ऐसे समय जब वास्तविक नियंत्रण रेखा के आर-पार भारत और चीन ने हज़ारों सैनिक तैनात कर रखे हैं और कई स्तरों पर कई दौर की बातचीत के बावजूद चीन ने अपने सैनिकों को वापस बुलाने से साफ इनकार कर दिया है, उसने लद्दाख के मुद्दे पर बेहद कड़ा रुख अख़्तियार कर रखा है। यह भारत के लिए बहुत ही चिंता की बात है।
नई दिल्ली ने केंद्र शासित क्षेत्र लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के सीमाई इलाक़ों में 44 नए पुलों का उद्घाटन कर चीन को साफ संकेत दिया है कि भारत ढाँचागत सुविधाएं विकसित करता रहेगा। इससे चिढ़ कर चीन ने कहा है कि 'वह लद्दाख में भारत द्वारा ग़ैरक़ानूनी तरीके से निर्मित केंद्र-शासित क्षेत्र को स्वीकार नहीं करता है।'
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने मंगलवार को पत्रकारों से कहा,
“
'सबसे पहले मैं यह साफ कर दूं कि चीन भारत द्वारा स्थापित केंद्र शासित क्षेत्र लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश को मंजूर नहीं करता है। हम सीमाई इलाक़ों में सैन्य कारणों से बनाई गई ढाँचागत सुविधाओं के ख़िलाफ़ हैं।'
झाओ लिजियान, प्रवक्ता, चीनी विदेश मंत्रालय
उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी कहा कि 'दोनों पक्षों में इस पर आम सहमति बनी थी कि वे ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे स्थिति सामान्य करने के लिए दोनों पक्षों की ओर से उठाए गए कदमों को किसी तरह से नुक़सान पहुँचे।'
भारत-चीन के बीच कई स्तर की और कई दौर की बातचीत नाकाम हो चुकी है। अब भारत क्या करे, सवाल यह है। इस मुद्दे पर देखें वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का वीडियो।
सैन्य बातचीत फिर नाकाम
चीन के विदेश मंत्रालय ने यह टिप्पणी की, उसके एक दिन पहले सोमवार को ही दोनों देशों की सेनाओं के बीच सातवीं बार बातचीत हुई थी। चीनी इलाक़े चुशुल में 11 घंटे तक चली बातचीत का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भारत ने चीनी सीमा से सटे इलाक़ों में 74 सड़कें बना ली हैं, 20 पर काम चल रहा है। इसके अलावा भारत ने 44 पुलों का भी निर्माण कर लिया है।
ये निर्माण कार्य सामरिक ज़रूरतों के लिहाज से किए गए हैं। इनमें से कई सीधे फ्रंटलाइन यानी बिल्कुल चीनी सीमा तक जाती हैं। इससे चीन परेशान है।
याद दिला दें कि जब 5 अगस्त 2019 को गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति की गारंटी देने वाले अनुच्छेद 370 में संशोधन किया और अनुच्छेद 35 'ए' को ख़त्म कर दिया था तो उन्होंने चीन को चेतावनी भी दी थी। उन्होंने संसद में एलान किया था कि 'पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और अक्साई चिन पर जल्द ही कब्जा कर लिया जाएगा।'
अनुच्छेद 370 में संशोधन करने का क्या नतीजा निकला? क्या प्रधानमंत्री का दाँव उल्टा पड़ा? बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष।
अक्साई चिन का पेच
अक्साई चिन वह इलाक़ा है, जिसे चीन ने 1962 के युद्ध में भारत से छीन लिया था, उस पर अब तक उसका कब्जा है। बीजिंग अक्साई चिन को अपना हिस्सा मानता है।
अक्साई चिन का मामला थोड़ा अधिक पेचीदा इसलिए भी है कि चीन ने चाओ एनलाई के ज़माने में 1959 में ही एक नक्शा जारी किया था, जिसमें उसने अक्साई चिन को अपना हिस्सा बताया था। भारत ने इसे खारिज कर दिया था।
चीन ने पहले ही कह दिया था कि वह दोनों देशों के बीच अंग्रेजों द्वारा खींची गई सीमा रेखा मैकमोहन लाइन को नहीं मानता है। बीजिंग का कहना था कि जिस समय यह रेखा खींची गई थी, भारत में उस समय औपनिवेशिक शासन था और उसके यहां सामंतवादी ताक़तें थीं।
लिहाज़ा, यह रेखा दोनों देशों के लोगों की इच्छाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करती, इसलिए दोनों देशों को मिल कर नए सिरे से इस पर काम करना चाहिए।
घुसपैठ की वजह अक्साई चिन?
मई के पहले सप्ताह में जब चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों ने गलवान घाटी में घुसपैठ कर वहां कब्जा कर लिया था, उसकी निगाह अक्साई चिन पर ही थी। उसका मक़सद उस इलाक़े की ऐसी घेराबंदी करना था कि भारतीय सेना चाह कर भी कुछ न कर सके। इसे इससे समझा जा सकता है कि चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में साफ तौर पर अक्साई चिन का मुद्दा उठाया था। ग्लोबल टाइम्स ने अपनी खबरों में भी गलवान घाटी की में चल रही गतिविधियों पर फोकस किया था। उसका रवैया कभी भारत को समझाने का होता था तो कभी धमकाने का।
अक्साई चिन वह इलाक़ा है जो चीनी राज्य शिनजियांग से सटा हुआ है, चीन उसे दक्षिण शिनजियांग का इलाक़ा कहता है। शिनजियांग से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा गुजरता है जो अरब सागर के किनारे पाकिस्तान में स्थित ग्वादर बंदरगाह तक जाता है। ग्वादर का आर्थिक और सामरिक महत्व है।
बीजिंग चाहता है कि वह इस गलियारे का इस्तेमाल कर ज़्यादा से ज़्यादा आयात-निर्यात करे ताकि दक्षिण चीन सागर में स्थित मलक्का स्ट्रेट पर निर्भरता कम हो जाए। इसके अलावा युद्ध की स्थिति में वह शिनजियांग से सीधे ग्वादर तक अपने सैनिकों को पहुँचा सकता है और वहां अपने लड़ाकू जहाज़ खड़ा कर भारत को चुनौती दे सकता है।
इसलिए चीनी विशेषज्ञ किसी सूरत में अक्साई चिन पर अपनी पकड़ी ढीली नहीं करना चाहते, भले ही वह इलाक़ा भारत का ही क्यों न हो।
भारत के गृह मंत्री के बयान से चीन इसलिए भी परेशान है कि अक्साई चिन से दौलत बेग ओल्डी बहुत दूर नहीं है। भारत ने दोनों इलाकों को जोड़ने के लिए हर मौसम में इस्तेमाल होने लायक सड़क बना ली है। इसके अलावा दौलत बेग ओल्डी में भारत की हवाई पट्टी भी है जो पूरी तरह ऑपरेशनल है। वहां सबसे बड़ा मालवाही जहाज़ भारत उतार चुका है। गलवान में चीनी सेना के जमावड़े के बाद भारत ने दौलत बेग ओल्डी में वायु सेना के कई जहाज़ तैनात कर दिए और साजो सामान पहुँचा दिया। यानी युद्ध की स्थिति में भारत इस हवाई पट्टी से चीन को गंभीर चुनौती दे सकता है।
ऐसी स्थिति में चीन के सामरिक नीति निर्धारकों का परेशान होना स्वाभाविक है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया को इससे जोड़ कर देखने की ज़रूरत है। चीनी घुसपैठ को भी इसके ज़रिए ही समझा जा सकता है।
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