लेकर जाता है, अकेलेपन की ओर। आपके ख़िलाफ़ होने का मतलब है दुनिया में अकेला पड़ जाना।

और न आपकी मर्दानी दुनिया ने, न परिवार ने, न परवरिश ने, न समाज ने उसे इतनी ताक़त दी है कि वह यह रास्ता चुन सके। इसलिए वह हर बार आपके आगे सिर झुकाती है।

रिया ने ड्रग्स खरीदे भी तो भी ड्रग्स लेने की सारी ज़िम्मेदारी सुशांत पर है। इसमें उस लड़की का कोई दोष नहीं।

आप जो कर रहे हैं, वो विच हंटिंग है। इसका सैकड़ों साल पुराना इतिहास है। आपने मार्खेज के उपन्यासों में पढ़ा होगा, लेकिन पूरी दुनिया में यह होता रहा है। औरतों को डायन और चुड़ैल बताकर मार डाला जाता रहा है।

वीडियो में देखिए, रिया चक्रवर्ती मामले में हाईकोर्ट की टिप्पणी के मायने

और विच हंटिंग सिर्फ़ बर्बर मध्य युग की कहानी नहीं है। आधुनिक समय में बस इसका रूप बदल गया है। फ़िल्म अभिनेत्री रेखा के पति ने जब आत्महत्या की थी, तब भी पूरे देश के मीडिया और महान अभिनेतागण ऐसी ही विच हंटिंग करते पाए गए थे। अनुपम खेर और सुभाष घई जैसे निर्देशकों ने सीधे-सीधे शब्दों में यह तो नहीं कहा कि अपने पति की आत्महत्या के लिए वो ज़िम्मेदार है, लेकिन यह ज़रूर कहा कि अब फ़िल्म इंडस्ट्री में उसकी वापसी मुश्किल होगी। अब कोई उसे पहले ही तरह रिस्पेक्ट नहीं कर पाएगा।

जिस स्त्री के पति ने आत्महत्या कर ली हो, उसे थोड़ा अतिरिक्त प्रेम और करुणा से देखना तो दूर, उससे सहानुभूति रखना तो दूर, उल्टे यह समाज उसी पर सवाल करने लगता है, उसी पर दोष मढ़ने लगता है। इतना प्रताड़ित करता है कि वह दो घड़ी शोक भी न मना सके।

कहानियाँ तो इसके उलट भी बहुत सारी हैं। जब औरतें मरीं और उनके पतियों पर सबका दिल पसीजा। जब पत्नियों ने आत्महत्या की और चार महीने बाद पति के दूसरे अफ़ेयर की ख़बरें आने लगीं। लेकिन वो कहानियाँ कभी और।

फ़िलहाल रिया के लिए थोड़ा सा ख़ुश होने को दिल कर रहा है। मैं उसकी बहादुरी, उसकी हिम्मत पर मोहित हूँ। जिस तरह बिना डरे, बिना डगमगाए उसने सामना किया इस विच हंटिंग का, दुनिया की सबसे बहादुर औरतों में उसका नाम शुमार होना चाहिए। जब पूरा देश किसी की मौत की कामना कर रहा हो, आसान नहीं होता ज़िंदा रहना, अपने सच में यक़ीन बनाए रखना। रिया ने वो कर दिखाया है।

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मनीषा पांडेय

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