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चीन ख़ुद कर रहा ढाँचागत निर्माण तो दोष भारत पर क्यों मढ़ रहा है?

पिछले कुछ वक़्त से भारतीय पक्ष ने सीमांत इलाक़ों में ढाँचागत विकास किया है और सैनिक तैनाती को बढ़ा रहा है। दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव की जड़ में यही बात है। चीनी बयान के मुताबिक़ चीन भारत से यह माँग करता है कि दोनों देशों के बीच बनी सहमति को गम्भीरता से लागू करे और शांति व स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये ठोस क़दम उठाए।
रंजीत कुमार

पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों में सैन्य तनातनी ख़त्म करने के लिये गत क़रीब पाँच महीनों से चल रही बातचीत को चीन उलझाते जा रहा है और अब उसने सीमांत इलाक़ों में भारत द्वारा चीनी विदेश मंत्रालय के मुताबिक़ सैन्य इरादों से किये जा रहे ढाँचागत निर्माण का सवाल खड़ा कर पूरे विवाद को नया मोड़ देने की कोशिश की है। चीन ने साफ़ कहा है कि दोनों देशों के बीच जो मौजूदा सैन्य तनाव चल रहा है उसकी जड़ में भारत द्वारा ढाँचागत निर्माण ही वजह है। चीन ने यह ताज़ा कड़ी टिप्पणी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा 12 अक्टूबर को 44 पुलों का वीडियो द्वारा किये गए ऑनलाइन उद्घाटन के बाद की है।

12 अक्टूबर को सातवें दौर की सैन्य कमांडरों की वार्ता चलने के दौरान ही चीन द्वारा लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के इलाक़ों पर भारत की सम्प्रभुता का सवाल खड़ा कर चीन ने प्रादेशिक और भूभागीय विवाद का मसला फिर उठा कर यह संकेत दिया है कि भारत यदि प्रादेशिक विवाद को दूर करने के लिये चीन के साथ वार्ता कर दोनों पक्षों को मान्य हल निकाले तो सीमांत इलाक़े में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चल रही सैन्य तनातनी की वजह दूर हो सकती है। दो सप्ताह पहले ही चीन ने इस आशय से 1959 में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चओ अन लाई द्वारा रखे गए प्रस्ताव को दुहरा कर इसके संकेत दिये थे। 1959 में चीन द्वारा एकतरफ़ा दौर पर रखे गए वास्तविक नियंत्रण रेखा के प्रस्ताव को भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था।

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भारत और चीन के समक्ष फ़िलहाल जो बातचीत चल रही है वह पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों में सैन्य तनातनी ख़त्म करने और दोनों देशों के सैनिकों के पीछे चले जाने के मसले पर केन्द्रित है। गत पाँच मई से चल रहे चीनी सैन्य अतिक्रमण और सैन्य तैनाती की वजह से भारत और चीन के बीच सीमांत इलाक़ों में जो तनाव चल रहा है उसे ही दूर करने के लिये दोनों देशों के बीच राजनयिक और सैन्य कमांडर स्तर पर अब तक चली सात दौर की बातचीत में हर बार यही कहा जाता है कि वार्ता सकारात्मक और रचनात्मक रही और दोनों पक्षों ने एक दूसरे के विचारों को बेहतर समझा है और दोनों देश अपने नेताओं के बीच बनी सहमति को जल्द से जल्द लागू करेंगे।

लेकिन ठोस नतीजों के नज़रिये से देखा जाए तो कहा जा सकता है कि  पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों में 12 अक्टूबर को हुई सातवें दौर की सैन्य कमांडरों की वार्ता के बाद सैनिकों के पीछे हटने के मसले पर कोई प्रगति नहीं हुई क्योंकि चीन अपनी ज़िद पर अड़ा रहा कि भारत अपने इलाक़े में ढाँचागत निर्माण कार्य बंद करे और पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर जिन चोटियों पर गत 29 अगस्त को क़ब्ज़ा किया था वह खाली कर दे। 

छठे दौर की वार्ता गत 21 सितम्बर को हुई थी और इसके बाद सातवें दौर की नवीनतम वार्ता के साथ ही सीमा मसले को लेकर नया मोड़ दे कर पूरे विवाद को उलझाने की कोशिश चीन कर रहा है।

चीन ने कहा है कि भारत सैन्य इरादे से ढाँचागत निर्माण कर रहा है जिसकी वजह से विवाद पैदा हुआ है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह टिप्पणी भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा 44 पुलों के उद्घाटन पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए की है। चीन ने कहा है कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद की जड़ यही वजह है।

सातवें दौर की वार्ता

सातवें दौर की वार्ता के बाद भारत और चीन द्वारा जारी साझा बयान में पुरानी बातें दुहराई गई हैं और इसमें नया कुछ भी नहीं है। इस बयान के मुताबिक़ दोनों पक्षों ने इस वार्ता को उपयोगी और सकारात्मक माना है। बयान के मुताबिक़ दोनों पक्षों ने गम्भीरता से और गहराई से विचारों का आदान प्रदान किया जिससे पश्चिमी सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर एक दूसरे के विचारों की बेहतर समझ बनी। दोनों पक्षों ने माना कि यह बैठक रचनात्मक थी और दोनों सहमत हुए कि दोनों देशों के नेताओं के बीच बनी महत्वपूर्ण सहमति को जल्द लागू करेंगे और मतभेदों को झगड़ों में नहीं बदलेंगे। इसके साथ ही दोनों पक्ष मिल कर सीमांत इलाक़ों में शांति व स्थिरता को सुनिश्चित करेंगे। दोनों पक्ष सहमत हुए कि सैनिक और राजनयिक माध्यमों से वार्ता और संवाद बनाए रखेंगे और जितना जल्द हो सके  एक जायज, उचित और परस्पर स्वीकार्य समाधान पर पहुँच सकेंगे।

इसके साथ ही अलग बयान में चीनी पक्ष ने यह भी कहा है कि चीन लद्दाख केन्द्र शासित प्रदेश को मान्यता नहीं देता है जो भारत द्वारा ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से स्थापित किया गया है। चीन अरुणाचल प्रदेश को भी मान्यता नहीं देता है।

सीमांत इलाक़ों में सैन्य इरादे से ढाँचागत निर्माण का चीन विरोध करता है। चीन ने आगाह किया है कि दोनों पक्षों के बीच हुई सहमति के आधार पर कोई भी पक्ष हालात भड़काने वाले क़दम नहीं उठाए। चेतावनी देते हुए चीन ने कहा है कि इससे हालात शांत करने के प्रयासों पर आँच आएगी।

पिछले कुछ वक़्त से भारतीय पक्ष ने सीमांत इलाक़ों में ढाँचागत विकास किया है और सैनिक तैनाती को बढ़ा रहा है। दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव की जड़ में यही बात है। चीनी बयान के मुताबिक़ चीन भारत से यह माँग करता है कि दोनों देशों के बीच बनी सहमति को गम्भीरता से लागू करे और शांति व स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये ठोस क़दम उठाए।

वीडियो: भारतीय सीमा पर बन रही सड़कों और पुलों से क्यों परेशान है चीन?

वास्तविक नियंत्रण रेखा के इलाक़े में गत पाँच मई से किये गए अतिक्रमण को समाप्त करने की भारत की माँग पर चीनी राजनयिक यही कहते रहे हैं कि भारत ने जम्मू कश्मीर की धारा 370 को निरस्त करने के बाद जिस तरह से लद्दाख केन्द्र शासित प्रदेश की स्थापना की है चीन उसे ग़ैर-क़ानूनी मानता है क्योंकि चीन के मुताबिक़ यह पूरा इलाक़ा विवादास्पद है।

ग़ौरतलब है कि 1993 में भारत और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति व स्थिरता बनाए रखने की संधि की थी और कहा था कि  प्रादेशिक विवाद के हल होने तक दोनों देश सीमांत इलाक़ों में शांति और स्थिरता बनाए रखेंगे। लेकिन चीन का ताज़ा रुख 1993 की संधि में किये गए वादे से मेल नहीं खाता है। लेकिन अब प्रादेशिक विवाद हल होने के पहले ही चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जिस तरह  तनाव पैदा किया है वह 1993 की संधि को तोड़ने के समान है।

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